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आर्यसमाजी और आर्यसमाज का संगठन

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Arya Samaj Sangthan

आर्यसमाज क्या वस्तु है? क्या वैदिकधर्मी मात्र के समूह का नाम आर्यसमाज है? या वैदिक धर्म के प्रचार के लिए जो सोसायटी बनाई गई है, वह आर्यसमाज है? दोनों प्रश्‍नों के उत्तर स्पष्ट हैं। यह आवश्यक नहीं कि वैदिकधर्मी मात्र आर्यसमाज के सदस्य हों, क्योंकि आर्यसमाज के सदस्य होने के लिए चन्दे की शर्त आवश्यक है। संन्यासी चन्दा नहीं दे सकते और न गरीब लोग दे सकते हैं। ऐसी दशा में वे लोग सामान्यतया आर्यसमाज के सभासद् नहीं बन सकते? तब क्या वे वैदिक-धर्मी (आर्यसमाजी) नहीं हैं? वे वैदिकधर्मी (आर्यसमाजी) अवश्य हैं। आर्यसमाज से बाहर भी वैदिक धर्मी (आर्यसमाजी) हैं और हमेशा रहेंगे। आर्यजगत् आर्यसमाज तक परिमित नहीं है। आर्यसमाज तो उन लोगों की संस्था है, जो वैदिक धर्म के प्रचार की अभिलाषा रखते हुए संगठन में शामिल होते हैं।

दृष्टान्त से यह विषय और अधिक स्पष्ट हो जाता है। एक शहर में तीन लाख निवासी निवास करते हैं। उनमें से वोद देने के अधिकारी केवल 25 हजार है और उनमें से भी म्युनिसिपल कमेटी के चुनाव में केवल 10 हजार निवासी भाग लेते हैं। ऐसी दशा में क्या वह 10 हजार निवासी ही शहर के निवासी समझे जाएँगे? उत्तर, हाँ में नहीं हो सकता। उसी प्रकार आर्यजगत् आर्यसमाज से बहुत बड़ा है। आर्यसमाज शब्द भी दो अभिप्रायों से प्रयुक्त होता है। सामान्यतया ऋषि दयानन्द की शिक्षाओं को स्वीकार करने वाला हर वैदिकधर्मी व्यक्ति आर्यसमाजी माना जाता है। आर्यजगत् के लिए आर्यसमाज शब्द का प्रयोग होता है। यह विस्तृत आर्यसमाज है।

आर्यसमाज एक निश्‍चित संगठन भी है। यह आवश्यक नहीं है कि प्रत्येक वैदिकधर्मी आर्यसमाज में सम्मिलित भी हो। आर्यसमाज से बाहर भी वैदिकधर्मी रह सकते हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि आर्यसमाज उन वैदिकधर्मियों का संघ है, जो वैदिक शिक्षाओं के प्रचार और रक्षणार्थ इकट्ठे होते हैं। वैदिकधर्मियों का संघ आर्यसमाज से बहुत बड़ा है। यदि आर्यजगत् और आर्यसमाज के भेद को ठीक प्रकार से समझ लें तो यह आक्षेप करने का अवसर नहीं रहता कि संगठन ने आर्यसमाज को संकुचित बना दिया है। संकुचित बनाने का दोष आर्यसमाज के नियमों के बनाने वाले के सिर नहीं मढा जा सकता। वह दोष तो हम लोगों का है जो वैदिक धर्म को आर्यसमाज तक परिमित समझ बैठे हैं। यदि हम इस बात को अवगत कर लें कि वैदिकधर्मियों का समूह आर्यसमाज की संस्था से अधिक विस्तृत है और आर्यसमाज उन लोगों का संगठन है जो वैदिक धर्म के प्रचार तथा रक्षण के लिए सभा में सम्मिलित होने की इच्छा रखते हैं तो सम्पूर्ण कठिनाई दूर हो जाती है।• साभारः आर्यसमाज का इतिहास, प्रथम भाग - प्रो. इन्द्र विद्यावाचस्पति (दिव्ययुग- नवम्बर 2015)

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