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चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नववर्ष का प्रारम्भ

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जब हमारे देश की आजादी के दीवानों ने स्वतन्त्रता आन्दोलन छेड़ा था, तो उनके हृदय में भारत को आजाद करके वैदिक संस्कृति को अपनाकर देश को खुशहाल करने का संकल्प था। परन्तु अंग्रेजों ने सत्ता सौंपने से पूर्व देश को मानसिक गुलाम करने के षड्यन्त्र को क्रियान्वित किया था।

आज पूरे देश के लोग ईसवी नववर्ष का स्वागत करते हुए ग्रीटिंग कार्ड आदि के माध्यम से अरबों रुपये खर्च कर देते हैं। जो मूल रूप से स्वयं को हिन्दू या आर्य कहते हैं, वही लोग ऐसा कर रहे हैं। आज रेडियो, दूरदर्शन आदि के माध्यम से सौन्दर्य बढ़ाने के नकली उपाय सौन्दर्य प्रसाधन आदि को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसे तैयार करने में गाय के खून, चर्बी आदि हिंसात्मक पदार्थों का उपयोग किया जाता है।

अंग्रेजों ने भारत और भारतीय संस्कृति को बर्बाद करने के लिए भारत के युवक-युवतियों को निशाना बनाते हुए उनके चरित्र का नाश किया और भोग-विलास को बढ़ावा देकर त्याग की भावना नष्ट की। समर्पण व स्नेह माताओं से दूर किया।

ईसामसीह के जन्म के बाद से ईसवी सन का प्रारम्भ हुआ। इसके अनुसार 2019 वाँ वर्ष प्रारम्भ हो गया है। परन्तु भारतीय संस्कृति के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नया वर्ष मनाया जाता है। इसमें शिशिर ऋतु का समापन तथा पौधों में नई कोंपलें लगती हैं, पुराने पत्ते गिरते हैं। प्रकृति का सौन्दर्यीकरण ईश्‍वर की व्यवस्था में होता हैा। किसान उसे देखकर प्रसन्न होता है। अपनी प्रसन्नता को व्यक्त करते हुए हजारों की संख्या में लोग एकत्रित होकर यज्ञ-हवन करते थे। हवन से पर्यावरण शुद्ध होता था। इच्छानुसार वर्षा होती थी। रोग का नाश और चरित्र की रक्षा होती थी। यज्ञ से प्रेरणा मिलती थी कि जिस प्रकार यज्ञकुण्ड में हवन सामग्री डालने से अग्नि के माध्यम से सुगन्ध फैलती है, इससे प्राणिमात्र का कल्याण होता है। इसी प्रकार हमारे प्रत्येक कार्य से प्राणिमात्र का कल्याण हो, ऐसा प्रयास करते थे।

आर्यावर्त्त की करोड़ों वर्ष पुरानी सभ्यता का नाश करने का प्रयास अंग्रेजों ने नग्नता, काम-वासना आदि के माध्यम से किया। हमारी सभ्यता में सूर्योदय से पूर्व उठकर अपने दैनिक कर्म को करने की परम्परा है, जबकि पाश्‍चात्य सभ्यता में दिन निकलने तक सोने वाले को महान कहते हैं। आज हमारे देश के माता-पिता, भाई-बहन आदि गन्दे-गन्दे, नाच-गान करते हुए नये वर्ष का स्वागत करते हैं, जबकि वैदिक धर्म में ईश्‍वर का स्मरण करते हुए हवन के माध्यम से सुगन्धि को फैलाकर अन्धकार से प्रकाश, अज्ञान से ज्ञान की ओर बढ़ने के लिए ईश्‍वर से प्रार्थना की जाती थी। लोग एक दूसरे के दुःख में सहयोग करते थे।

आज भारत के लोगों द्वारा पाश्‍चात्य संस्कृति को अपनाने के कारण लोग हमारे ही धन को छल से लूटकर हमारे ऊपर धर्मान्तरण का जाल फैलाकर हमारे ही भाइयों को शत्रु बना रहे हैं। हम लोग अपने ही भाई को अपने से अलग करके अपना अंग काटने को पवित्रता मानने लगे है। भारतीय बच्चे माँ को मम्मी, पिता को डैडी कहते हुए जीवित माता-पिता को मृत घोषित करते हैं। ये शब्द सुनकर माता-पिता बहुत प्रसन्न होते हैं। ऐसा लगता है कि उनका बेटा बहुत बड़ा कीर्तिमान स्थापित कर रहा है। जब वही बच्चा अपने बूढ़े माता-पिता को घर से निकाल देता है, तब बेटे की शिकायत करते हुए बिलखते हैं। परन्तु तब बहुत देर हो चुकी होती है।

ऐसी समस्या से बचने का एकमात्र उपाय है कि हम इस चुनौती को स्वीकार करते हुए हवन की परम्परा को अपनायें, स्वयं को उर्ध्वगामी बनाये। गायों की रक्षा करें। वैदिक वाक्यों का प्रचार करें। नग्नता पूर्ण रूप से बन्द करें। कान्वेन्ट शिक्षा प्रणाली का समापन करके वैदिक शिक्षा का प्रारम्भ करें। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को नया वर्ष स्वीकार करें। फसल की रक्षा करें। ईश्‍वर का धन्यवाद यज्ञ द्वारा करें। सद्विचारों के प्रचारक बनकर बलिदानी देशभक्तों के स्वप्न को साकार करने की परम्परा को आगे बढ़ायें, जिससे आर्यावर्त्त पुनः जगद्गुरु बनकर विश्‍व का मार्गदर्शन कर सके। - दयाशंकर विद्यालंकार

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