ओ3म् अतो विश्वान्यद्भुता चिकित्वाँ अभि पश्यति।
कृतानि या च कर्त्वा ॥ ऋग्वेद 1.25.11
ऋषिः आजीगर्तिः शुनःशेपः॥ देवता वरुणः॥ छन्दः गायत्री॥
विनय- इस संसार में हम बहुधा आश्चर्यचकित कर देने वाली घटनाएँ होते देखा करते हैं। इनका करने वाला कौन है? वैसे तो प्रतिदिन होने वाली बातों को भी यदि हम ध्यान से देखें तो हमको उनमें बड़ी अद्भुतता दीखेगी। ये अन्धकार और प्रकाश कितनी अद्भुत वस्तु हैं, जिनका परिवर्तन हम रोज सायं-प्रातः देखते हैं। नन्हे-से बीज से बड़ा भारी वृक्ष बन जाना, अभी चलते-फिरते, हँसते-खेलते दीखते मनुष्य का एकदम ऐसा सो जाना कि वह फिर कभी न जग सकेगा, जीव से जीव पैदा हो जाना- ये सब भी वास्तव में कितनी अद्भुत बातें हैं। परन्तु जब पृथिवी आग बरसाने लगती है और ज्वालामुखी फटने से सैकड़ों शहर बरबाद हो जाते हैं, भूकम्प आते हैं, बड़े-बड़े साम्राज्य देखते-देखते मिट जाते हैं, थोड़े ही दिनों में एक मनुष्य सितारे की तरह ऊँचा और यशस्वी हो जाता है या राजा रंक हो जाता है, तो इनमें अद्भुतता सभी अनुभव करते हैं। विज्ञान के आजकल के अद्भुत चमत्कारों को देखो। सिद्ध साधु-सन्तों द्वारा हुई चकित कर देने वाली बातों को देखो। ये सब संसार में एक-से-एक बढ़कर अद्भुत हैं। इन सब अद्भुतों का करने वाला कौन है? हम लोग समझते हैं कि इनके करने वाले मनुष्य हैं, मनुष्य की वैज्ञानिक शक्ति या संघशक्ति है या कुछ भी नहीं है, केवल प्रकृति का खेल है। पर जो ‘चिकित्वान्’ (जानने वाले) हैं, उन्हें तो सब ओर इन अद्भुतों का करने वाला वही इन्द्र (परमेश्वर) दीखता है। उसी से ये सब संसार के आश्चर्य निकलते दीखते हैं। इन सब विविध आश्चर्य को देखते हुए उनकी दृष्टि सदा उस एक इन्द्र पर ही रहती है। उनके लिए फिर ये आश्चर्य कुछ आश्चर्य नहीं रहते। प्रभु तो “गूँगे को वाचाल करने वाले और लंगड़े को भी पहाड़ लंघाने वाले’’ हैं ही। संसार में जो अद्भुत बातें हो चुकी है वे सब प्रभु की ही की हुई थीं। कल जो अद्भुत घटना होने वाली है, कोई तख्ता पलटने वाला है, वह भी उसी प्रभु की सहज लीला से ही होने वाला है। प्रभु की अपार लीला देखने वाले ज्ञानी इसमें कुछ आश्चर्य नहीं करते। वे अद्भुत-से-अद्भुत घटना में भी कार्यकारणभाव को देखते हैं।
अतः हे मनुष्यो ! संसार के इन आश्चर्यों को देखकर चकित होना छोड़ दो। किन्तु इनको देखकर इनके कर्त्ता को पहचानो। उस नट को पहचानो जो कि संसार को यह अद्भुत नाच नचा रहा है।
शब्दार्थ- चिकित्वान्=ज्ञानी पुरुष कृतानि या च कर्त्वा=जो की चुकी हैं और जो की जाएंगी विश्वानि अद्भुतानि=उन सब अद्भुत बातों को अतः=इस परमेश्वर से हुई अभिपश्यति=सब ओर देखता है। - आचार्य अभयदेव विद्यालंकार
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