ओ3म् कदु प्रचेतसे महे वचो देवाय शस्यते।
तदिद्ध्यस्य वर्धनम्॥ साम. पू. 3.1.4.2
ऋषिः मारीचः कश्यपः॥ देवता विश्वदेवाः॥ छन्दः गायत्री॥
विनय- प्रभु की थोड़ी-सी भक्ति महान् फल देने वाली होती है। हम लोग समझा करते हैं कि थोड़े से सन्ध्या-भजन से या एक-आध मन्त्र द्वारा उसका स्मरण कर लेने से हमारा क्या लाभ होगा, या एक दिन यह भजन छोड़ देने से हमारी क्या हानि होगी, पर यह सत्य नहीं है। हमारी उपासना चाहे कितनी स्वल्प और तुच्छ हो, पर वह उपास्यदेव तो महान् है। ज्ञान और शक्ति में वह हमसे इतना महान् है कि हम कभी भी उसके योग्य उसकी पूरी भक्ति नहीं कर सकते और उसके सामने हम इतने तुच्छ हैं कि वह यदि चाहे तो अपने जरा से दान से हमें क्षण में भरपूर कर सकता है। यह यदि थोड़ी देर के लिए भी उससे अपना सम्बन्ध जोड़ते हैं तो वह महान् देव उस थोड़े से समय में ही हमें भर देता है। सन्त लोग अनुभव करते हैं कि प्रभु का क्षण-भर ध्यान करते ही प्रभु की आशीर्वाद-धारा उनके लिये खुल जाती है और वे उस क्षण भर में ही प्रभु के आशीर्वाद से नहा जाते हैं। एक बार प्रभु का नामोच्चारण करते ही उन्हें ऐसा आवेश आता है कि शरीर रोमांचित हो जाते हैं और आत्मा आनन्दरस से पवित्र और प्रफुल्ल हो जाते हैं। पर यदि हम साधारण लोगों की प्रार्थना-उपासना अभी उस महाप्रभु से इतना ऐश्वर्या नहीं पा सकती है, तब तो हमें उसके थोड़े-से भी भजन की बहुत कद्र करनी चाहिए। एक भी दिन, एक भी समय नागा न करना चाहिए। एक समय भी नागा होने से जो सम्बन्ध विच्छिन्न हो जाता है, वह फिर जोड़ना पड़ता है। यही कारण है कि नागा होने पर प्रायश्चित का विधान है। एक समय नागा होने से एक समय की देरी ही नहीं होती, अपितु वह दुबारा सम्बन्ध जोड़ने जितनी देरी हो जाती है। अतः हम चाहे किसी दिन भजन में बिल्कुल दिल न लगा सकें, तथापि उस दिन भी कुछ न कुछ उपासना जरूर करनी चाहिए, यत्न जरूर करना चाहिए। पीछे पता लगता है कि एक दिन का भी यत्न व्यर्थ नहीं गया। एक-एक दिन की उपासना ने हमें बढ़ाया है, हमारे शरीर, मन और आत्मा को उन्नत किया है।
कम से कम यह तो असन्दिग्ध है कि संसार की अन्य बातों में हम जितना समय देते हैं, सांसारिक बातों की जितनी स्तुति-उपासना करते हैं और उससे जितना फल हमें मिलता है, उससे अनन्त गुणा फल हमें प्रभु की (अपेक्षया बहुत ही थोड़ी सी) स्तुति-उपासना से मिल सकता है और मिल जाता है। कारण स्पष्ट है, क्योंकि वह महान् है, ज्ञान का भण्डार है, सर्वशक्तिमान है और ये सांसारिक बातें अल्प हैं, तुच्छ हैं, निस्सार हैं, ज्ञानशक्ति विहीन केवल विकार हैं।
शब्दार्थ- महे=महान् प्रचेतसे=बड़े ज्ञानी देवाय=इष्टदेव परमेश्वर के लिए कत् उ=कुछ भी, थोड़ा-सा भी वचःशस्यते=वचन स्तुतिरूप में कहा जाए तत् इत् हि=वह ही निश्चय से अस्य=इस वक्ता का वर्धनम्=बढ़ाने वाला है। - आचार्य अभयदेव विद्यालंकार
Devotion is Great to Give Fruit | Simple and Trivial | Knowledge and Power | Sacred | Body, Mind, and Soul | Knowledge Store | Almighty | Worldly Things Short | Knowledge Powerless | Vedic Motivational Speech in Hindi by Vaidik Motivational Speaker Acharya Dr. Sanjay Dev for Ichalkaranji - Sonegaon - Sahnidih | News Portal - Divyayug News Paper, Current Articles & Magazine Idar - Sonipat - Saunda | दिव्ययुग | दिव्य युग