आज कल शीत ऋतु प्रारम्भ हो गयी है। लोगों ने सर्दी के वस्त्र पहनने शुरू कर दिये हैं। इसलिए आज कल महिलाओं का सत्संग दो बजे से प्रारम्भ हो जाता है. अतः भोजन आदि कर कर के सभी माताएँ दो बजे तक पंचायत घर में आ गयी।
अधिक धुप में आना नहीं बनेगा, इसलिए आज माता मैत्रयी दस बजे ही आश्रम से निकलकर बारह बजे से पहले ही पंचायत घर में आ गयी। कुमारी सुशीला माता जी की प्रतीक्षा कर रही थी। अतः माता जी के आते ही कु. सुशीला माता जी को अपने घर भोजन विश्राम कर के दो बजे पंचायत घर में उपदेश देने के लिए ले आई। आज पंचायत घर महिलाओं से भरी भीड़ को देखकर बहुत प्रसन्न हुई तथा परन्तु अपने उपदेश की चौकी पर आकर बैठ गयी। आज सत्संग में आयी हुई नयी कन्याओं एवं महिलाओं को देखकर माता जी ने मन में विचार किया कि उन सभी महिलाओं को दुसरा कोई मन्त्र तो याद नहीं होगा। परन्तु गायत्री मन्त्र सभी को अवश्य याद होगा ये विचार कर माता जी ने सभी महिलाओं से तीन बार गायत्री मन्त्र से प्रार्थना करवाई, सभी महिलाओं ने हाथ जोड़ एवं आँखे बन्द कर श्रद्धा पूर्वक एक स्वर से गायत्री मन्त्र का उच्चारण किया। सभी महिलाओं का श्रद्धा पूर्वक एक स्वर से गायत्री मन्त्र का उच्चारण सुनकर माता जी बहुत ही प्रसन्न हुई तथा सरल भाषा में महर्षि स्वामी दयानन्द द्वारा रचित सत्यार्थप्रकाश के चौथे समुल्लास के अनुसार सब महिलाओं को गृहस्थ धर्म का उपदेश देते हुए कहा, कि मेरी पूजनीय माताओं और प्यारी बेटियों इस बात को तो आप जानती ही होंगी, कि संसार को चलाना पुरुषों को मार्गदर्शन देना तथा संसार में सुख शान्ति देना या घर में कलह बनाए रखना माताओं के हाथ में है।
इतिहास साक्षी है यदि जयचंद्र की पुत्री संयोगिता पृथ्विराज को अपने मोह में न फसाती तो हमारा देश पराधीन नहीं होता, क्योंकि जयचंद्र पृथ्विराज को नीचा दिखाने के लिए विदेशी मुस्लमान बादशाह मुहम्मद गोरी से जा मिला मुहम्मद गोरी ने अपनी भरी सेना के साथ पृथ्विराज को हराकर कैद कर लिया, यदि पृथ्विराज उस महिला के मोह में न पड़ता तो देश पराधीन नहीं होता इसी प्रकार शूर्पणखा यदि रावण को न भड़काती तो माता सीता का अपहरण न होता संक्षेप में यही कहा जा सकता है, की समाज के बनाने बिगाड़ने में माताओं का बहुत बड़ा हाथ होता है। अतः मेरा सभी माताओं बहनों से विशेष निवेदन है कि इतिहास की इन पुरानी घटनाओं से शिक्षा लेकर अपने परिवार तथा समाज को अच्छे मार्ग पर चलाने का यत्न करें। माताओं के लिए यह प्रसिद्ध वाक्य है की माता निर्माता भवति। इतिहास इस बात का साक्षी है कि समाज को मार्गदर्शन करने में महिलाओं का बहुत बड़ा हाथ है अतः मैं आप सब से निवेदन करती हूँ कि वे अपने परिवार का मार्ग दर्शन करें। जिससे हमारे देश में पुनः राम, कृष्ण, दयानन्द व गाँधी जैसे महापुरुष जन्म ले सकें। आशा है मेरे इस निवेदन पर सभी माताएँ बहनें पुत्रियाँ विशेष ध्यान देंगी।