भारत के पूर्व राष्ट्रपति एवं विश्वप्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम आगामी 2020 तक भारत को जैसा देखना चाहते हैं, वह इस प्रकार है-
1. शहरी व ग्रामीण का अन्तर कम हो।
2. ऊर्जा और जल की पर्याप्त उपलब्धता व समान वितरण।
3. कृषि उद्योग व सेवाक्षेत्र साथ मिलकर काम करें।
4. सामाजिक अथवा आर्थिक भेदभाव के कारण किसी योग्य विद्यार्थी को शिक्षा से वंचित न रहना पड़े।
5. जो निवेशकों, वैज्ञानिकों और योग्य व्यक्तियों को प्रिय हो।
6. उच्चस्तरीय स्वास्थ्य सुविधाएं हों।
7. सरकार पारदर्शी और भ्रष्टाचार रहित हो। गरीबी और अशिक्षा समाप्त हो।
8. महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध न हों। समाज का कोई तबका अलग-थलग महसूस न करे।
9. समृद्ध, स्वच्छ, सुरक्षित और शान्त राष्ट्र सतत विकास के पथ पर अग्रसर हो।
10. ऐसा देश बने जिसे अपने नेतृत्व पर गर्व हो और जिसे दुनियाँ में सबसे बेहतर स्थान समझा जाए।
डॉ. कलाम के ये स्वप्न, ये आकांक्षाएँ उस स्वर्णिम युग का स्मरण कराते हैं, जब भारत का नेतृत्व महान् सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य, अपने श्रेष्ठतम मार्गदर्शक आचार्य चाणक्य के मार्गदर्शन में कर रहे थे, जिन्होंने न केवल बिना भेदभाव के न्यायसंगत प्रशासन का संचालन ही किया, बल्कि अपने उज्ज्वल चरित्र के प्रकाश से सम्पूर्ण भारत को आलोकित कर दिया था। यह वह युग था जब लोगों को चोरी, लूट व हत्या का भय नहीं था। महिलाएँ सम्मानित थी और बाल-गोपाल सुरक्षित थे। विदेशी हमलों से देश सुरक्षित था। भारत का इस महिमा के प्रशंसक विदेशी यात्री थे। वर्तमान भारत के सन्दर्भ में डॉ. कलाम जी की ये आकांक्षाएँ उस वैज्ञानिक सोच की उपज हैं, जिसके अनुसार आम आदमी के चरित्र, सामाजिक व आर्थिक स्थिति आदि पर गंभीरता से अध्ययन, चिन्तन व मनन किया गया प्रतीत होता है। धन्य है ये चिन्तन और धन्य है चिन्तक, जिसने मत-सम्प्रदायों के चौखटों से बाहर निकलकर भारत को भेदभावरहित, सुखी-सम्पन्न, सुरक्षित राष्ट्र के रूप में देखने की आकांक्षा अभिव्यक्त की। भारत का यह महान् वैज्ञानिक चिन्तक आगामी सन् 2020 तक अपनी आकांक्षाओं के अनुरूप भारत को देखना चाहता है। परन्तु यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि क्या इस अल्पावधि में ऐसा होना सम्भव है? हाँ, ऐसा होना सम्भव है। डॉ. कलाम ने इस सन्दर्भ में युवा पीढ़ी का आह्वान करते हुए कहा है- “आई केन डू इट, वी केन डू इट, इंडिया केन डू इट’’ (मैं यह कर सकता हूँ, हम यह कर सकते हैं, भारत यह कर सकता है)। यह सब कुछ तभी सम्भव है, जब ऊँच-नीच के भेदभाव, धर्म-सम्प्रदायों के चौखटों में आबद्ध असंख्य नागरिक, चरित्रहीनता के कारण भ्रष्टाचारी चरित्र, राष्ट्र व राष्ट्रीयता के प्रति उदासीनता के कारण आर्थिक विषमता और वे समस्त कारण जिन्होंने हमें अपने उत्तरदायित्वों के प्रति संवेदनाशून्य बना रखा है, इन सब क्या और क्यों के प्रश्नों का उत्तर ढूंढ निकालना होगा। साथ ही इनके निराकरण के उपायों की भी खोज करनी होगी। कहीं यह खोज पुस्तकों के प्रकाशन तक ही सीमित न रह जाए, इसे प्रभावशाली ढंग से व्यावहारिक रूप देने की जिद भी मन-मस्तिष्क में संजोना होगी।
डॉ. कलाम की यह अपेक्षा कि हम भारत को एक ऐसा देश बनाएं, जिसे अपने नेतृत्व पर गर्व हो और जिसे दुनिया में सबसे बेहतर स्थान समझा जाए, वन्दनीय है। इस महान् स्थिति को स्थापित करने के लिए भारत के पास उपाय हैं, क्योंकि वह अतीत में ‘जगद्गुरु’ के वैभव से गौरवान्वित हो चुका है। आवश्यकता इस बात की है कि हमारे युवा वैज्ञानिक अपने वैज्ञानिक चिन्तन व सोच से उन तत्वों को खोज निकालें, जिनके आधार पर भारत को विश्व में गौरवान्वित किया जा सके। अपेक्षा है उस नेतृत्व की जिस पर गर्व किया जा सके। उस परिवर्तन के लिए वैज्ञानिक आधार पर क्या-क्यों, कैसे की खोज अपेक्षित है। - प्रा. जगदीश दुर्गेश जोशी
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