मधु (शहद) और घी दोनों ही शरीर के लिए हितकर हैं। परन्तु यदि बराबर मात्रा में इन दोनों को मिलाकर लिया जाए तो इससे विषात्मक लक्षण पैदा हो जाते हैं। मधु और दूध दोनों के अलग-अलग लेने पर शरीर के लिए उपयोगी है, परन्तु इन्हें समान मात्रा में मिलाकर खाना नुकसानदेय है। शहद, मछली और दूध मिलाकर लेने से ‘कुष्ठरोग’ के पैदा होने की संभावना हो जाती है।
इसी तरह ऋतु मास (भारतीय महीनों) में कुछ खाद्य पदार्थ भी वर्जित हैं, जैसे- चैत्रमास में गुड़ खाना, हानिप्रद माना गया है। वैशाख मास में तेल, ज्येष्ठ मास में महुआ, आषाढ़ मास में बेल (बेलफल), सावन मास में दूध, भादों मास में छाछ, आश्विन मास में करेला, कार्तिक मास में दही, अगहन मास में जीरा, पौष मास में धनिया (बीज), माघ मास में मिश्री और फाल्गुन मास में चना। तात्पर्य यह कि इन खाद्य पदार्थों को बतलाये गए महीनों में कम से कम या बिल्कुल नहीं का सेवन स्वास्थ्यप्रद माना गया है।
कुछ विरुद्ध द्रव्यों का विवरण दिया जा रहा है,जिनसे परहेज रखना आवश्यक है-
1. बड़हल के पक्के फल के साथ मधु और दूध का सेवन हानिकारक है।
2. मूली, लहसुन, सहिजन अथवा तुलसी के पत्ते खाने के बाद दूध का सेवन हानिकारक है।
3. दूध के साथ किसी भी खट्टे पदार्थ का उपयोग हानिकारक है।
4. खीर के साथ सत्तू का प्रयोग हानिकारक है।
5. मधु (शहद) को गरम करके उसका सेवन करना हानिकारक है।
6. मधु चाटकर ऊपर से गर्म जल पीना वर्जित है।
7. घी आदि चिकनाई वाले द्रव्यों का सेवन कर ऊपर से ठण्डा जल पीना हानिकारक है।
8. गर्मी के दिनों में गरम, कड़वी एवं चटपटी चीजों का सेवन और सर्दी (जाड़े) के दिनों में ठण्डे एवं रूखे पदार्थों का उपयोग करना हानिकारक है।
9. मूली के साथ गुड़ हानिप्रद है।
10. तरबूज के साथ पोदीना या शीतल जल नहीं लेना चाहिए।
11. नमक को कभी खुला (उघाड़ा) नहीं रखना चाहिए, हमेशा ढककर रखना चाहिए। क्योंकि यदि नमक पर छिपकली बैठ जाए तो नमक खाने वाले को कोढ हो जाता है। - डॉ. मनोहरदास अग्रावत
छुटपुट रोगों के घरेलू इलाज
अपच
स्वच्छ अजवाइन 50 ग्राम लेकर उसमें खाने का सोडा 25 ग्राम मिलाकर आधा-आधा चम्मच भोजन के बाद पानी से लें। पेट दर्द, डकार आना, पेट में भारीपन में विशेष लाभ होता है।
बदहजमी, कब्ज या मेदे की खराबी की शिकायत होने पर थोड़ा सा काला नमक चूर्ण एक चम्मच पानी में डालकर आग पर गरम कर लें। इस गरम पानी को पीने से उक्त शिकायत दूर होती है।
गरम पानी में हींग घोलकर नाभि के चारों तरफ लेप करने से पेट दर्द, अफारा, डकार आने पर लाभ होता है। यदि पसलियों में दर्द हो, तो उस स्थान पर भी लेप करने से लाभ होता है।
मासिक धर्म
10 ग्राम अजवाइन, 10 ग्राम पुराना गुड़ दो कप पानी में उबालें। आधा कप शेष रहने पर छानकर सुबह-शाम पीएं। तब तक पीएं, जब तक अबाध मासिक ठीक न आए व गर्भाशय साफ होकर रक्तवृद्धि न हो जाए।
तुलसी की जड़ का चूर्ण पान में रखकर खिलाने से स्त्रियों का अनावश्यक रक्तस्त्राव बंद होता है।
वात रोग
