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सद्गृहस्थ सन्त भक्त रामशरण दास

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हिन्दी-जगत् के वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार तथा हमारे प्रेमी आदरणीय श्री शिवकुमार गोयल ने अपने महान् पिता पूज्य भक्त रामशरणदास जी के व्यकित्व एवं कृतित्व पर आधारित ‘सद्गृहस्थ सन्त भक्त रामशरणदास’ नामक ग्रन्थ भेंट स्वरूप प्रेषित किया है। ग्रन्थ प्राप्त होते ही पढ़ना आरम्भ किया तो इतना प्रेरक एवं मनमोहक लगा कि एक ही बैठक में बहुत से अंशों को पढ़ गया। इस ग्रन्थ में भक्त जी द्वारा लिखित कुछ महत्वपूर्ण लेखों का संग्रह भी है। भक्त जी द्वारा लिखित कुछ महत्वपूर्ण विचार पाठकों के लाभार्थ प्रस्तुत हैं-

1. अमेरिका की विशेषता विज्ञान से है, इंग्लैण्ड की पहचान धन से है, जापान की विशेषता नई-नई तकनीक से है, परन्तु भारतवर्ष की पहचान ‘धर्म’ से है। धर्म प्राणिमात्र को जीने का अधिकार देता है। इसी तत्त्व के कारण भारत जगद्गुरु बना। धर्म के बिना भारत मुर्दा है। इसीलिए भारत को ‘धर्मप्राण’ कहा जाता है।

2. मेरा सनातन धर्म खरबूजे की तरह है, बाहर से देखो तो फांक-फांक, अन्दर से देखो तो बिल्कुल एक। दूसरे पन्थ, मजहब, ‘रिलीजन’ सन्तरे की भांति हैं, बाहर से देखने में एक, किन्तु अन्दर फांक-फांक हुई पड़ी है। करोड़ों-अरबों प्राणियों में अलग-अलग रूपों में दिखने वाला परब्रह्म परमात्मा ही विद्यमान है, यही मानकर मैं हिन्दू ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ आदि प्रार्थना करता हूँ।

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3. तुच्छ स्वार्थों और प्रलोभनों में फंसे हुए कुछ लोगों ने भारतीय संस्कृति को समझा ही नहीं है। भारतीय संस्कृति सर्वथा सर्वदा कल्याणमूलक है, घृणामूलक कदापि नहीं। इस संस्कृति को आत्मसात् करने वाले अनेक भक्तों, वीरों और पुण्यात्माओं ने सबके ही कल्याण की कामना परम प्रभु से की है, न कि व्यक्तिगत सुख-सुविधाओं की।

4. माता-पिता की सेवा न कर उनका अपमान करने वाला कितना भी पूजा-पाठ करे, भगवान उससे कभी प्रसन्न नहीं हो सकते। इसी प्रकार पति की सेवा न करके जो पत्नी उससे दुर्वचन बोलती है, बात-बात पर कलह करती है, वह चाहे कितने भी व्रत रखे, पूजापाठ करे, नरक की यातनाओं से नहीं बच सकती। इसी प्रकार स्त्री का उत्पीड़न करने वाला पुरुष भी नरकगामी होता है। इसलिए सभी सद्गृहस्थों को माता-पिता, पुत्र, पति व पत्नी को रामायण से प्रेरणा लेकर एक-दूसरे के प्रति अपने कर्त्तव्य का पालन करना चाहिए। यही जीवन की सार्थकता है।

5. वाणी और जिह्वा पर नियन्त्रण करने से पारिवारिक एवं सामाजिक जीवन सुखमय होता है। इसी प्रकार के अनेक दिव्य विचार एवं प्रेरक प्रसंग इस ग्रन्थ में भरे पड़े हैं। भक्तजी की यशस्वी परम्परा को उनके यशस्वी सुपुत्र श्री शिवकुमार गोयल तथा पौत्र आगे बढ़ा रहे हैं। यह परम्परा इसी प्रकार जारी रहे, यही परमेश्‍वर से प्रार्थना है।

पुस्तक का कागज एवं छपाई अत्युत्तम है तथा मुखपृष्ठ आकर्षक एवं जिल्द मजबूत है। ऐसे ग्रन्थ के सम्पादक के लिए सम्पादकद्वय एवं प्रकाशन हेतु ‘अनिल प्रकाशन दिल्ली’ को बहुत-बहुत बधाई। यह पुस्तक देश-धर्मप्रेमी प्रत्येक व्यक्ति को पढ़नी चाहिए। - डॉ. संजयदेव (दिव्ययुग- अक्टूबर 2008)