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आज की ज्वलंत समस्या : गिरता चरित्र

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गिरते चरित्र के कुछ प्रतिनिधि संसद में भी पहुँच गए हैं, जो भारत के भाग्य-विधाता की भूमिका में अपना योगदान कर रहे हैं । ताजा समाचार के अनुसार- दाहोद के भाजपा सांसद गिरफ्तार । आरोप है कूटनीतिक पासपोर्ट का दुरुपयोग । गैर महिला व किशोर को विदेश ले जा रहे थे । पार्टी से निलंबित । सांसद कटारा ने पत्नी व पुत्र के पासपोर्ट का दुरुपयोग किया। मानव तस्करी में लिप्त दो और सांसद रामस्वरूप कोली तथा मोहम्मद ताहिर खान के नाम भी सुर्खियों में प्रकाशित हुए हैं । इन्हीं के साथ और भी कई नाम उजागर हुए हैं, जिन्होंने देश की जनता के विश्‍वास के साथ धोखा किया है । ऐसे और भी अन्य समाचार सुर्खियों के साथ प्रकाशित हुए हैं और हो रहे हैं, जिनमें राष्ट्रघाती तत्वों की राष्ट्र विरोधी हरकतें सामने आई हैं । नेता, अधिकारी वर्ग के साथ मिलकर रक्षापंक्ति के सदस्यों द्वारा दुश्मन को गुप्त रहस्य, गुप्त दस्तावेज, नक्शे आदि भेजकर अपना ईमान बेचा गया है । भ्रष्टाचार,पक्षपात, मिलावट, घूसखोरी, दलाली आदि आम बातें बन गई हैं । आम लोगों की समस्याओं का हल अब पैसे में सिमटकर रह गया है । चारों ओर अन्याय व अत्याचार के दृश्य दिखाई तथा सुनाई दे रहे हैं । राष्ट्र के गिरते चरित्र के कारण किस पर विश्‍वास करें, प्रमुख प्रश्‍न बन गया है । शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएँ व्यवसाय बनकर रह गई हैं । मध्यमवर्ग और निम्न आय वर्ग अच्छी शिक्षा और उपयुक्त इलाज करवाने में असमर्थ है । कुल मिलाकर वर्तमान में हमारे देश की सबसे ज्वलंत समस्या गिरता चरित्र हो गया है । इसके परिणामस्वरूप हमारा देश न सीमाओं पर सुरक्षित है और न अन्दर ही । आज प्रबुद्ध नागरिक चिन्ताग्रस्त हैं । पार्टियों द्वारा एक दूसरे की, की जा रही आलोचना के आधार पर नहीं, बल्कि आम जनता की बनती जा रही धारणा के आधार पर विवशत: यह लिखना पड़ रहा है कि देश का नेतृत्व अदूरदर्शी नेताओं के हाथों में है, जिनके चलते देश खतरे में आ गया है । आम लोगों में चर्चा है कि यथा राजा तथा प्रजा । स्वतंत्रता प्राप्ति से लेकर आज तक राष्ट्रीय चरित्र-प्रशिक्षण की कोई व्यवस्था नहीं की गई । शब्दों में रामराज्य और व्यवहार में भ्रष्ट-राज्य इसी का परिणाम है ।

सोवियत रूस में देशभक्ति और स्वतंत्रता के प्रति निष्ठाभावना को सुदृढता से बनाए रखने के लिए रूस की महान क्रान्ति की शिक्षा भावी नागरिकों को दी जाती रही । प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक देश प्रेम को क्रान्ति की भावना के माध्यम से सुदृढ किया जाता रहा । इसके विपरीत भारत के स्वतन्त्रता-संग्राम में नेताजी सुभाषचन्द्र बोस तथा अन्य क्रान्तिकारियों की देश प्रेम से ओतप्रोत बलिदानी भावना को योजनाबद् तरीके से दबाया गया । इतना ही नहीं, एक प्रवक्ता द्वारा पूछे जाने पर कि स्वतंत्रता-संग्राम सेनानी के रूप में नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का क्या योगदान रहा है ? उत्तर में शासन के प्रतिनिधि ने बताया कि उनका ऐसा कोई रेकार्ड़ शासन के पास नहीं है । बाद में इस उत्तर की सामान्य लीपापोती की गई । संभवत: रेकार्ड में यही है कि- दे दी हमें आजादी बिना खड़्ग बिना ढाल । गौरवशाली राष्ट्रीय चरित्र के अभाव में भावी पीढियों को कुछ भी सिखाया जा रहा है । जो शिक्षा भारत के भावी नागरिकों को बतला रही हो कि भारतीय संस्कृति के महानायक राम और कृष्ण वास्तव में हुए नहीं हैं, बल्कि वे तो कवि कल्पना से घड़े गए पात्र हैं । ऐसे कथनों के पीछे इनके कलुषित उद्देश्य का ही पता चलता है । ऐसी शिक्षा और बयानों से राष्ट्रीय चरित्र शिक्षण की आशा कैसे की जा सकती है!

आज पुन: आवश्यकता है ऐसे स्वतंत्रता संग्राम की, जो दूषित विचारों की गुलामी से भारत को निकालकर उन विचारों से भावी पीढी को संस्कारित कर सके, जिनसे यह इस भूमि को माता और अपने को उसका पुत्र माने। हमारे संस्कारों में सिखाया जाता रहा है कि जननी आंर जन्मभूमि स्वर्ग से भी महान हैं । इसी विचारधारा के उत्तराधिकारी थे नेताजी सुभाषचन्द्र बोस, सरदार भगतसिंह, चन्द्रशेखर आजाद आदि क्रान्तिकारी तथा भारतमाता के वे सपूत, जिन्होंने भारतमाता को गुलामी से मुक्त करने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी । मदरसे, अपने मजहब को मानने वाले बालकों में अपने धर्म के प्रति जो निष्ठा पैदा करते हैं, वह जीवन भर बनी रहती है । वे उसके लिए मर-मिटने को सदैव तैयार रहते हैं । ऐसे ही प्रयास हमें भावी पीढी में देशभक्ति की भावना संस्कारित करने के लिए करने चाहिएं । देश के लिए मर-मिटने वाले सपूतों को संस्कारित करने का यह महान् कार्य प्राथमिक शिक्षा से ही प्रारम्भ करने की आवश्यकता है । घटनाएँ बता रहीं हैं कि हमारी मातृभूमि और मातृ संस्कृति पर नरभक्षी दरिन्दे मंड़रा रहे हैं । जब तक प्रकाश शेष है,इस क्रान्तिकारी परिवर्तन को लाने के लिए कटिबद्ध हो जाना चाहिए, अन्यथा...। •जगदीश दुर्गेश जोशी

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