3 ग्राम तुलसी के रस में 2 ग्राम अजवाइन मिलाकर लें। संधि-शोथ में लाभ होता है।
प्याज का रस व सरसों का तेल बराबर मात्रा में मिलाकर यदि नियमित रूप से मालिश करें, तो जोड़ों के दर्द में विशेष लाभ होता है।
वात रोगों में सरसों के तेल में चकवड़ के पत्तों का साग भूनकर खिलाएं। लेकिन ध्यान रहे इसे अधिक खाने से दस्त आने लगते हैं।
गठिया रोग होने पर नीम की 60 ग्राम पत्तियों को उबलते हुए सरसों के तेल में डालें। जब पत्तियाँ थोड़ी काली हो जाएं, तो तेल को छान लें। जहाँ गठिया रोग है, वहाँ इसकी मालिश करें।
दन्त विकार
शुद्ध शहद 10 ग्राम, बढिया सिरका 10 ग्राम, फिटकरी की खील 6 ग्राम तथा महीन पिसी हुई काली मिर्च 1 ग्राम- इन सबको मिलाकर शीशी में रख लें। इसे दाँतों पर मलने से दाँतों का दर्द दूर हो जाता है। प्रतिदिन सुबह-शाम मंजन की तरह दाँतों पर मालिश करने से कुछ ही दिनों में पायरिया रोग दूर हो जाता है तथा हिल रहे दाँत जम जाते हैं।
गूलर, आम व जामुन के पेड़ की छाल समान मात्रा में लेकर पीस लें और छान लें। अब इसके चौगुने पानी में इन्हें पकाएं। जब पानी एक चौथाई रह जाए, तो आँच पर से उतार लें और गुनगुना रह जाने पर इससे कुल्ला करें। दाँत का दर्द ठीक हो जाएगा।
सौन्दर्य
मूली का 20 ग्राम रस निकालकर इतना ही मक्खन उसमें मिलाइए। इस लोशन को चेहरे पर मलें। चेहरे की झुर्रियाँ खत्म हो जाती हैं।
जीरे को उबालकर, छानकर उस पानी से मुँह धोने से चेहरे की सौन्दर्यता बढ़ती है।
पोदीने का रस नियमित रूप से चेहरे पर लगाने से दाग-धब्बे दूर हो जाते हैं।
मुँह में छाले होने पर चमेली के पत्तों का काढ़ा बनाकर उससे कुल्ले करना चाहिए।
बबूल, अनार तथा कचनार की छाल पकाकर कुल्ला करने से मुँह के छाले या बढ़े हुए टांसिल में लाभ होता है।
हिस्टीरिया
हिस्टीरिया रोग में हींग नाक में सुंघाने से होश आ जाता है।
हिस्टीरिया के रोगी को गर्म पानी में नींबू, नमक, जीरा, हींग भुनी हुई, पुदीना मिलाकर पिलाने से रोगी को लाभ मिलता है।
रक्त विकार
अर्जुन के स्वरस के साथ आम और जामुन के पत्तों का स्वरस लेने पर कहीं से भी आने वाला रक्त रुक जाता है। यह रक्त पित्त में विशेष काम करता है।
खून की कमी होने पर सरसों का साग सब्जी के रूप में प्रयोग करने से लाभ मिलता है।
बवासीर
पानी में जीरा पीसकर बवासीर के मस्सों पर लगाएं, तो लाभ मिलता है।
खूनी बवासीर में दस कालीमिर्च, दो मुट्ठी अनार के पत्ते के साथ पीसकर रोज एक बार पीने से खूना आना बंद हो जाता है।
धातु विकार
आंवला, बहेड़ा, हरीतकी 50-50 ग्राम लेकर तीनों औषधियों को महीन पीस लें। फिर शुद्ध कपूर 30 ग्राम, पुराना गुड़ 150 ग्राम मिलाएं। इसकी एक-एक गोली बना लें। अब सुबह और रात में एक-एक गोली पानी से लें। इस औषधि के लगातार सेवन से स्वप्नदोष ठीक हो जाता है।
6 ग्राम से 10 ग्राम तक प्याज का रस शहद के साथ सुबह सेवन करने से प्रमेह और धातु सम्बन्धी रोग दूर हो जाते हैं। - डॉ. हनुमानप्रसाद उत्तम | साभारः निरामय जीवन
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