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हम लाये हैं तूफान से किश्ती निकाल के

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We Have Brought the Rook out of the Storm

भारत के लाखों स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों ने अपनी कुर्बानियाँ देकर ब्रिटिश शासन से 15 अगस्त 1947 को अपने देश को अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराया था। तब से इस महान दिवस को भारत में स्वतन्त्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत के महान स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों ने अपने देश की आजादी के लिए एक लम्बी और कठिन यात्रा तय की थी। देश को अंग्रेजी साम्राज्य की अन्यायपूर्ण गुलामी से आजाद कराने में अपने प्राणों की बाजी लगाने वाले लाखों स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों के बलिदान तथा त्याग का मूल्य किसी भी कीमत पर नहीं चुकाया जा सकता। इन सभी ने अपने युग की समस्या अर्थात् ‘भारत को अंग्रेजी की गुलामी से मुक्त कराने के लिए‘ अपने परिवार और सम्पत्ति के साथ ही अपनी सुख-सुविधाओं आदि चीजों का त्याग किया था। आजादी के इन मतवाले शहीदों के त्याग एवं बलिदान से मिली आजादी को हमें सम्भाल कर रखना होगा। भारत की आजादी की लड़ाई में लाखों शहीदों के बलिदानी जीवन हमें सन्देश दे रहे हैं - हम लाये हैं तूफान से किश्ती निकाल के, इस देश को रखना मेरे बच्चों सम्भाल के।

उदार चरित्र वालों के लिए यह पृथ्वी एक परिवार के समान है- भारत एक महान देश है । इसकी महानता तथा इसकी उदारता शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व में छुपी हुई है। विश्‍वव्यापी समस्याओं के ठोस समाधान भारत देश के पास ही हैं। भारत की ‘वसुधैव कुटुम्बकम्‘ की महान् संस्कृति, सभ्यता तथा संविधान दुनियाँ से अलग एवं अनूठी है। इसलिए आज सारा विश्‍व भारत की ओर बड़ी ही आशा की दृष्टि से देख रहा है। देश की आजादी के समय दो विचारधाराओं के बीच लड़ाई थी। एक ओर अंग्रेजी की संस्कृति भारत जैसे देशों पर शासन करके अपनी आमदनी बढाने की थी तो दूसरी ओर भारत के ऐसे विचारशील लोग थे जो सारी दुनियाँ में ‘उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्‘ अर्थात् उदार चरित्र वाले के लिए यह पृथ्वी एक परिवार के समान है, के विचारों को फैलाने में संलग्न थे। भारत की आजादी के लिए अनेक शूरवीरों ने हँसते-हँसते अपने प्राण त्याग दिये। इन शूरवीरों ने जो आवाज उठाई थी, वह महज अंग्रेजों के खिलाफ नहीं बल्कि सारी मानव जाति के शोषण के विरुद्ध थी। भारत की आजादी से प्रेरणा लेकर 54 देशों ने अपने को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कर लिया।

भारत जैसे विशाल देश पर सारे विश्‍व को बचाने का दायित्व है- बलिदानी स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों के समक्ष अंग्रेजी दासता से देश को आजाद कराने की चुनौती थी, जिसके विरुद्ध उन्होंने पूरी शिद्दत के साथ लड़ाई लड़ी और भारत को अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराया। लेकिन बदलते परिदृश्य में आज विश्‍व के समक्ष दूसरी तरह की समस्यायें आ खड़ी हुई हैं। वर्तमान में विश्‍व की सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक व्यवसाय पूरी तरह से बिगड़ चुकी है। अन्तरराष्ट्रीय आतंकवाद, भूख, बीमारी, हिंसा, तीसरे विश्‍व युद्ध की आशंका, 36000 बमों का जखीरा, ग्लोबल वार्मिंग आदि समस्याओं के कारण आज विश्‍व के दो अरब चालीस करोड़ बच्चों के साथ ही आगे आने वाली पीढियों का भविष्य अन्धकारमय दिखाई दे रहा है। आज ऐसी विषम परिस्थितियों से विश्‍व की मानवता को मुक्त कराने की चुनौती भारत जैसे महान देश के समक्ष है।

