कुटिलता राजनीति का स्वाभाविक चरित्र रहा है। दुनिया के इतिहास में कई शातिर राजनीति का घटनाक्रम रहा है। हालांकि भारतीय राजनीति का प्रारम्भ राजधर्म के आधार पर हुआ। इसमें शातिर राजनीति का कभी स्थान नहीं रहा। राज्य व्यवस्था में जब शकुनि नीति का प्रवेश हुआ तो फिर कृष्ण की चतुर नीति से उसका सामना किया गया। करीब ढाई हजार वर्ष पूर्व के इतिहास को भारत के स्वर्ण युग का इतिहास माना जाता है। उस गौरवशाली भारत के जनक थे आचार्य विष्णु गुप्त चाणक्य, जिन्होंने सामान्य परिवार के बालक चन्द्रगुप्त में असाधारण प्रतिभा देखी। शिक्षा व संस्कार के द्वारा चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को न केवल महान भारत के सम्राट के योग्य बनाया वरन् चन्द्रगुप्त के सामने चाहे यूनान के सेल्युकस के हमले का संकट हो या छोटे गणराज्यों को मिलाकर सम्राट चन्द्रगुप्त के साम्राज्य में शामिल करने की चुनौती हो, इन सबका सामना करने में आचार्य चाणक्य की नीतियाँ सफल रही।
यदि महान उद्देश्य के लिए सफल नीतिकारों की श्रेणी निर्धारित करें तो श्रीकृष्ण, आचार्य चाणक्य और वर्तमान में सरदार पटेल को प्रथम पंक्ति में रखा जा सकता है। अपने महान उद्देश्य के लिए कूटनीति का सहारा लिया जाता है। वर्तमान वैश्विक राजनीति में कूटनीति की सफलता या विफलता के आधार पर भी सरकार में स्थापित नेतृत्व का मूल्यांकन होता है। इसी प्रकार जिसमें जितनी शक्ति है, उसकी बात का प्रभाव भी इसी आधार पर होता है। हाल ही में भारत के प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने पड़ोसी देशों के अलावा ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका आदि की यात्रा की। वहाँ उनका जो ऐतिहासिक स्वागत हुआ, जिस तरह अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने उनका स्वागत किया, जिस तरह उनकी ओबामा के साथ निजी चर्चा हुई और जब बराक ओबामा ने भारत आकर गणतन्त्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि के नाते भाग लेकर नरेन्द्र मोदी के गले मिलकर उनके कार्य की सराहना की, इससे दुनिया को यह सन्देश गया कि भारत और सबसे समृद्ध देश अमेरिका के बीच सम्बन्ध गहरे और सुदृढ़ हुए हैं । परमाणु ऊर्जा सन्धि में आने वाली कठिनाई के निराकरण की स्थिति बनने में इसे मोदी सरकार की सफल कूटनीति ही माना गया।
इस बारे में प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी के इस कथन की सार्थकता ही प्रमाणित हुई है कि यह मोदी का सम्मान नहीं वरन् सवा सौ करोड़ देशवासियों की ताकत के नाते मोदी उनके सामने होता है। यह भी भारत की कूटनीतिक सफलता ही मानी जायेगी कि अब अमेरिका और अन्य देश भारत के साथ बराबरी से आंख से आंख मिलाकर बात करते हैं। सुरक्षा के प्रति मोदी सरकार अधिक सतर्क है। पहले पाकिस्तान की ओर से सीमा पर हमले होते थे तो हमारे सैनिकों के सामने सरकार के आदेश अवरोध पैदा करते थे। अधिकांश समय सफेद झण्डा बताकर हमारे सैनिक संघर्ष को शान्त करने की कोशिश करते थे। हमारे वीर सैनिक हमलावरों को मुंहतोड़ उत्तर देने की स्थिति में नहीं थे। अब सेना और हमलावरों के हमले का गोली की भाषा में गोली और मोर्टार गोले के उत्तर उसी तरह के