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तमाम रोगों की दवा है 'बेल'

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बेल एक प्रसिद्ध फल है। यह देश के लगभग सभी भागों में पाया जाता है। मई और जून के महीने में फल देने लगता है।

बेल का वृक्ष प्रायः जंगलों में पाया जाता है। अब इसे बागों में भी उगाया जाता है। बेल के वृक्ष की ऊंचाई लगभग बीस-पच्चीस फुट होती है। बेल के पत्तों में तीन चार पत्रक होतें हैं। पत्रों के बीच में कांटे होते हैं। फरवरी माह में इस वृक्ष पर फल आने शुरू हो जाते हैं। बेल के फूल सफेद अथवा हल्के हरे रंग के छोटे-छोटे गुच्छों में बड़े सुन्दर और मधुर सुगन्ध लिये हुए होते हैं। इसक फल गोल तथा बड़ी गेंद के आकर का होता है। फल का छिलका कठोर होता है। यह पकने पर हल्के नारंगी रंग का हो जाता है। पक्की हुई बेल सुगन्धित होती है। इसके अंदर का गूदा पीला होता है और उसमें सफेद रंग के बीज होते हैं। बेल वृक्ष की पत्तियां, छिलका, डाली और जड़ भी प्रयोग में आती है। ग्रंथों में बेल को रसायन का नाम दिया गया है। यूनानी चिकित्सकों का मत है कि बेल एक पाचक और शक्तिवर्द्धक फल है।

इसे व्यापक गुणों से विदेशी डॉक्टर भी प्रभवित हुए हैं। डॉ० डीमक लिखते है कि बेल रक्तशोधक, मलरोधक और पौष्टिक फल है। डॉ० ग्रीन का दावा है कि बेल का शर्बत नित्य सवेरे पीने से अजीर्ण नष्ट हो जाता है।

हिन्दू धर्म में बेल का एक पवित्र वृक्ष माना गया है इस दृष्टि से बेल के वृक्ष का प्रत्येक भाग कल्याणकारी होता है। इसकी पत्तियां बेल-पत्ती के रूप में शिवजी पर चढ़ाई जाती हैं। पदम् पुराण में वर्णन है कि मदार पर्वत जाते हुए पार्वती के पसीने की बूंद से बिल्व (बेल) नाम वृक्ष की उत्पत्ति हुई। कारण कुछ भी रहता हो, किंतु यह तो सत्य है कि बेल का वृक्ष वातावरण को आरोग्यपूर्ण बनाता है। इसके फल का स्वाद भी बहुत मधुर और शीतलता प्रदान करने वाला है। बेल का फल, लकड़ी हमारे बड़े उपयोगी है। इसके गूदे, पत्तों तथा बीजों में उड़नशील तेल पाया जाता है। फल में प्रोटीन, कैल्शियम, फॉस्फोरस, कार्बोहाइड्रेट आदि तत्व पाये जाते हैं। बेल स्वास्थ्य के लिए बहुत उपयोगी फल है। मेदा और आंतों के लगभग सभी विकारों में हितकर है। बालकों की संग्रहणी या अतिसार में बेल बहुत लाभदायक है। सूखे गूदे का चूर्ण सुबह पानी के साथ लेने से भूख को बढ़ता है और आंव का नाश करता है। गले की पीड़ा को शांत करता है।

बेल पत्रों का रस छः माशे दिन में तीन बार लेने से कृमि नष्ट हो जाते हैं। बेल का शरबत और मुरब्बा गर्मियों में बहुत लाभकारी है। यह घावों को भी अतिशीघ्र भरता है। इसका गूदा पुषिटकारक है। बेल की लकड़ियां हवन के काम में ली जाती है।

राम वनवास के समय पंचवटी में जिन पांच प्रमुख वृक्षों का वर्णन मिलता है उनमें से बेल वृक्ष एक है।

वैधानिक सलाह / परामर्श - इन प्रयोगों के द्वारा उपचार करने से पूर्व योग्य चिकित्सक से सलाह / परामर्श अवश्य ले लें। सम्बन्धित लेखकों द्वारा भेजी गई नुस्खों / घरेलु प्रयोगों / आयुर्वेदिक उपचार विषयक जानकारी को यहाँ यथावत प्रकाशित कर दिया जाता है। इस विषयक दिव्ययुग डॉट कॉम के प्रबन्धक / सम्पादक की कोई जवाबदारी नहीं होगी।