तेल की शीशी ले आना। क्या? रामदयाल घूमने जा रहे थे। राम अपनी मां सुनीता के साथ छत पर घूम रहा था। वही से बोला था। रामदयाल ने सुना नहीं इसलिए फिर से पूछा था, 'क्या लाना है?' 'बुड्ढे, बहरा हो गया है क्या? सुनता नहीं है एक बार में।'
रामदयाल कुछ नहीं बोले। कुछ देर बाद अनिल का फोन आया था। पति से बात करने के बाद सुनीता ने फोन बेटे को पकड़ा दिया। राम काफी देर तक बातें करता रहा। सुशीला, राम की दादी नीचे गेट के पास कुर्सी डालकर बैठी थी। राम छत पर से ही जोर से बोला 'बुढियां नीचे बैठी है। उसे फोन दूं क्या?'
अनिल पुलिस में सर्विस करता है। उसने पत्नी और बेटे को मां बाप के पास आगरा छोड़ रखा है। राम पहली क्लास में पढता है। अनिल ने उसका एडमिशन शहर के महंगे इंग्लिश मीडियम स्कूल में करा रखा है। सुनीता अपने बेटे को घर से बाहर नहीं निकलने देती। उसे डर है कालोनी बच्चों के साथ रहकर वह बिगड़ जायेगा। उनके साथ खेलकर गंदी बातें सीखेगा।
बच्चों को बचपन से ही अच्छे संस्कार देने चाहिए ताकि बड़े होकर वह बड़ों का सम्मान करना सीखें और अच्छे नागरिक साबित हो। संस्कारिकत करने की सबसे पहली जिम्मेदारी मां की होती है। मां बच्चें को जिस सांचे में ढालती है, बच्चा उसी सांचे में ढल जाता है। अच्छे संस्कार बच्चे में न पड़ने का दोष हम स्कूल को या आसपास के वातावरण को नहीं दे सकते। अच्छे स्कूल में पढ़ने और घर से बाहर न निकलने देने के बावजूद राम में संस्कार नहीं हैं। उसकी वजह है, मां का रोकना। वह दादा-दादी से बत्तमीजी से पेश आता है। मां रोकती नहीं। बड़े होने पर यही उसकी आदत बन जाएगी। आज दादा-दादी हैं। कल मां-बाप के साथ भी वह ऐसा ही व्यवहार करेगा।