विशेष :

शिव नाम परमात्मा का है

User Rating: 5 / 5

Star ActiveStar ActiveStar ActiveStar ActiveStar Active
 

शिवरात्रि का सीधा सरलार्थ कल्याण रात्रि है। पौराणिक परिभाषा में यह शिव की रात है। जो भी कोई शिवभक्त इस रात्रि में शिवमूर्ति का पूजन करता है, वह शिवजी के प्रसाद से कृतकृत्य होकर शिव लोक प्राप्त करने का अधिकारी बन जाएगा। ऐसा पौराणिक प्रचार है। मुसलमानों में भी शबरात की बड़ी महिमा है। शबरात ‘शिवरात्रि’ शब्द का ही विकृत रूप हुआ प्रतीत होता है। क्योंकि उर्दू, अरबी तथा फारसी लिपि में इकार-उकारादि मात्रायें प्रायः लिखी नहीं जाती तथा व में मध्य रेखा

खींचकर व का ब बन जाना सम्भव है। अतः शिव का शब बन जाना और रात्रि का रात लिखा जाना सरलता से समझा जा सकता है।

वेद में शिव नाम परमात्मा का है, जिसके अर्थ कल्याणकारी के हैं। उसकी आराधना-उपासना प्रातः-सायं होती है।

पौराणिकों ने ब्रह्मा, विष्णु, महेश या शिव तीन देवता माने हैं। पुराणों में इनकी कथाएं बहुत लिखी गई हैं। इनके आधार पर पिता जी ने अपने बालक मूलशंकर को शिवरात्रि के व्रत द्वारा रात्रि जागरण का महात्म्य बताकर शिवदर्शन की बात कही, जिससे आत्मा का कल्याण होकर मोक्ष की प्राप्ति हो। किन्तु जागरण के मध्य ऋषि की आत्मा में सच्चाई का प्रमाण उदित हो गया कि यह जड़ पाषाण मूर्ति सच्चा कल्याणकारी शिव नहीं है। वह सर्वव्यापक, सर्वशक्तिमान्, अजर-अमर, नित्य, पवित्र, सृष्टिकर्ता परमात्मा घट-घट वासी है। उस निराकार परमात्मा की पूजा निराकार आत्मा में शुभ गुणों के विकास के साथ-साथ ध्यान द्वारा होती है, जिसके लिये योग साधना की आवश्यकता है।

अतः योग-युक्तात्मा के सान्निध्य की आवश्यकता हुई, वर्षों के कठोर परिश्रम और साधना के पश्‍चात् यह सिद्धिप्राप्त हुई। तब योग-युक्तात्मा महर्षि दयानन्द ने गुरु विरजानन्द जी से वेदों के रहस्यों को समझकर गुरु दक्षिणा में वेदों के प्रचार में जीवन की आहुति देकर संसार के कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया। वास्तव में जिस भी क्षण में मनुष्य को सन्मार्ग की प्रेरणा मिले, वही शिव अर्थात् कल्याणकारी है। योग-समाधि का पर्याय ही योगनिद्रा है। कल्याण की सच्ची प्राप्ति योगनिद्रा से विभूषित होती है और योगरात्रि भी कही जा सकती है।

संसार जागते हुए भी शुभ प्राप्ति से विमुख होकर वास्तव में मोहान्ध होकर एक प्रकार से गफलत की नींद में सोए रहता है। किन्तु योगी समाधि निद्रा में प्रभु दर्शन से आनन्दविभोर हो रहा होता है। यह योगनिद्रा है। यह योग समाधि ही योगरात्रि या कल्याणकारिणी शिवरात्रि है। हिन्दू-मुसलमान तथा अन्य सभी लोग इस रहस्य को समझ जाएं, तो किसी भी जागरूक क्षण को शबरात या शिवरात्रि कहा जा सकेगा। यही रहस्य दयानन्द ने समझा और ऋषि-महर्षि की पदवी प्राप्त की।

नमस्यामो देवान्ननु बत ! विधेस्तेऽपि वशगा, विधिर्वन्धः, सोऽपि प्रतिनियत-कर्मैकफलदः।
फलं कर्मायत्तं किममरगणैः किं च विधिना, नमस्तत् कर्मभ्यो विधिरपि न येभ्यः प्रभवति॥ (नीति शतक 95)

हम विद्वान आदि देवों को नमस्कार करते हैं, किन्तु अरे! वे भी तो विधाता के आधीन हैं। तो फिर विधाता अवश्य वन्दनीय है, किन्तु वह भी तो कर्मों के अनुरूप ही निश्‍चित फल देता है। इस प्रकार जब फल कर्मों के ही आधीन है (कर्मों के अनुसार ही मिलने वाला है) तो देवों और विधाता के ऊपर निर्भर न रहकर कर्मों को नमस्कार करें, कर्मों को प्रधानता दें, जिनको बदलने में विधाता भी समर्थ नहीं है। - पं. शान्तिप्रकाश (शास्त्रार्थ महारथी)

Lord Shiva | Parmatma | Shankar | Mahadev | Shivaratri | Mrityunjay | Mahakaal | Compatibility | Perversity | Salvation | Divyayug |


स्वागत योग्य है नागरिकता संशोधन अधिनियम
Support for CAA & NRC

राष्ट्र कभी धर्म निरपेक्ष नहीं हो सकता - 2

मजहब ही सिखाता है आपस में बैर करना

बलात्कारी को जिन्दा जला दो - धर्मशास्त्रों का विधान