विशेष :

झांसी की रानी

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jhansi ki rani laxmi bai

मनु नाना साहब पेशवा की मुँहबोली बहन थी और उन्हीं के यहाँ रहती थी। एक दिन नाना साहब हाथी की सवारी कर रहे थे तो मनु भी जिद्द करने लगी कि मैं भी हाथी की सवारी करूँगी। लेकिन उसे किसी ने भी सवारी नहीं करने दी। उसके पिता ने कहा, ’’तेरे भाग्य में हाथी नहीं है।’’ तब मनु ने रोते हुए कहा, “मेरे भाग्य में एक नहीं दस-दस हाथी हैं।’’

मनु की यह बात सच साबित हुई। 1848 ई. में उनका विवाह झांसी के राजा राव गंगाधर के साथ हुआ और उनके भाग्य में सिर्फ एक नहीं दस-दस हाथी थे। झांसी में ही उनका नाम मनु से लक्ष्मीबाई पड़ा और वहीं पर उन्होंने अपनी दासियों को घुड़सवारी सिखाई, बन्दूक व अन्य हथियार चलाने सिखाए। झांसी की रानी ने 1857 के विद्रोह में शत्रुओं के दाँत खट्टे कर दिये और वीरगति को प्राप्त हुई।

घोड़ों की परख
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई को घुड़सवारी का शौक तो था ही, साथ ही उन्हें घोड़ों की भी अच्छी परख थी।
एक बार घोड़ों का एक व्यापारी दो एक जैसे दिखने वाले घोड़े लेकर किले में आया। उसने महारानी को घोड़े दिखाकर उनका दाम लगाने की प्रार्थना की। सभी को यह विश्‍वास था कि महारानी एक जैसे दोनों घोड़ों का दाम भी एक ही लगाएंगी। परन्तु महारानी ने निरीक्षण करने के पश्‍चात् एक घोड़े का दाम तो एक हजार रुपए लगाया और दूसरे घोड़े का दाम मात्र 50 रूपए।

महारानी के निर्णय से सभी आश्‍चर्यचकित रह गये। जब राज्य के लोगों ने महारानी से कहा कि महारानी साहिबा! दोनों घोड़ों की शक्ल, रंग, कद-काठी में कोई फर्क नहीं है, फिर आपने दाम में इतना फर्क क्यों कर दिया? महारानी बोली- “जिस घोड़े का मूल्य मैंने एक हजार रुपए लगाया है, वह उत्तम कोटि का स्वस्थ घोड़ा है और जिस घोड़े का दाम मैंने 50 रुपए लगाया है, वह अन्दर ही अन्दर किसी रोग का शिकार है और उसकी आयु अधिक नहीं है।’’

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