विशेष :

उन्नति करना प्रत्येक का अधिकार

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ओ3म् अनुहूत: पुनरेहि विद्वानुदयनं पथ:।
आरोहणमाक्रमणं जीवतो जीवतोऽयनम्॥ (अथर्ववेद5.30.7)

भावार्थ- हे मानव! (पथ:) मार्ग के (उत् अयनम्) चढाव को (विद्वान्) जानता हुआ और (अनुहूत:) प्रोत्साहित किया हुआ तू (पुन:) फिर (एहि) इस पथ पर आरोहण कर क्योंकि (आरोहणम्) उन्नति करना (आक्रमणम्) आगे बढना (जीवत: जीवत:) प्रत्येक जीव का, प्रत्येक मनुष्य का (अयनम्) मार्ग है, उद्देश्य है, लक्ष्य है।

शब्दार्थ- मन्त्र में हारे-थके और निरुत्साही व्यक्ति के लिए एक दिव्य सन्देश है- हे मानव! यदि तू प्रयत्न करके थक गया है तो क्या हुआ! तू हतोत्साह मत हो। उत्साह के घट रीते मत होने दे। आशा को अपने जीवन का सम्बल बनाकर फिर इस मार्ग पर आरोहण कर। मार्ग की चढाई को देखकर घबरा मत। सदा स्मरण रख कि तेरे लिए चढाई का मार्ग ही नियत है। आशा और उत्साह से इस मार्ग पर आगे-ही-आगे बढता जा। आगे बढना और उन्नति करना ही जीवन-मार्ग है। पीछे हटना और अवनति करना मृत्यु-मार्ग है। पथ कठिन है तो क्या हुआ! परीक्षा तो कठिनाई में ही होती है। निराश और हताश होने की आवश्यकता नहीं। आगे बढ, उन्नति कर, क्योंकि आगे बढना और उन्नति करना प्रत्येक जीवन का अधिकार है।

प्रत्येक व्यक्ति की उन्नति होगी। हाँ, उसके लिए बल लगाने की, पुरुषार्थ करने की तथा निराशा और दुर्बलता को मार भगाने की आवश्यकता है। - स्वामी जगदीश्‍वरानन्द सरस्वती (दिव्ययुग- नवंबर 2013)

Motivational Speech on Vedas in Hindi by Dr. Sanjay Dev
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