श्रीकृष्ण गायें रखते थे। यह सत्य है कि योगेश्वर श्रीकृष्ण वेदादि सभी विद्याओं को जानने वाले थे। वह जानते थे कि गोसेवा में अत्यन्त महान् उपकार निहित हैं। गाय केवल एक पशु ही नहीं अपितु मानव शरीर व जीवन की रक्षा करने वाली भी है। जो जीवन दे वही मातृ तुल्य है। गाय को माता इसलिये ही कहा जाता है। श्रीकृष्ण गाय की का उपयोगिता जानते थे। उस समय गायों को पालने कार्य बृहत्तर रूप में था। गायों की संख्या अधिक होती थी। प्रत्येक घर में गाय होती थी। बिना गाय के कोई घर न होता था। प्रत्येक व्यक्ति गोसेवा अपना कर्त्तव्य समझता था।
गाय का दूध- गाय का दूध शरीर के लिए पुष्टिकारक होता है, बुद्धि को बढ़ाता है। इससे कान्ति व ओज बढ़ता है। इसे पीने से बल तो मिलता ही है, स्फूर्ति भी बनी रहती है। शरीर निरोगी तथा बलवान् होता है। गाय का दूध सात्त्विक व पवित्र भोज्य पदार्थ है। गाय के दूध में औषधीय गुण होते हैं। शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को यह बढ़ाता है, जिससे अनेक रोग पास ही नहीं आते और शरीर निरोगी बना रहता है।
गोमूत्र की उपयोगिता- गाय का मूत्र भी कम लाभकारी नहीं होता। गोमूत्र अधिकांशतः आयुर्वेदिक औषधियों में उपयोगी होता है। अनेक रोगों, काली खांसी, पुरानी खांसी, उदर रोगों, पीलिया आदि में युक्ति अनुसार इसे देते हैं। गोमूत्र से कैंसर जैसे रोग पास नहीं आते। कई वैद्य आदि तथा इसका उपयोग जानने वाले गोमूत्र को औषधि रूप में देते हैं। कैंसर जैसे रोगों के उपचारार्थ भी इसे दिया जाता है और इससे अत्यन्त लाभ हुआ है।
गोबर भी उपयोगी- इसी प्रकार गाय का गोबर अत्यन्त उपयोगी है। कृषि कार्यों में कीटनाशक, खाद आदि में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग बढ़ाकर अनेक रोगों को जन्म दिया जा रहा है। शरीर को हानि हो रही है। गाय के गोबर से बनी देशी खाद अत्यन्त उपयोगी एवं लाभकारी होती है तथा हानिरहित होती है। गाय के गोबर की खाद से मिट्टी की उर्वराशक्ति बढ़ती है। गाय के गोबर से चूल्हा जलाने वाली गैस भी बनाई जा सकती है। यदि इस गैस का उपयोग हर स्थान पर होने लगे तो भारत को विदेशी निर्भरता से मुक्ति अवश्य मिलेगी।
प्रदूषण निवारण- गाय के श्वास में गुग्गुल की सुगन्ध होती है। गाय के पास रहने से ही अनेक रोगों की निवृत्ति होती है तथा रोग होते ही नहीं। वायु के रोग गठिया, वात, पक्षाघात तथा कफज रोग, पुराना नजला एवं श्वास आदि रोगों, हृदय रोगों से बचा जा सकता हौ। गाय को पास रखना ही अत्यन्त हितकर होता है। गाय की श्वास आदि से वायुमण्डल का प्रदूषण दूर होता है। स्वच्छता व पवित्रता आती है। जो लोग गायों के पास रहते हैं, वे टी.वी. कैंसर आदि भयानक रोगों से अधिकतर दूर ही रहते हैं। उनकी आयु व बल की वृद्धि होती है।
