फाल्गुन मास की पूर्णिमा को प्रतिवर्ष होली का पर्व मनाया जाता है। आधुनिक युग में हमारा प्रत्येक पर्व विकृत हो चुका है। होली पर जितना हुल्लड़ होता है उतना अन्य पर्व पर नहीं होता। शराब पीकर परस्पर गन्दे रंग, पानी, कीचड़ आदि फेंकना कहाँ की शालीनता है? आजकल तो युवक इतने बिगड़ गए हैं कि होली से कई दिन पहले ही विशेषकर माता-बहनों पर पानी के गुब्बारे अनैतिक ढंग से मारते हैं और भद्दी आवाजें करते हैं और बेचारी माँ बहनें शर्म में डूबकर रह जाती है। अनेक जगह इन्हीं कारणों से सिर फुटौव्वल भी होती है। खुशी गमी में बदल जाती है और परस्पर पक्की शत्रुता हो जाती है। यह विष-क्रीड़ा यहीं नहीं रुकती, बल्कि बढ़ती जाती है। परस्पर शत्रुभाव रखने वाले व्यक्ति त्यौहारों पर धोखे से वार करते देखे गए हैं। अनेक नवयुवकों की जानें होली और दिवाली पर जाती है।
होली-दिवाली पर जो बम-पटाखे छोड़े जाते हैं, एक तो यह देश का करोड़ों रुपया बर्बाद करने का साधन बन गया है, दूसरे इनसे इस दिन जो भयावह प्रदूषण फैलता है वह अलग। हजारों टन प्रदूषित द्रव्य वायु में भर जाते हैं जो सीधे श्वास में पीए जाते हैं। इसके अतिरिक्त बम-पटाखों से अनेक भाई-बहनों के अंग-भंग हो जाते हैं तथा अनेक जगह आगजनी की घटनाएँ होती हैं और अनेक व्यक्ति तो जान से हाथ धो बैठते हैं। यह भी कैसा त्यौहार (मजाक का ढंग) जो हंसते-खेलते घरों के दीपक को भी बुझा डाले? हा! भारतीय जन! तेरी बुद्धि पर तरस आता है।
हमें चाहिए कि हम स्वयं अपने परिवार को तथा अन्य लोगों को होली पवित्रता व शालीनता से मनाने की प्रेरणा दें। सरकार को भी बम-पटाखे और अश्लीलता पर प्रतिबन्ध लगाना चाहिए। यह ठीक है कि होली वर्षन्त (बसन्त) का उमंग भरा पर्व है। सर्दी-गर्मी से दूर वातानुकूलित ऋतुराज वसन्त प्रेम, एकता व पुष्टि का सन्देश देता है।
होली का हवन से सीधा सम्बन्ध है। बसन्त पञ्चमी से ही सभी लोग उत्तम वृक्षों की समिधाएँ श्रद्धानुसार सामूहिक स्थल पर डालते लगते हैं। पूर्णिमा के दिन उत्तम सामग्री, घृत व नए अन्न की बालियाँ सभी पहले मन्त्रोच्चारपूर्वक अग्नि में समर्पित की जाएं जिस से देव (प्रकृति) पुष्ट हो तथा असमय वर्षा व ओले न गिरें। बाद में सभी हव्य पदार्थ (होले-हलवा) परस्पर बांटें और खाएं। परस्पर यज्ञ शेष हव्यों के आदान-प्रदान के अतिरिक्त गुलाब जल व इत्र का परस्पर छिड़काव किया जा सकता है। सभी गले मिलें। घर-घर हव्य तथा शुभकामना बांटेें। विद्वानों के उपदेश सुन तथा उन्हें अन्न-धन दान करें। दोपहर बाद शारीरिक प्रतिस्पर्धाएँ आयोजित करें तथा विजयी लोगों व युवकों को इनाम दें तथा उनकी शोभा यात्रा भी निकाली जा सकती है। शाम को श्रेष्ठ भजन गीतों, गजलों और कविता सुनने व श्रेष्ठ नाटकादि खेलने के कार्यक्रम करें। इस प्रकार होली पवित्रता व शालीनता से मनाएं। आशा है हम अपने पर्वों की पवित्रता और गरिमा को बिगड़ने से अवश्य बचायेंगे। - सम्पादकीय (दिव्ययुग- मार्च 2013)
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