विशेष :

स्वराज्य के अमर उद्घोषक बाल गंगाधर तिलक

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Bal Gangadhar TIlak 0

श्री बाल गंगाधर तिलक राजनीतिक, धार्मिक तथा भारतीय सांस्कृतिक जगत के सुविख्यात मानव थे । उनका जन्म एक संभ्रान्त एवं शिक्षित परिवार में महाराष्ट्र के जिला रत्नागिरि स्थित चिरवल नामक ग्राम में वर्ष 1856 ई. की 23 जुलाई को हुआ था ।

उनके पूज्य पिता श्री गंगाधर पंत महान सनातनी एवं सुप्रसिद्ध विचारवान व्यक्ति थे । पाठशाला में गुरुपद की मर्यादा को निभाते हुए उन्होंने सादा जीवन उच्च विचार का उत्तम आदर्श उपस्थित किया था । ऐसे सुयोग्य पिता की छत्रछाया में बालक बालगंगाधर तिलक की शिक्षा का शुभारंभ हुआ था । श्री तिलक जी की स्मरण शक्ति ईश्‍वरीय वरदान थी ।

अपने छात्र जीवन में ही उन्होंने उत्तम स्वास्थ्य तथा राष्ट्रीयता के प्रति सराहनीय उदाहरण उपस्थित किया था । अपने अध्ययन के आधार पर वे इस बिंदु पर पहुंचे थे कि सबल स्वास्थ्य एवं सुदृढ राष्ट्रीयता के बल पर ही मिस्टर मैकाले की बाबूगिरी वाली शिक्षा से भारतीय छात्रों को त्राण मिल सकेगा । अपनी संगठन शक्ति का समुचित उपयोग करके उन्होेंने गणेश महोत्सव मनाने की परम्परा कायम की । उस पुनीत अवसर पर वाद-विवाद, विचार गोष्ठी तथा नाटकों के मंचन द्वारा व्यापक प्रचार होता था । अधिकाधिक लोगों से सम्पर्क हेतु उन्होंने एक विचित्र फंड स्थापित किया, जिसका नाम ही था पैसा फंड । उस फंड में स्वेच्छा से एक पैसा भी जमा किया जा सकता था।

उन्होंने अपने मित्र श्री गोपाल गणेश के साथ बहुसंख्यक लोगों के सहयोग से न्यू इंगलिश स्कूल के नाम से एक विद्यालय की स्थापना कर आर्थिक, सामाजिक तथा स्वास्थ्य विषयक मसलों को सुलझाने का जोरदार प्रयास किया । मराठी और अंगे्रजी पत्रों को प्रकाशित करके तिलक ने अपने विचारों का उत्तम प्रभाव जनमानस पर डाला ।

बाल, पाल एवं लाल अर्थात् श्री बाल गंगाधर तिलक, श्री विपिनचन्द्र पाल तथा श्री लाला लाजपतराय का मिलन राष्ट्र के लिए विशेष लाभप्रद रहा । तिलक पर ब्रिटिश अहलकारों की आंखें बराबर लगी रहती थी, मगर वे विश्‍वविख्यात कृति गीता के सिद्धांत को अपने अन्तर में स्थापित कर बिल्कुल निर्भय हो चुके थे । कर्जन महोदय के बंगभंग के वे प्रबल विरोधी थे और किसी काम को अपनाने के पश्‍चात पीछे हटना तिलक के लिए असंभव था । जेल को तो उन्होंने श्रीकृष्ण मंदिर जैसा आदर दे रखा था ।

सन् 1908 में तिलक 6 साल की सजा सुनाकर मांडले जेल में भेज दिये गये । उस कठिन कारावास से उन्हें कुछ भी चिंता नहीं हुई । वहाँ पर उन्होंने मराठी भाषा में गीता पर सारगर्भित भाष्य लिखा, जिसका अनुवाद श्री माधव राव सप्रे ने किया था। उसी महत्वपूर्ण कृति का नाम है गीता रहस्य । श्री बाल गंगाधर तिलक ने ऐसा महान कार्य किया कि उसी लोक कल्याणकारी भावना के चलते वे लोकमान्य हो गये ।

सन् 1820 में कांगे्रस का 35 वाँ अधिवेशन नागपुर में होने वाला था, जिसके सदर लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक निर्वाचित हुए थे । विधाता का विधान बड़ा विचित्र होता है । उसी विधानानुकूल लोकमान्य जी की मृत्यु प्रथम अगस्त को ही हो गयी । उनके देहावसान के पश्‍चात नागपुर कांग्रेस की अध्यक्षता श्री विजय राघवाचार्य जी ने की थी । उसी ऐतिहासिक समारोह में असहयोग आंदोलन का व्यापक स्वरूप साकार हुआ था । आंदोलन का माहौल खड़ा करने में लोकमान्य तिलक की सुदृढ भूमिका थी । उस अनुष्ठान को सराहनीय ढंग से सफल बनाया महात्मा गांधी ने, जिसमें राष्ट्र का पुरजोर सहयोग रहा।• - डॉ. कमलाप्रसाद मिश्र

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