गाय को प्राचीनकाल में यूं ही नहीं पाला जाता था। गाय की इतनी अधिक उपयोगिताएं व लाभ हैं, जिन्हे संक्षेप में ही कहा जा सकता है। श्रीकृष्ण गाय के महत्व को जानते थे। उनके समय में गांव-गांव, नगर-नगर में सहस्रों-सहस्रों गायें पाली जाती थीं। प्रत्येक घर में एक से अधिक गायें होती थीं और गाय की सेवा करना अपना कर्त्तव्य मानकर इसी में समाज, व्यक्ति तथा राष्ट्र का भला समझा जाता था । गाय की रक्षा राष्ट्र की रक्षा है। आज भी सभी जनों को गाय के महत्व को समझना चाहिए और सभी को गाय पालनी चाहिए। तब लोग धन-धान्य व वैभव सम्पन्न थे।
गोदान- महर्षि दयानन्द ने वर्णन किया है कि एक गाय के जीवन भर के दूध से चौबीस हजार नौ सौ साठ व्यक्ति एक बार में तृप्त हो सकते हैं। आर्यों ने गाय को ही महत्व दिया है। गाय की उपयोगिता का शास्त्रों में भी वर्णन है। रामायण में भी स्थान-स्थान पर सहस्रों गायों के दान करने का वर्णन है। प्राचीन काल में गाय को अत्यधिक महत्व दिया जाता था। विवाह व अन्य शुभ अवसरों पर गाय दान में दी जाती थी।
श्रीकृष्ण ने गायों को महत्व दिया। उस समय गाय की अत्यधिक सेवा होती थी। संवर्द्धन होता था, गायों का विकास व संरक्षण होता था। सभी गोदुग्ध पीते व हष्ट-पुष्ट रहते थे। रोग पास नहीं आते थे। आज भी गाय मानव जीवन हेतु अत्यन्त उपयोगी है।
अत्यन्त दुःख की बात यह है कि जहाँ पहले घर-घर में गायों की सेवा होती थी, वहाँ आज पाश्चात्य संस्कृति के प्रवाह में आकर कुत्ते व कुत्तियां पालने आरम्भ कर दिए गए हैं और इसमें बड़ा गर्व समझा जाता है। अधिकतर लोगों के घरों में कुत्ते-कुत्तियाँ पाले जाते हैं और बहुत से लोग तो उन्हें अपने साथ खिलाते-पिलाते व सुलाते भी हैं। जबकि कुत्ते आदि जानवरों को पालने से अनेक रोगों का जन्म होता है। उनके मल-मूत्रादि से गन्दगी होती है। कुत्ता अपने मुंह से गन्दा आदि उलटकर पुनः खा जाते हैं। मल आदि को जल आदि से नहीं साफ करते। कहीं भी मूत्र विसर्जन कर देते हैं। यदि काट लें तो 14 इंजेक्शन लगवाने पड़ते हैं। कुतिया का दूध, मल-मूत्रादि किसी उपयोग में भी नहीं आता। परन्तु आज के पाश्चात्य जीवन में ढले लोग कुत्तों को रखना अपना गर्व समझते हैं। यह उनकी भूल व भ्रम है तथा रोगादि गन्दगी को बढ़ावा ही इससे मिलता है।
गोपालन से राष्ट्र समृद्धि- गाय जैसा पवित्र लाभकारी परम उपयोगी पशु है, ऐसा अन्य कोई भी नहीं। गाय का पालना ही अत्यन्त उपयोगी व लाभकारी है। गाय का गोबर, दूध, मूत्र, श्वास सभी उपयोगी होते है। अतः गाय का पालन व संवर्धन करना व्यक्ति के शारीरिक एवं मानसिक विकास हेतु अत्यन्त उपयोगी है। गाय की सेवा राष्ट्र की सेवा है। इसीलिए श्रीकृष्ण गायों के पालन व संवर्द्धन पर बल देते थे। उस समय राष्ट्र धन, ज्ञान, वैभव से परिपूर्ण था। गाय की सेवा को सब अपना कर्त्तव्य समझते थे। आओ! आज हम सब मिलकर गाय पालने व रखने का विचार बनाएं और आशा करें कि हर घर द्वारा एक गाय का पालन तो अवश्य हो ही, यही हमारी सुख व समृद्धि का मार्ग है। - विजेन्द्रपाल सिंह चौहान
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