चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को हमारा नववर्ष है। हमें परस्पर इसी दिन एक दूसरे को शुभकामनाएं देनी चाहिएं।
भारतीय नववर्ष का ऐतिहासिक महत्व
1. यह दिन सृष्टि रचना का पहला दिन है। इस दिन से एक अरब छियानवें करोड़ आठ लाख तरेपन हजार एक सौ सोलह वर्ष पूर्व इसी दिन सृष्टि की रचना हुई ।
2. विक्रमी संवत का पहला दिन। उसी राजा के नाम पर सम्वत् प्रारम्भ होता था जिसके राज्य में न कोई चोर हो, न अपराधी हो और न ही कोई भिखारी हो। साथ ही राजा चक्रवर्ती सम्राट भी हो। सम्राट विक्रमादित्य ने 2072 वर्ष पहले इसी दिन राज्य स्थापित किया था।
3. भगवान श्रीराम का राज्याभिषेक दिवस । श्रीराम ने भी इसी दिन को लंका विजय के बाद अयोध्या में राज्याभिषेक के लिये चुना।
4. नवरात्र स्थापना । शक्ति और भक्ति के नौ दिन अर्थात्, नवरात्र स्थापना का पहला दिन यही है। श्रीराम के जन्मदिन रामनवमी से पूर्व नौ दिन उत्सव मनाने का प्रथम दिन।
5. गुरु अंगददेव प्रगटोत्सव। सिख परम्परा के द्वितीय गुरु का जन्म दिवस।
6. आर्यसमाज स्थापना दिवस। समाज को श्रेष्ठ (आर्य) मार्ग पर ले जाने हेतु वेदों के पुनरुद्धारक महर्षि दयानन्द सरस्वती ने इसी दिन आर्य समाज की स्थापना की।
7. सन्त झूलेलाल जन्म दिवस । सिन्ध प्रान्त के प्रसिद्ध समाज रक्षक सन्त झूलेलाल इसी दिन प्रगट हुए।
8. शालिवाहन संवत्सर का प्रारम्भ दिवस । विक्रमादित्य की भांति शालिनवाहन ने शकों को परास्त कर भारत में श्रेष्ठतम राज्य स्थापित करने हेतु यही दिन चुना।
9. युगाब्द संवत्सर का प्रथम दिन। कलि के प्रथम दिन युधिष्ठिर का राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ।
भारतीय नववर्ष का प्राकृतिक महत्व
1. वसन्त ऋतु का आरम्भ वर्ष प्रतिपदा से ही होता है जो उल्लास, उमंग, खुशी तथा चारों तरफ पुष्पों की सुगन्ध से भरी होती है।
2. फसल पकने का प्रारम्भ यानि किसान की मेहनत का फल मिलने का भी यही समय होता है।
3. नक्षत्र शुभ स्थिति में होते हैं अर्थात् किसी भी कार्य को प्रारम्भ करने के लिये यह शुभ मुहूर्त होता है। अत: हमारा नव वर्ष कई कारणों को समेटे हुए है। अंग्रेजी नववर्ष न मना कर भारतीय नववर्ष हर्षोउल्लास के साथ मनायें और दूसरों को भी मनाने के लिए प्रेरित करें ।
नवसंवत्सर, नवरात्रि और रामनवमी के इन मांगलिक अवसरों पर अपने अपने घरों को भगवा पताकाओं और आम के पत्तों की बन्दनवार से सजाना चाहिए।
नव संवत्सर- विक्रम संवत 2073 का 8 अप्रैल 2016 को शुभारम्भ हो रहा है। पुराणों के अनुसार इसी तिथि से ब्रह्मा जी ने सृष्टि निर्माण आरम्भ किया था। इसलिए इस पावन तिथि को नव संवत्सर पर्व के रूप में भी मनाया जाता है। संवत्सर-चक्र के अनुसार सूर्य इस ऋतु में अपने राशि-चक्र की प्रथम राशि मेष में प्रवेश करता है। भारतवर्ष में वसन्त ऋतु के अवसर पर नूतन वर्ष का आरम्भ मानना इसलिए भी हर्षोल्लासपूर्ण है, क्योंकि इस ऋतु में चारों ओर हरियाली रहती है तथा नवीन पत्र-पुष्पों द्वारा प्रकृति का नव शृंगार किया जाता है। लोग नववर्ष का स्वागत करने के लिए अपने घर-द्वार सजाते हैं। नव संवत्सर के दिन नीम के कोमल पत्तों और ऋतुकाल के पुष्पों का चूर्ण बनाकर उसमें काली मिर्च, नमक, हींग, जीरा, मिश्री, इमली और अजवायन मिलाकर खाने से रक्त विकार आदि शारीरिक रोग शान्त रहते हैं और पूरे वर्ष स्वास्थ्य ठीक रहता है।
