विशेष :

सत्ता-लालसा और कार्पण्य दोष के परिणाम

User Rating: 0 / 5

Star InactiveStar InactiveStar InactiveStar InactiveStar Inactive
 

वर्तमान सत्ताधीश जिस पंथ के अनुयायी हैं, उसका एकमात्र लक्ष्य, जनचर्चा के अनुसार सत्ता लालसा मानी जा रही है । अतः इसकी कार्य-शैली में निहित है- ‘समझौता’। इस नीति के अनुसार उन शक्तियों से भी समझौते किए गए, जिनके दिल-दिमाग में कालिमा थी और षड़्यंत्र के जाल बुने जा रहे थे। परिणामतः विभाजन की मार्मिक पीड़ा देशवासियों को आज तक टीस पहुंचा रही है। इस पन्थ की सत्ता लालसा ने आगे भी समझौता नीति को अपनाए रखा। कहावत है- कहो कबीर कैसे निभे, कैर-बैर को संग । एक ओर केले के सुकुमार पत्तों की तरह हिन्दू-समाज और दूसरी ओर घात लगाए बैठे देश व संस्कृति के दुश्मन अवसर की ताक में अपनी शक्ति का संचय करते रहे। अब उनके षड़्यंत्र धीरे-धीरे व्यावहारिक रूप लेने लगे हैं। इन षड़्यंत्रकारियों के साहस बढ़ते जा रहे हैं। सत्ताधीश इन पर नियंत्रण पाने में असमर्थ दिखाई दे रहे हैं। इस असमर्थता की जंजीर के कारण भी हम स्वयं ही हैं। हमीं ने उन्हें संवैधानिक संरक्षण प्रदान कर उन्हें फलने-फूलने के अवसर प्रदान किए हैं। अब विवशता यह है कि यदि कुछ नियंत्रण लाना भी चाहें तो भी उनके विरुद्ध कुछ कर पाना संभव नहीं है। यदि देशभक्त जनता उनके विरुद्ध कुछ करना चाहे, तो उनके विरुद्ध सत्ताधीशों के पास अनेक संवैधानिक धाराएँ हैं, जिनका प्रयोग आए दिनों होता रहता है। वर्तमान में राष्ट्रीय जन-जन के संरक्षण की स्थिति अत्यधिक बिगड़ती जा रही है। सत्ताधीश व्यक्तिगत आधार पर ‘सुरक्षा बढ़ा दी गई है’ की दुहाई देते रहते हैं। आश्‍चर्य होता है कि जनता तो खुले मार्गों पर घूमती रहती है, उसके संरक्षण का क्या होगा? जब राष्ट्र का हर नागरिक खतरे में हो तो किस-किसके लिए सुरक्षा व्यवस्था बढ़ाई जा सकेगी? यह अनुत्तरित प्रश्‍न है।

भारत का हर देशभक्त नागरिक इस सत्य से अच्छी प्रकार परिचित हो गया है कि भारत और भारतीयता पर खतरे मंडरा रहे हैं। आंतरिक और बाहरी षड़्यंत्रकारी भारत को छिन्न-भिन्न कर देना चाहते हैं। वे अपनी सत्ता कायम कर अपनी मंशा पूरी करने के लिए प्रयत्नशील हैं। सत्ता की लालसा ने सत्ताधीशों को इतना अंधा बना दिया है कि उन्हें राष्ट्रहित और जन-जन की सुरक्षा का कुछ भी ध्यान नहीं है। वे देशद्रोहियों के विरुद्ध इसलिए सख्त कदम उठाना नहीं चाहते, क्योंकि उन्हें उन्हीं देशद्रोहियों के वोट चाहिएं। ये षड़्यंत्री तत्व तब तक उन्हें सत्ता पर बनाए रखना चाहते हैं, जब तक कि निर्णायक शक्ति उनके हाथों में न आ जाए। मीडिया के माध्यम से उल्लेखनीय कुछ ऐसी घटनाएँ प्रकाश में आई हैं, जिनके माध्यम से सत्ताधीशों की वोट लिप्सा प्रकाश में आती है।

भारतीय संसद पर हमला करने वाले अफजल गुरु को न्यायालय ने फाँसी देने का फैसला सुनाया है । परन्तु सरकार ने उसे अब तक फाँसी इसलिए नहीं दी, क्योंकि उन्हें उसके पक्षधरों को खुश कर उनके वोट लेना है। हिन्दू संस्कृति तथा धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के लिए यह सर्वाधिक चुनौतिपूर्ण अलकायदा की धमकी है, जिसमें जगन्नाथपुरी स्थित गोवर्धन पीठ के शंकराचार्य स्वामी निश्‍चलानन्द सरस्वती से अलकायदा ने कहा है कि वे इस्लाम स्वीकार कर लें। ऐसा न करने पर मठ को उड़ा दिया जाएगा। पुलिस विभाग ने इसकी पुष्टि कर दी है । पुलिस के द्वारा उन्हें ज़ेड श्रेणी की सुरक्षा उपलब्ध कराई गयी है। ऐसा कर सरकार ने अपने उत्तरदायित्व को पूरा कर दिया है, जबकि इस धमकी को राष्ट्र को दी गई धमकी के रूप में लेकर आतंकवादियों को उचित उत्तर दिया जाना चाहिए था। जनता और उनकी संस्कृति की रक्षा करना सत्ताधीशों का परम उत्तरदायित्व है। ऐसा लगता है कि वर्तमान नेतृत्व सत्ता-लालसा के कारण ऐसा करने में समर्थ नहीं है। उनमें कार्पण्य दोष स्पष्ट झलकता दिखाई दे रहा है ।• - जगदीश दुर्गेश जोशी

The Consequences of Crave and Negligent Defects | The Lord | Conspiracy | Individual Basis | Hindu Sanskrati | Afzal Guru | Swami Nishchalanand Saraswati | Protection | Constitution | Indian Culture | Vedic Motivational Speech in Hindi by Vaidik Motivational Speaker Acharya Dr. Sanjay Dev for Chatra - Pasur - Muktsar | News Portal, Current Articles & Magazine Divyayug in Chaupal - Patan - Mullanpur Dakha | दिव्ययुग | दिव्य युग |