भारत ही विश्‍व में शान्ति स्थापित करेगा- प्राचीन काल में हमारे देश का सारे विश्‍व में ‘जगद्गुरु‘ के रूप में अत्यन्त ही गौरवशाली इतिहास था। हमारे देश के गौरवशाली इतिहास को विदेशी शक्तियों द्वारा कुचला तथा नष्ट किया गया। भारत ही विश्‍व का ऐसा देश है जिसने सबसे पहले सारे विश्‍व को अध्यात्म, दर्शन, धर्म, योग, आयुर्वेद, संगीत, कला, न्याय, भाषा आदि का ज्ञान दिया। सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देश होने के नाते (1) ‘वसुधैव कुटुम्बकम्‘ अर्थात् सारा ‘विश्‍व एक परिवार है‘ की भारतीय संस्कृति तथा (2) भारतीय संविधान (अनुच्छेद 51 को शामिल करते हुए) का संरक्षक होने के नाते मानवजाति के इतिहास के इस निर्णायक मोड़ पर, संयुक्त राष्ट्र महासभा में संयुक्त राष्ट्र संघ को और अधिक शक्तिशाली बनाने के साथ ही उसे प्रजातान्त्रिक बनाने पर जोर देने का दायित्व भारत पर है। ऐसा करके भारत भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 के प्रावधानों का पालन करने के साथ ही भारत की ‘वसुधैव कुटुम्बकम्‘ की महान संस्कृति को भी सारे विश्‍व में फैलायेगा। विश्‍व भर की उम्मीदें भारत से जुड़ी हुई हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि भारत ही वो अकेला देश है जो न केवल भारत के 40 करोड़ वरन् विश्‍व के 2 अरब से ऊपर बच्चों तथा आगे आने वाली पीढियों के भविष्य की सुरक्षा सुनिश्‍चित कर सकता है।

हमें अपनी संस्कृति तथा संविधान के अनुरूप सारे विश्‍व को एकता की डोर से बान्धना है- महात्मा गान्धी ने कहा था कि ‘‘कोई-न-कोई दिन ऐसा जरूर आयेगा, जब जगत शान्ति की खोज करता-करता भारत की ओर आयेगा और भारत समस्त संसार की ज्योति बनेगा।‘‘ साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि ‘‘यदि हम वास्तव में संसार से युद्धों को समाप्त करना चाहते हैं तो हमें उसकी शुरूआत बच्चों से करनी होगी।‘‘ हमारा मानना है कि भारत ही अपनी संस्कृति, सभ्यता तथा संविधान के अनुच्छेद 51 के बलबूते सारे विश्‍व को बचा सकता है। इसके लिए हमें प्रत्येक बच्चे के मस्तिष्क में बचपन से ही ‘वसुधैव कुटुम्बकम्‘ की महान संस्कृति डालने के साथ ही उन्हें यह शिक्षा देनी होगी कि हम सब एक ही परमपिता परमात्मा की संतानें हैं और हमारा धर्म है ‘सारी मानवजाति की भलाई।‘ अब हिरोशिमा और नागासाकी जैसी दुखदायी घटनाएं दोहराई न जायें। इसके लिए भारत को अपनी संस्कृति, सभ्यता तथा संविधान के आदर्श के अनुकूल सारे विश्‍व में शान्ति स्थापित करने के लिए विश्‍व संसद, विश्‍व सरकार तथा विश्‍व न्यायालय का शीघ्र गठन करने की अगुवाई पूरी दृढता से करनी चाहिए। बाल एवं युवा पीढी जो अपने जीवन के सबसे सुन्दर पलों को इस देश सहित विश्‍व के निर्माण में लगा रहे हैं वे हमारी ताकत, रोशनी, दृष्टि, ऊर्जा, धरोहर तथा उम्मीद हैं।
आइये, भारत के साथ ही विश्‍व को भी सुन्दर एवं सुरक्षित बनाने का प्रयास करें-
वर्तमान समय की मांग है कि विश्‍व के सभी राष्ट्रों के हित को ध्यान में रखते हुए सभी राष्ट्रों का दायित्व है कि वे विश्‍व को सुरक्षित करने के लिए अतिशीघ्र आम सहमति के आधार पर कार्यवाई करें। इस मुद्दे पर कोई राष्ट्र अकेले ही निर्णय नहीं ले सकता है। क्योंकि सभी देशों की न केवल समस्यायें बल्कि इनके समाधान भी एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। इसलिए वह समय अब आ गया है जबकि विश्‍व के सभी देशों के राष्ट्राध्यक्षों को एक मंच पर आकर इस सदी की विश्‍वव्यापी समस्याओं के समाधान हेतु एक विश्‍व व्यवस्था का निर्माण करना चाहिए। हमें पूरा विश्‍वास है कि भारत ही विश्‍व में शान्ति स्थापित करने के लिए सबसे प्रभावशाली, अहम् तथा अग्रणी भूमिका निभायेगा। इसके साथ ही आज भारत जैसे विशाल देश को एकता एवं अखण्डता की बहुत जरूरत है। इसके लिए हमें आपसी मतभेद मिटाकर एकता के सूत्र में बन्धना चाहिए। हमारा मानना है कि सम्पूर्ण मानव जाति के कल्याण के लिए आवाज उठाना ही शूरवीरों के लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी।• - डॉ. जगदीश गान्धी (दिव्ययुग - सितम्बर 2014)

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