राष्ट्रीय संवत- भारतवर्ष में इस समय देशी-विदेशी मूल के अनेक सम्वतों का प्रचलन है। किन्तु भारत के सांस्कृतिक इतिहास की द्दष्टि से सर्वाधिक लोकप्रिय राष्ट्रीय सम्वत यदि कोई है तो वह विक्रम सम्वत ही है। आज से 2072 वर्ष यानी 57 ईसा पूर्व में भारतवर्ष के प्रतापी राजा विक्रमादित्य ने देशवासियों को शकों के अत्याचारी शासन से मुक्त किया था। उसी विजय की स्मृति में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की तिथि से विक्रम सम्वत का भी आरम्भ हुआ था। प्राचीनकाल में नया संवत चलाने से पहले विजयी राजा को अपने राज्य में रहने वाले सभी लोगों को ऋण-मुक्त करना आवश्यक होता था। राजा विक्रमादित्य ने भी इसी परम्परा का पालन करते हुए अपने राज्य में रहने वाले सभी नागरिकों का राज्यकोष से कर्ज़ चुकाया और उसके बाद चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से मालवगण के नाम से नया सम्वत चलाया। भारतीय कालगणना के अनुसार वसन्त ऋतु और चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की तिथि अति प्राचीनकाल से सृष्टि प्रक्रिया की भी पुण्य तिथि रही है। वसन्त ऋतु में आने वाले वासन्तिक नवरात्र का प्रारम्भ भी सदा इसी पुण्यतिथि से होता है। विक्रमादित्य ने भारत राष्ट्र की इन तमाम कालगणनापरक सांस्कृतिक परम्पराओं को ध्यान में रखते हुए ही चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की तिथि से ही अपने नवसंवत्सर सम्वत को चलाने की परम्परा शुरू की थी और तभी से समूचा भारत राष्ट्र इस पुण्य तिथि का प्रतिवर्ष अभिवन्दन करता है। दरअसल भारतीय परम्परा में चक्रवर्ती राजा विक्रमादित्य शौर्य, पराक्रम तथा प्रजाहितैषी कार्यों के लिए प्रसिद्ध माने जाते हैं। उन्होंने 95 शक राजाओं को पराजित करके भारत को विदेशी राजाओं की दासता से मुक्त किया था। राजा विक्रमादित्य के पास एक ऐसी शक्तिशाली विशाल सेना थी जिससे विदेशी आक्रमणकारी सदा भयभीत रहते थे। ज्ञान-विज्ञान, साहित्य, कला संस्कृति को विक्रमादित्य ने विशेष प्रोत्साहन दिया था। धन्वन्तरि जैसे महान वैद्य, वराहमिहिर जैसे महान ज्योतिषी और कालिदास जैसे महान साहित्यकार विक्रमादित्य की राज्यसभा के नवरत्नों में शोभा पाते थे। प्रजावत्सल नीतियों के फलस्वरूप ही विक्रमादित्य ने अपने राज्यकोष से धन देकर दीन दु:खियों को साहूकारों के कर्ज़ से मुक्त किया था। एक चक्रवर्ती सम्राट होने के बाद भी विक्रमादित्य राजसी ऐश्वर्य भोग को त्यागकर भूमि पर शयन करते थे। वे अपने सुख के लिए राज्यकोष से धन नहीं लेते थे।
राष्ट्र की सांस्कृतिक पहचान- पिछले दो हज़ार वर्षों में अनेक देशी और विदेशी राजाओं ने अपनी साम्राज्यवादी आकांक्षाओं की तुष्टि करने तथा इस देश को राजनीतिक द्दष्टि से पराधीन बनाने के प्रयोजन से अनेक सम्वतों को चलाया। किन्तु भारत राष्ट्र की सांस्कृतिक पहचान केवल विक्रमी सम्वत के साथ ही जुड़ी रही। अंग्रेज़ी शिक्षा-दीक्षा और पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव के कारण आज भले ही सर्वत्र ईस्वी सम्वत का बोलबाला हो और भारतीय तिथि-मासों की काल गणना से लोग अनभिज्ञ होते जा रहे हों, परन्तु वास्तविकता यह भी है कि देश के सांस्कृतिक पर्व-उत्सव तथा राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, शंकराचार्य, गुरु नानक, महर्षि दयानन्द आदि महापुरुषों की जयन्तियाँ आज भी भारतीय काल गणना के हिसाब से ही मनाई जाती हैं, ईस्वी सम्वत के अनुसार नहीं। नामकरण-मुण्डन का शुभ मुहूर्त हो या विवाह आदि सामाजिक कार्यों का अनुष्ठान, ये सब भारतीय पञ्चांग पद्धति के अनुसार ही किया जाता है, ईस्वी सन् की तिथियों के अनुसार नहीं।