गोले से देने की खुली छूट है। अब जो भी हमले या घुसपैठ होती है उसमें हमलावर मारे जाते हैं। अब तो यह स्थिति है कि पाकिस्तान के सेना प्रमुख को चीन जाकर गुहार लगानी पड़ी कि भारतीय सेना हमारी ओर की सीमा में घुसकर रेन्जरों को मार रही है। अमेरिका के पेंटागन को भी अपनी रिपोर्ट में कहना पड़ा कि भारत सरकार अपनी सेना के लिए आधुनिक हथियार और अन्य संसाधनों की पूर्ति कर सुरक्षा को सुदृढ़ बना रही है। इस प्रकार नौ माह की मोदी सरकार की कूटनीतिक सफलता से भारत के बारे में देखने की दृष्टि में बदलाव आया है। अब तो भारत को दुनिया की ऐसी उभरती शक्ति माना जा रहा है, जिसके बिना वैश्विक दृष्टि से कोई निर्णय नहीं हो सकता।
एक रिपोर्ट के अनुसार भारत विकास दर में आगामी कुछ वर्षों में चीन से आगे निकल जायेगा। यही कारण है कि चीन भी भारत अमेरिका की निकटता से चिन्तित है। विदेश मन्त्री सुषमा स्वराज की चीन की यात्रा को महत्त्व की माना जा रहा है। चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग का भारत में प्रधानमन्त्री मोदी ने जो आत्मीय स्वागत किया, उसका जिक्र करते हुए चीन के राष्ट्रपति ने केन्द्रीय मन्त्री सुषमा स्वराज से प्रोटोकाल तोड़कर चर्चा की। नाथूला के रास्ते कैलाश मानसरोवर का मार्ग खोलने का निर्णय जिनपिंग की भारत यात्रा के समय हो चुका था, अब उस निर्णय को मूर्तरूप दिया जा रहा है। यह भी ध्यान देने की बात है कि अब चीन की ओर से घुसपैठ का सिलसिला थमा हुआ है। भारत की कूटनीतिक सफलता से सबसे अधिक दर्द पाकिस्तान को है । अभी तक जो प्रमुख राजनेता भारत आये वे पाकिस्तान भी जाते है, लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा जब भारत आये तो वे पाकिस्तान नहीं गये। इसे पाकिस्तान की शरीफ सरकार की कूटनीतिक असफलता माना जा रहा है। मुम्बई के 26/11 का सरगना हाफिज सईद खुलेआम भारत के खिलाफ जहर उगलते हुए कह रहा है कि भारत-अमेरिका मिलकर पाकिस्तान के खिलाफ साजिक कर रहे है। आन्तरिक दबाव के कारण ही पाक कब्जे की एसेम्बली में नवाज शरीफ को कश्मीर का राग अलापना पड़ा।
कश्मीर का मुद्दा ही पाकिस्तान का सियासी मुद्दा रहा है। जब वहाँ की सरकार संकट में होती है तो कश्मीर का रोना रोने से उसके आंसू पोछने वाले मिल जाते है। यह भी वास्तविकता है कि प्रत्येक देश अपने हित की दृष्टि से विदेश नीति निर्धारित करता है। अमेरिका सबसे समृद्ध देश है, इसलिए उसकी चौधराहट पूरी दुनिया में चलती है। उसकी नीतियों से ही राष्ट्र संघ संचालित होता है। राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता के लिए भारत का समर्थन देने की बात अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा ने की है। हालांकि ओबामा ने भारत यात्रा से लौटने के बाद ही पाकिस्तान को छह हजार करोड़ रूपये की मदद की घोषणा की है। जाहिर है और इस बात के पर्याप्त प्रमाण हैं कि पाकिस्तान को दी गई सहायता का दुरुपयोग जेहादी आतंकियों को सहायता देने के लिए होता है। इन्हीं डॉलरो से एके-47 की बन्दूकों की गोली निर्दोष नागरिकों के सीने छलनी करती है। इन्हीं आतंकियों के हमले के शिकार कई जवान हुए हैं और इन्हीं दरिन्दों ने कई निर्दोष भारतीयों का खून बहाया है। इस दोमुहीं चाल से भारत को चिन्ता होना स्वाभाविक है।
