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दुःस्वप्नः यम का शत्रु

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ओ3म् दौःष्वप्न्यं दौर्-जीवित्यं, रक्षो अभ्वम् अराय्यः।
दुर्णाम्नीः सर्वा दुर्वाचस्, ता अस्मन् नाशयामसि। (अथर्ववेद 7.23.1, 5.17.5)
यमः दुःस्वप्न-नाशन। अनुष्टुप्।
दुःस्वप्न और दुर्जीवन को, दानवता और गरीबी को।
बदनाम सभी दुर्वाणी को, उन सबको निज से नाश करें॥
प्रस्तुत मन्त्र का दृष्टिकोण (ऋषि) यम है। जब यम जीवन का दृष्टिकोण होता है तो दुःस्वप्न का नाश होता है। यदि दुःस्वप्न को नष्ट नहीं किया गया तो जीवन नष्ट हो जाता है। दुःस्वप्न केवल अपना ही जीवन नष्ट नहीं करता, बल्कि विश्‍व का जीवन नष्ट कर देता है।

’स्वप्न’ शब्द का लाक्षणिक अर्थ है ऊँची कल्पना। यह दो तरह का होता है। एक स्वप्न ऐसा होता है जिससे संसार का कल्याण होता है, इसे सुस्वप्न कहते हैं। दूसरा स्वप्न ऐसा होता है जिससे संसार में भ्रष्टाचार फैलता है, इसे दुःस्वप्न कहते हैं। सुस्वप्न का स्वार्थ इतना व्यापक होता है कि उसका सब कर्म परार्थ हो जाता है। दुःस्वप्न का स्वार्थ इतना संकीर्ण होता है कि उसका सब कर्म दूसरों को दुखी बनाकर पूरा होता है।

स्वप्न प्रायः पूरा नहीं होता, किन्तु उसका प्रभाव मस्तिष्क पर अमिट होता है। खयाली पुलाव खाने का कृत्य उस स्वप्न का दूसरा नाम है जिसे दुःस्वप्न कहते हैं। यह ऐसी इच्छा है जिससे कर्महीनता, दीर्घसूत्रता और भाग्य पर जीने की मनीषा का जन्म होता है। जीवन इससे दुःजीवन में बदल जाता है। इससे अतृप्ति होती है, भूख बढ़ती है। बुभुक्षितः किम् न करोति पापम्?

दुःख का जनक वह स्वयं है जो दुखी है। अपने पौरुष को ठुकराकर भाग्य के बल पर जीने वाला सदा दुखी होता है। इसको दूर करने का उपाय है संयम। काम और क्रोध दो शत्रु हैं जो जीवन को निर्बल बनाते हैं। इनसे मानव दुखी होता है। जितना इनका निराकरण होता है उतना सुख बढ़ता है, शान्ति बढ़ती है। किन्तु रस तब आता है जब परम आनन्द की प्राप्ति होती है और वह आनन्द ब्रह्मचर्य से मिलता है।दुः

स्वप्न और दुर्जीवन का परिणाम दानवता है। जब सामर्थ्य से ऊँची इच्छा पूरी नहीं होती तो मनुष्य चोरी (स्तेय) का दामन पकड़ लेता है। चोरी शैतान है जो जीवन को दुखी बनाता है। जीवन का यह दुःख मनुष्य को शैतानियत के मार्ग पर चला देता है। शैतानियत दानवता को जन्म देती है और मानवता रूप शिशु को खा जाती है। शैतान हिंसा का पुत्र है। दानवता से हिंसा पैदा होती है और मानवता पर आघात करती रहती है। मानवता उसके आघात से छटपटाती हुई निरन्तर निर्बल बनती जाती है। अहिंसा ही दानवता से मुक्त कर सकती है।

चोरी तथा डकैती से काम और क्रोध बढ़ते हैं, स्वेच्छाचार, अत्याचार बढ़ते हैं, दानवता की जड़ मजबूत होती है और संग्रह करने की दुवृत्ति गरीबी की जड़ में पानी देती है। गरीब कौन है? गरीब वह है जो अतृप्त है। अमीर वह है जो तृप्त है। गरीब वह है जो असन्तुष्ट है। अमीर वह है जो सन्तुष्ट है। करोड़ों-अरबों की सम्पत्ति को जोड़कर और धन की प्राप्ति में चिन्तित जो मनुष्य रात में चैन की नीन्द नहीं सो पाता, क्या वह धनी है, अमीर है? नहीं वह गरीब है। अमीर तो वह है जो नमक-रोटी खाकर पानी पीता है और झोंपड़ी के बाहर प्रकृति की गोद में कान में अंगुली डाले बिरहा गाता हुआ चैन से, प्रेम से सोता है। न उसे सम्पत्ति की रक्षा का भय है और न जीवन की परवाह। संग्रह गरीबी की जड़ है, तो अंसग्रह अमीरी का वरदान। तुलसी ने ठीक लिखा है-
पानी बाढ़े नाव में, घर में बाढ़े दाम।
दोऊ हाथ उलीचिए, यही सयानो काम॥
यह सही है कि कुछ लोग धन ही पैदा करते हैं। भगवान् उन्हें धन देता है, वे भोगते हैं। किन्तु वे यह भूल जाते हैं कि वह भोग ही के लिए नहीं मिला है, धर्म के लिए भी मिला है। इसलिए त्याग की आवश्यकता है, असंग्रह की आवश्यकता है।

इस असंग्रह के कारण जो संग्रह होता है उसकी गोपनीयता के कारण वाणी का दुरुपयोग होता है। यही नहीं, इससे जो अहंकार पैदा होता है वह वाणी को और भी कलुषित करता है। तब सत्य-असत्य में बदल जाता है।

यह रूप दृष्टिकोण दुःस्वप्न, दुर्जीवन, दानवता, गरीबी और कुवाणी से अपना अस्तित्व खोता रहता है। अतः इनका नाश करना चाहिए। यम पांच हैं और यम के विरोधी भी पांच है।
यम के विरोधी                          यम
दुःस्वप्न-स्तेय (चोरी)                अ-स्तेय
दुर्जीवन-भोग                           ब्रह्म-चर्य
रक्षः (दानवता) हिंसा                 अ-हिंसा
अ-राय्य (गरीबी)-संग्रह              अ-संग्रह (अ-परिग्रह)
कुवाणी-असत्य                         सत्य

इस प्रकार दुःस्वप्न को अस्तेय से, दुर्जीवन को ब्रह्मचर्य से, रक्षः या दानवता को अहिंसा से, अराय्य या गरीबी को असंग्रह से और कुवाणी को सत्य से दूर करने का प्रयास करना चाहिए। इसका ज्यों-ज्यों नाश होता जाता है संसार में जीना अच्छा लगता है। इससे बड़ी शान्ति मिलती है और तब ईश्‍वर पर विश्‍वास जम जाता है। क्योंकि तब वह अकारण ही हमारी सहायता करने के लिए हमेशा तैयार रहता है।

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