हिन्दू नववर्ष का शुभागमन- 8 अप्रैल 2016 से हिन्दू नववर्ष एवं विक्रम संवत्सर 2073 का आरम्भ हो रहा है। हिन्दू नववर्ष के आरम्भ के साथ ही नवरात्र भी प्रारम्भ हो जाते हैं। बसन्त ऋतु के आगमन का संकेत मिलने लगता है, और वातावरण खुशनुमा एहसास कराता है। हिन्दू नववर्ष का आरम्भ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है। ब्रह्मा पुराण के अनुसार सृष्टि का प्रारम्भ इसी दिन हुआ था। इसी दिन से ही काल गणना का प्रारम्भ हुआ था। सतयुग का प्रारम्भ भी इसी दिन से माना जाता है.
विक्रमी सम्वत के अनुसार सृष्टि चक्र और काल गणना- हिन्दू काल गणना में समय की सटीक माप की गयी है।
समय का पैमाना-
निमिष - समय की पलक झपकने बराबर सूक्ष्म इकाई।
15 निमिष - 1 कस्त
30 कस्त - 1 काल
30 मुहूर्त - 1 अहोरात्र (एक दिन)
43,20,000 वर्ष - 12,000 ब्रह्मा वर्ष (महायुग)
चार युग -
कलियुग - 1 गुणा 432000
द्वापर युग - 2 गुणा 432000
त्रेता युग - 3 गुणा 432000
सतयुग - 4 गुणा 432000
कुल - 10 गुणा 4320,000 (महायुग)
71 महायुग = 1 मन्वन्तर
1000 महायुग = 1 कल्प (4,32,00,000 वर्ष)
1 कल्प = ब्रह्मा 1 दिन
ब्रह्मा अहोरात्र = 8,64,00,00,000 वर्ष
ब्रह्मा पुराण में कहा गया है कि-
चैत्र मासे जगदब्रह्मा समग्रे प्रथमेऽहनि।
शुक्ल पक्षे समग्रे तु सदा सूर्योदय सति॥
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का हिन्दू संस्कृति में विशेष महत्व है। इस दिन का भारत के स्वर्णिम इतिहास में उल्लेखनीय महत्व है।
आधुनिक सभ्यता की अन्धी दौड़ में समाज का एक वर्ग इस पुण्य दिवस को विस्मृत कर चुका है। आवश्यकता है इस दिन के इतिहास के बारे में जानकारी लेकर प्रेरणा लेने का कार्य करें। भारतीय संस्कृति की पहचान विक्रमी संवत्सर में है, न कि अंग्रेजी नववर्ष से। हमारा स्वाभिमान विक्रमी संवत्सर को मनाने से ही जाग्रत हो सकता है, न कि रात भर झूमकर एक जनवरी की सुबह सो जाने से। इसका सशक्त उदाहरण पूर्व प्रधानमन्त्री मोरारजी देसाई का यह कथन है, जिसे उन्होंने 1 जनवरी को मिले शुभकामना सन्देश के जवाब में कहा था कि मेरे देश का सम्मान वीर विक्रमी नव संवत्सर से है। 1 जनवरी ग़ुलामी की दास्तान है। - प्रस्तुति- कु. भावना पहल (दिव्ययुग - अप्रैल 2016)
History and Importance of Hindu New Year | First Day of Creation | Coronation day of Shriram | Navratri Establishment | Nine Days of Strength and Devotion | Arya Samaj Foundation Day | Famous Social Guard | Best State Established | Natural Significance of Indian New Year | Spring Season | Most Popular National Era | Free from the Slavery of Foreign Kings | Cultural Identity of the Nation | Indian Panchang System | News Portal - Divyayug News Paper, Current Articles & Magazine Mandleshwar - Karanja - Dogadda | दिव्ययुग | दिव्य युग