विशेष :

दासता का रोग

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खुदीराम बोस बलिदान दिवस : 11 अगस्त
सात-आठ वर्ष का बालक हमेशा सोचता रहता था कि भारत देश हमारा है, फिर ये लाल मुँह वाले तथा मंजरी आँखों वाले अंग्रेज यहाँ क्यों शासन करते हैं? मैं बड़ा होकर इनको यहाँ से निकाल दूँगा। इन्हीं विचारों को लेकर वह घूमते हुए एक मंदिर में पहुँचा तथा देखा कि कुछ लोग मंदिर के सामने खुले आसमान के नीचे लेटे हुए हैं।

बालक ने एक व्यक्ति से पूछा- “ये लोग यहाँ इस प्रकार क्यों लेटे हुए हैं?‘’ उस व्यक्ति ने कहा- “ये लोग किसी न किसी रोग से पीड़ित हैं। जब तक भगवान स्वप्न में दर्शन देकर रोगमुक्ति का वचन न दें, तब तक ये अन्न-जल ग्रहण नहीं करेंगे।’‘

बालक क्षणभर चुप रहा और बुदबुदाया- “क्या मुझे भी एक दिन इसी प्रकार लेटना पड़ेगा?’’ उस व्यक्ति ने पूछा- “तुमको कौनसा रोग हो गया है?“ बालक ने दुखी होकर कहा- “दासता से अधिक बुरा कौन सा रोग है? मुझे किसी भी प्रकार उससे देश को मुक्त कराना होगा।“ वह बालक था खुदीराम बोस, जिसने सोलह वर्ष की आयु में ही क्रूर अत्याचारी अंग्रेज मजिस्ट्रेट को मारने के लिए बम फेंका था। मजिस्ट्रेट तो धोखे से बच गया। दण्डस्वरूप उसी मजिस्ट्रेट ने खुदीराम को फाँसी की सजा सुनाई।

खुदीराम को कारागृह में भी चिंता नहीं थी। वह सोचता था कि जितनी जल्दी फाँसी होगी, उतनी जल्दी पुनः जन्म लेकर मातृभूमि की आजादी के लिए संघर्ष करूँगा। - रेनु घोष

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