जेहादी आतंकवाद से एकजुट होकर संघर्ष करने की पहल अमेरिका द्वारा की जाती है, इस प्रकार की बातें ओबामा हर मंच से करते हैं। लेकिन कश्मीर के जेहादी आतंकियों को अमेरिका अलग प्रकार से परिभाषित करता है। इस प्रकार की नीति से आतंकियों के खिलाफ निर्णायक संघर्ष नहीं हो सकता। पाकिस्तान ने ही तालिबान के भस्मासुर को पैदा किया।
इस्लाम की कट्टर विचार धारा में से ही लश्कर, अलकायदा, आई.एस.और अन्य नामों से आतंकी दरिन्दे पैदा हो रहे हैं। इसी प्रकार इस्लामी स्टेट के दरिन्दे चाहे इराक-सीरिया की धरती को निर्दोष नागरिकों के खून से रंग रहे हों, चाहे वहाँ महिला-पुरुषों के सिर कलम किये जाते हों, इस हलालखाने को बन्द करने के लिए जरूरी है कि आतंकवाद की जड़ पर प्रहार किया जाये। पाकिस्तान के निर्माण से लेकर अभी तक का व्यवहार आतंकी रहा है। जेहादी आतंकवाद पाकिस्तान के खून में है। इसलिए पाकिस्तान में चल रहे जेहादी आतंकवाद के केन्द्रों को समाप्त करना होगा। 9/11 और 26/11 के हलमावरों के बीच अन्तर करना आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष को कमजोर ही करेगा। चाहे अमेरिका के लिए पाकिस्तान से मैत्री सम्बन्ध आवश्यक हो, लेकिन वह पाकिस्तान को दी जा रही सहायता पर तो इस शर्त के साथ रोक लगा सकता है कि पहले पाकिस्तान अपने यहाँ संचालित आतंकी केन्द्रों को समाप्त करे।
अब बराक ओबामा भारत को धार्मिक सहिष्णुता का उपदेश दे रहे हैं। समृद्ध देश के राष्ट्रपति होने से उन्हें सच्चाई के आधार पर कोई बात कहनी चाहिए। धार्मिक सहिष्णुता भारत के मूल चरित्र में आज से नहीं सदियों से रही है। यहाँ के बहुसंख्य हिन्दू समाज की सहिष्णुता का ही परिणाम है कि भारत में सर्वपन्थ समभाव और लोकतन्त्र की परिपक्वता है। इसी सहिष्णुता के कारण विदेशी ईसाई मिशनरियों को इसाईकरण की छूट मिली। इसी प्रकार मुस्लिम हमलावरों ने न केवल हमले किये, वरन् बलपूर्वक लोगों को इस्लाम स्वीकार करने के लिए बाध्य किया। इसका प्रमाण दिल्ली का शीशगंज गुरुद्वारा है जहाँ गुरु तेगबहादुर ने धर्म के लिए शहादत दी। इस सच्चाई को भी झुठलाया नहीं जा सकता है, भारत के अधिकांश मुस्लिम ईसाई हिन्दुओं में से ही बने है। इनके पूर्वज हिन्दू थे।
आलोचना सुनकर भी सहन करना सच्ची वीरता है-
दुनिया का सबसे अधिक सहिष्णु चरित्र भारत का है। यहाँ के धर्म, संस्कृति, परम्परा में सहिष्णुता का चरित्र रहा है। अमेरिका में तो अब अश्वेत राष्ट्रपति को राष्ट्रपति बनने का अवसर मिला, परन्तु भारत में तो तीन अल्पसंख्यक मुस्लिम राष्ट्रपति बन चुके हैं। मुख्य चुनाव आयोग से लेकर सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति मुस्लिम रहे हैं। अब भी महत्त्वपूर्ण पदों पर गैर हिन्दू हैं। इस प्रकार भारत को सहिष्णुता की सीख किसी से लेने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि भारत सहिष्णुता के लिए दुनिया का आदर्श मॉडल है। श्वेत-अश्वेत के बीच नफरत और दुराव तो आज भी विदेशों में दिखाई देती है। राजधर्म ही सर्वपन्थ समभाव (सेक्यूलर) है। भारत की मोदी सरकार ने भी ओबामा के कथन को नकार दिया है।