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देश के सबसे बड़े दुश्मन हैं भ्रष्टाचारी

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इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने देश में व्याप्त भ्रष्टाचार पर चिन्ता जताते हुए कहा है कि इसके कारण देश टूट भी सकता है। यह चिन्ता एक विशेष सन्दर्भ में प्रकट की गई है, जबकि उत्तर प्रदेश में 2001 से 2007 तक हुए पैंतीस हजार करोड़ रुपये के अनाज घोटाले पर फैसला देते हुए टिप्पणी की। गरीबों के मुँह की रोटी छीनकर किए गए भ्रष्टाचार के कारण देश की एकता पर खतरा पैदा हो गया है। ऐसी स्थिति में यदि न्यायपालिका चुप रही या असहाय हुई तो देश से लोकतन्त्र खत्म हो जाएगा। समय रहते यदि भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध सख्त कदम नहीं उठाया गया तो गरीब जनता कानून हाथ में ले लेगी और भ्रष्टाचारियों को कसरत से पीटा जाएगा। यह कितनी शर्मनाक बात है कि गरीबों के लिए निर्धारित अनाज को भ्रष्टाचारियों ने विदेशों और खुले बाजार में बेच दिया। जरूरतमन्द गरीब दाने-दाने के लिए तरसता रहा। भारत में गरीबी की रेखा के नीचे जीने वाले समुदाय की संख्या सर्वाधिक है और वही लूटा जा रहा है। इन्दौर के एक प्रसिद्ध समाचार पत्र में प्रकाशित एक समाचार के अनुसार मध्यम वर्ग के छोटे-छोटे कर्मचारी भी गरीब वर्ग के लोगों को लूट रहे हैं। समाचार में बताया गया है कि गरीब वर्ग के लोगों से राशनकार्ड बनाने, उनका नवीनीकरण करने तथा अन्य छोटे-छोटे कामों के लिए भी सौ-सौ रुपयों की रिश्‍वत मांगी जा रही है। ऐसे कई मामले उजागर हो चुके हैं, परन्तु उनके विरुद्ध प्रभावशाली कार्यवाही न होने से उनके होंसले बुलन्द होना स्वाभाविक है। शोषित-पीड़ित वर्ग परिवार के भरण-पोषण के लिए अभी तो सब कुछ सहन कर रहा है। इसी प्रकार मध्यमवर्ग भी लूटा जा रहा है, बड़ों और अधिकार प्राप्त लोगों द्वारा। बेईमानी और भ्रष्टाचार के आधार पर उनकी वैभव-सम्पन्नता बढ़ती जा रही है। आश्‍चर्य तो इस बात का है कि इसी वर्ग के कुछ ईमानदार लोगों को मूर्ख समझा जा रहा है।

वर्तमान में शोषित-पीड़ित गरीब वर्ग जो बहुसंख्यक होते हुए भी असंगठित है, यदि वह संगठित हो जाता है, तो सम्भव है वह भ्रष्ट तत्वों पर अपने अस्तित्व के लिए आक्रामक हो सकता है। ऐसी ही कुछ छोटी-बड़ी छुट-पुट घटनाएं होती भी रहती हैं, जो आए दिनों समाचार पत्रों में प्रकाशित होती रहती हैं। एक दिन ये गतिविधियाँ संगठित होकर क्या देश के लिए खतरा नहीं बन सकती? बन सकती हैं और इसकी जवाबदारी पूर्ण रूप से वैभव सम्पन्न भ्रष्टाचारियों की ही होगी, जिनके भ्रष्ट आचरण का ही यह परिणाम हो सकता है। देश में किसानों की खस्ता हालत व आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं से चिन्तित सुप्रीम कोर्ट ने विशेष-टिप्पणी की है- “ऐसा लगता है कि भारत ब्रिटिश साम्राज्यवाद से मुक्त होने के बाद ऐसे नए वर्ग के चंगुल में फंस गया है, जो साम्राज्यवादी सिद्धान्तों के सहारे ही शासन करना चाहता है।’’ इस फैसले में न्यायाधीशों ने किसानों द्वारा आत्महत्या की बढ़ती घटनाओें पर चिन्ता जताई है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरों के आंकड़ों का जिक्र करते हुए न्यायाधीशों ने कहा कि भारत में 1997 से 2008 तक दो लाख किसानों ने आत्महत्या की है, जो मानवीय इतिहास में दर्ज आत्महत्या के सबसे अधिक मामले हैं। है न यह चरित्रहीन भ्रष्टाचारियों के काले कारनामों के दुष्परिणाम।

अभी-अभी एक घटना और प्रकाश में आई है, वह इस प्रकार है- “पाक हैकरों ने लगाई देश की सुरक्षा में सेंध। सी.बी.आई.की वेबसाईट है। पाकिस्तान साइबर आर्मी नाम के संगठन ने सी.बी.आई की साइट पर ‘पाकिस्तान जिन्दाबाद’ का नारा लिख दिया है।’’

भ्रष्टाचारियों के आचरण की कोई राष्ट्रीय सीमा नहीं होती। वे अपनी दूषित कामना की पूर्ति के लिए राष्ट्र की सीमा का भी उल्लंघन बिना हिचक के कर सकते हैं। इस आधार पर न्यायपालिका की चिन्ता सावधानी बरतने का संकेत दे रही है कि भ्रष्टाचारी देश के दुश्मन नम्बर वन हैं। - प्रा. जगदीश दुर्गेश जोशी

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