बात कुछ विचित्र सी लगेगी, परन्तु है सौ टका सच्ची कि सृष्टि की कालगणना का 1 अरब 96 करोड़ 8 लाख 53 हजार 110 वर्षों का पक्का लेखा-जोखा रखने के बावजूद हमारे देश में एक राष्ट्रव्यापी सर्वसम्मत राष्ट्रीय संवत् प्रचलित नहीं है। कोई चैत्र में वर्ष का आरम्भ करता है, तो कोई वैशाख में। कोई किसी विशिष्ट ऋतु से अपने वर्ष का प्रारम्भ करता है, तो कोई दीयों के ज्योतिपर्व से। यह भी कितनी दुःखद स्थिति है कि कुछ वर्ष पूर्व तक देश के व्यापारिक खातों में देशी तिथियों और वर्षगणना का प्रचलन था, परन्तु पिछले कुछ वर्षों से व्यावसायिक व्यवहार में अंग्रेजी वर्षगणना की महत्ता व्याप्त हो गई है। देश में राष्ट्रीय कालगणना प्रारम्भ करने की ओर सरकार ने ध्यान भी दिया, तो उसने एक ऐसी कालगणना प्रारम्भ की, जो राष्ट्रीय पराभव की सूचना देती है अथवा यदि यह बात सन्दिग्ध हो तो उसके विदेशी उद्भव से राष्ट्रीय सम्मान को क्षति अवश्य पहुँचती है। उत्तरी भारत में विक्रमी संवत् शताब्दियों से प्रचलित है। यह परम्परा और सांस्कृतिक इतिहास की दृष्टि से भारत की वीरता और यशोगाथा की अमर ज्योति है। परन्तु हमारे तथाकथित आधुनिक विचारकों और इतिहासज्ञों को भारत के यश की कहानी और अमर स्मारक कभी रास नहीं आते। वे इसकी प्रामाणिकता और उसके अमर नायक विक्रम के उस समय के अस्तित्व को ही प्रश्नचिह्न लगा देते हैं। ये आलोचक ऐसे लोग हैं, जो ईंट-पत्थरों और मिट्टी के प्रमाणों के बिना इतिहास और मानव की पुरानी कहानी स्वीकार नहीं करते।
भारत ही नहीं एशिया और संसार के विस्तीर्ण क्षेत्रों में श्रीराम, श्रीकृष्ण, महात्मा बुद्ध के शिष्यों और भक्तों ने अपने देश के महापुरुषों की अमर गाथा पत्थरों की मूर्तियों, जन-कलाओं एवं साहित्य में अमर कर दी है। आज आवश्यकता यह है कि अमेरिका की मयभूमि, इण्डोनेशिया, इण्डोचीन, बाली मंगोलिया, चीन, जापान, तुर्किस्तान आदि अनेक स्थानों के प्राचीन शिलालेखों, स्मारकों, साहित्य में बिखरे हुए भारत के स्मृति-चिह्नों और उसकी संस्कृति के प्राचीन सम्पर्कों को खोजकर उन्हें लेखबद्ध किया जाए। प्रागैतिहासिक काल से भारतीय संस्कृति के ध्वजवाहक देश-देशान्तर, द्वीप-द्वीपान्तर में अकेले या समूहों में मानव-संस्कृति के अभ्युदय और वसुधा के सुख-कल्याण के लिए प्रयत्नशील रहे हैं। पश्चिमी सम्प्रदायों और संस्कृति के प्रचारक सम्प्रदाय और व्यापार के साथ शक्ति, लोभ, षड्यन्त्र और धोखे का प्रयोग करने में भी संकुचित नहीं हुए हैं। परन्तु भारतीय संस्कृति और धर्म के सन्देशवाहक केवल आत्मबल की शक्ति पर अकेले ही अज्ञान, कुरीतियों, अधर्म एवं अभावों और कष्टों को दूर करने में लगे हैं और यत्र-तत्र-सर्वत्र जाकर यशस्वी हुए हैं। हमें यत्न करना चाहिए कि भारतीय संस्कृति एवं इसके यशस्वी इतिहास की यशोगाथा के प्रतीक एक सच्चे राष्ट्रीय गौरव के चिह्न सौर और विक्रमी-संवत् जैसे किसी वर्ष को एक स्वर से अपना राष्ट्रीय संवत् स्वीकार करें।
ऐसा राष्ट्रीय संवत् स्वीकार करने के बाद मनसा-वाचा-कर्मणा, अपने मन, वाणी और कर्म से ऐसी कालगणना को अंगीकार कर अपने सांस्कृतिक राष्ट्रीय जीवन में उससे तादात्म्य स्थापित करें, ताकि हम संसार-भर की प्रमुख भाषाओं में निकलने वाले विश्व के समस्त ज्ञान-विज्ञान के अमूल्य ग्रन्थों और आविष्कारों को अपनी भारतीय भाषाओं में आत्मसात् कर देश को प्रत्येक दृष्टि से सशक्त, सन्नद्ध, स्वावलम्बी और महान् बना सकें। उसके लिए प्रत्येक देशवासी को नए वर्ष के मंगलमय अवसर पर कुछ संकल्प ग्रहण करने चाहिएं। उन्हें व्रत लेना होगा कि हम राष्ट्र के सर्वांगीण अभ्युदय के लिए विश्व के वाङ्मय एवं ज्ञान-विज्ञान के अनन्त कोष से सब-कुछ ग्रहण करते हुए जो भी अपना-पराया श्रेष्ठतम है, सत्य है, शिव है, सुन्दर है, उसे ग्रहण करेंगे। उससे स्वदेश की समुन्नति तथा उसकी भाषाओं, संस्कृति, प्राचीन वैदिक मानव-धर्म की समुन्नति तथा अभ्युदय के लिए व्यक्तिगत, सामाजिक एवं राष्ट्रीय प्रयत्नों को संगठित करने का संकल्प कार्यान्वित करेंगे। स्वाधीनता-प्राप्ति के इतने वर्षों के बाद देश में जिस तरह भ्रष्टाचार, स्वार्थ एवं विषमता बढ़ रही है, उसके मूल में परोपकार, त्याग, बलिदान आदि के स्थान पर स्वार्थ, भोग तथा अनाचार को प्रश्रय बढ़ा है। जब तक हमारी कथनी और करनी एक न होगी, जब तक हम दूसरों से जिस आचरण की अपेक्षा करते हैं उसे स्वतः न करेंगे, तब तक स्थिति में बुनियादी परिवर्तन नहीं आएगा। नए वर्ष के साथ हमें नया संकल्प लेना होगा कि हम मन-वचन-कर्म से, सच्चे मानव और देशभक्त बनने का प्रयत्न करेंगे। - नरेन्द्र विद्यावाचस्पति
If Not just Vikram, then how are you? | Hundred Percent True | Time Calculation of Creation | National Consortium | Start of Year | Country Dates and Year Calculations | National Defeat | Vikrama Sankat | Modern Thinkers and Historians | Story of the Success of India | Disciples and Devotees | Great saga of Great Men | Vedic Motivational Speech in Hindi by Vaidik Motivational Speaker Acharya Dr. Sanjay Dev for Gulabpura - Shahpur - Chandrapura | News Portal - Divyayug News Paper, Current Articles & Magazine Gularia Bhindara - Shahpura - Chatra | दिव्ययुग | दिव्य युग