विशेष :

मन राम बने, तन अयोध्या

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चैत्र मास भारतीय और विशेषकर हिन्दू जनमानस के लिए काफी महत्वपूर्ण है। पहला तो इस महीने से नवसंवत्सर और नववर्ष की शुरुआत होती है। दूसरा इस माह रामनवमी भी आती है। रामनवमी अर्थात प्रभु श्रीराम, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का जन्मदिवस या अवतरण दिवस भी है। हिन्दू धर्मावलम्बियों के राम आदर्श हैं एक पुत्र के रूप में,एक राजा के रूप में,एक पति के रूप में,एक भाई के रूप में या फिर कहें वे हर रूप में एक आदर्श हैं। उनका मर्यादित आचरण हर व्यक्ति को सीखने के लिए प्रेरित करता है। यदि हम उनके आदर्शों को जीवन में उतार लें तो समाज और देश की सभी समस्याएं स्वत: समाप्त हो जाएंगी। या फिर दूसरे शब्दों में कहें तो समस्याएं उत्पन्न ही नहीं होंगी। ...और यही तो रामराज्य है, जिसकी कल्पना की जाती है, जिसके उदाहरण प्रस्तुत किए जाते हैं, लेकिन दुर्भाग्य से इस दिशा में सार्थक प्रयास नहीं किए जाते।

गोस्वामी तुलसीदासजी ने भी रामचरित मानस में कहा है- यजो सुख धाम राम अस नामा, अखिल लोक दायक विश्रामा । अर्थात राम का नाम सुख का धाम है और सम्पूर्ण लोकों को सुख और शान्ति देने वाला है। दूसरे शब्दों में हम कहें तो कह सकते हैं कि यदि मन को राम जैसा बना लिया जाए या उनके आदर्शों को जीवन में उतार लिया जाए तो तन (समाज और देश) स्वत: ही अयोध्या बन जाएगा।

जननी और जन्मभूमि को स्वर्ग से भी ज्यादा महान मानने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम राम के अवतरण दिवस पर हमें एक और संकल्प लेना चाहिए, ताकि हम अपनी जननी और जन्मभूमि (भारत माता) के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वाह कर सकें। अप्रैल और मई माह में भारत में लोकसभा चुनाव होने जा रहे हैं। अलग-अलग राज्यों में मतदान की तिथि अलग हो सकती है, लेकिन हमारा उद्देश्य एक होना चाहिए। हम ऐसे प्रत्याशियों का चयन करें, जो हमारी जन्मभूमि की रक्षा कर सकें। ऐसे नेता का चयन करें जो देश और देशवासियों के स्वाभिमान की रक्षा कर सके।

आपने टीवी पर सुना भी होगा कि ये लोकतन्त्र है, वोट हमारा मन्त्र है। लोकतन्त्र के इस महायज्ञ में सही मन्त्र का अर्थात सही उम्मीदवार का चयन कर अपनी आहुति दें। तभी यह महायज्ञ सार्थक होगा, लोकहितकारी होगा। मतदान जरूर करें। अपने देश और समाज के लिए कुछ समय तो निकाला ही जा सकता है।

अन्त में, दिव्ययुग के सभी पाठकों और शुभचिन्तकों को शुभकामनाएं, जिनके सहयोग से भारतीय संस्कृति को समर्पित इस पत्रिका ने अपनी बारह साल की यात्रा सफलतापूर्वक पूर्ण कर तेरहवें वर्ष में प्रवेश कर लिया है। हालांकि इस यात्रा के दौरान कई बाधाएं आईं, लेकिन अपने सुधी पाठकों के सहयोग से उन पर सफलता हासिल की और यह पत्रिका आपको नियमित रूप से मिल रही है। आशा है, आपका यह सहयोग हमें भविष्य में भी इसी तरह मिलता रहेगा और वैदिक संस्कृति की ध्वजवाहक यह पत्रिका आप तक इसी तरह पहुंचती रहेगी। सभी पाठकों तथा सहयोगियों को नववर्ष और रामनवमी की बहुत-बहुत शुभकामनाएं... जय श्रीराम... जय भारत...! - वृजेन्द्रसिंह झाला (दिव्ययुग - अप्रैल 2014)