जीवन में सुखी रहने का एक ही सर्वोत्तम उपाय है कि शुभ काम व परोपकार काम करना और उनको निश्चित भाव से ईश्वर की न्याय-व्यवस्था के भरोसे छोड़ देना इससे बढ़कर सुखी रहने अन्य उपाय नहीं है। कारण ईश्वर पूर्ण न्यायकारी है, वह हमारे माता पिता के समान है, हम सब उसके बच्चे हैं। कोई भी माता-पिता, अपने बच्चे को कभी भी दुःखी देखना नहीं चाहता और उनको अच्छी शिक्षा देना चाहता है ताकि बच्चा सही रास्ते पर चलते रहे और कोई गलत काम भी न करे। परमात्मा तो हमारे माता-पिताओं का भी माता- पिता है। इसकी न्याय-वयवस्था में तो किसी प्रकार का अन्याय, दुःख, अत्याचार, अभाव किसी कारण के बिना हो ही नहीं सकता, फिर हमको किस बात का डर है। जब हमको पूरा विश्वास हो जायेगा कि ईश्वर के घर में या उसकी न्याय व्यवस्था में कोई अन्य, पक्षपात, भेदभाव या कोई जबरदस्ती नहीं है तो हमें शुभ काम करके फल देने का अधिकार उसी के ऊपर छोड़ देना चाहिए। जैसे हम धन कमाकर तिजोरी में रख देते हैं कि यह रूपये हमारे सुरक्षित है। इन रुपयों को हम कभी भी जरूरत पड़ने पर काम ले सकते हैं। ठीक वैसे ही हमें शुभ कर्म करके, फल देने का पूरा अधिकार ईश्वर पर छोड़ देना चाहिए। जैसे तिजोरी में रखा रुपया सुरक्षित है और हमारी जरूरत पर काम आ सकता है, वैसे ही ईश्वर के सुपुर्द किया हुआ शुभकर्म भी सुरक्षित है और वह भी हमको सुखी बनाने में ही काम आवेगा। उन शुभ कर्मों को सुरक्षित रख देने पर हमें कभी भी दुःखी नहीं होना पड़ेगा। ऐसा हमें पूर्ण विश्वास रखना चाहिए।
हम मोटी भाषा में कहते हैं कि ''नेकी कर समुद्र में डाल।'' इसका भी यही अभिप्राय है कि अच्छे कर्म करो और फिर उसे भूल जाओ, कारण इन अच्छे कर्मों का फल हमें अच्छा मिलेगा ही, यह निश्चित है। इसलिए उन्हें भूलकर निश्चिन्त हो जाना ही अच्छा है। इसी प्रकार हम कहते हैं कि ''नेकी और पूछ-पूछ।'' इसका भी यही तात्पर्य है कि नेकी यानि शुभ कर्म या परोपकारी कर्म करने में पूछना क्या? यानि यह काम तो बिना पूछे ही कर लेना चाहिए। अब प्रश्न उठता है कि अच्छे शुभ कर्म हैं क्या? इसके लिए कुछ शुभ कर्म तो सर्वविदित हैं ही, जैसे अपने जीवन में ईमानदारी रखना किसी को धोखा न देना, किसी को दुःखी न करना। ईर्ष्या द्वेष, घृणा से सदा दूर रहना, सत्य बोलना, परोपकार कारना आदि। इसके उपरान्त और अधिक जानकारी के लिए ईश्वर ने हमें सृष्टि के आरम्भ में ही वेद-ज्ञान चार ऋषियों जिनके नाम हैं - अग्नि, वायु, आदित्य और अंगीरा, इनके मुख से चार वेद जिनके नाम हैं- ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्वेद, क्रमशः उच्चरित करवाये। उन वेदों में मनुष्य को क्या काम करने चाहिए क्या काम नहीं करने चाहिए। सब कुछ लिखा है। जीव का मुख्य व अन्तिम मोक्ष पाना है जो मनुष्य योनि से ही सम्भव है। मनुष्य को क्या-क्या काम करने से मोक्ष सम्भव है, यह सब वेदों में लिखा हुआ है। मनुष्य यदि वेदों में लिखे अनुसार अपना जीवन व्यतीत करता है तो उसको मृत्यु के बाद मोक्ष पाना निश्चित है। इसलिए मनुष्य को मोक्ष पाने के लिए वेदानुकूल चलना जरूरी है। इसलिए ईश्वर ने वेद ज्ञान मनुष्य उत्पत्ति के आरम्भ में दिया। यह शिक्षा का ग्रन्थ है।