पूर्णिमा का चन्द्र पूर्ण सौन्दर्य से नजर आता है। सुन्दर मनोहारी रूप देखकर अपना मन आनन्दित होता है। पूर्ण चन्द्र सौन्दर्य का प्रतीक होता है। अगर किसी महिला का चेहरा सुन्दर व गोल हो तो उसे ‘चन्द्रमुखी‘ नाम से पुकारते हैं। इस प्रकार ‘चन्द्रमुखी‘ व्यक्तिवाचक संज्ञा बन जाती है। कभी-कभी व्यक्तिवाचक संज्ञा और प्रत्यक्ष रूप इनमें फर्क रहता है, वह हमारी मंगलकामना भविष्य में पूरी होने की निर्देशक रह जाती है।
हमने प्राय: देखा-सुना है, चेहरा मन का आयना होता है। मन विचारों का सतत बहने वाला प्रवाह है। विचार क्रोधमूलक हों तो चेहरा कु्रद्ध होता है। मन में दया के भाव हों तो चेहरा वही दिखाता है। कौन आनन्दी है, कौन दुखी है, कौन परिस्थिति से तंग आया है, सब चेहरा देखकर हम पढ सकते हैं। केवल हम ही नहीं जानवर भी समझ सकते हैं। चेहरा देखकर हम व्यक्ति के मन में कौन-से विचार चल रहे हैं, इसका अन्दाज लगा सकते हैं। किसके पास आत्मबल है, किसके पास विधायक विचार हैं, कौन चिन्तित है, कौन हमेशा दुखी है, किसको परिवार में उचित स्थान नहीं है ये बातें चेहरे से पढ सकते हैं। इसलिए हमें अपनी सौन्दर्य साधना में इस तथ्य की ओर ध्यान देना आवश्यक है।
आजकल सुन्दर दीखने के लिए महिलाएँ विविध प्रसाधन-कॉस्मेटिक्स अपने चेहरे पर पोतती हैं। इस स्पर्धा में पुरुष भी पीछे नहीं हैं। पुरुषों के लिए खास प्रकार के अलग प्रसाधन एवं कॉस्मेटिक्स बाजार में उपलब्ध हैं। कभी-कभी ये प्रसाधन व्यक्ति को सुस्वरूप के बदले रूपविहीन, कुरूप, विद्रुप भी बना देते हैं। कभी-कभी ऐसी आशंका पैदा हो जाती है कि आज के युवा ‘हैण्डसम‘ बनना चाहते हैं या ‘ब्यूटीफुल‘।
सौन्दर्य साधना की पहली सीढी है हुँकार। ‘सबै चन्द्रमुखी कहो‘ यह वाक्य व्यक्ति के मन में हुँकार भर देता है, ‘‘नि:सन्देह से कहो मैं चन्द्रमुखी हूँ‘‘। चन्द्रमुखी तेज सात्विकता युक्त सौन्दर्य है। इसलिए मन को सुन्दर बनाने की प्रक्रि या को आत्मसात करना चाहिए।
सुन्दर मन के लिए दूसरी सीढी है सत्संग। सत्संग है पवित्र एवं प्रासादिक साहित्य का स्वाध्याय। सत्संग प्रवचन सुनने से होता है। सत्संग ध्यान-साधना से होता है। उत्तम विचारों का चिन्तन-मनन करने से सत्संग हो सकता है। संक्षेप में सद्विचारों का संग सत्संग है।
तीसरी सीढी है ब्रह्मचर्य का पालन। ब्रह्मचर्य का मतलब केवल काम-जीवन के संयमित आचरण से ही नहीं है। सभी इन्द्रियों के आहार से संयमित नीति का अवलम्बन आहार शुद्धता है। ब्रह्मचर्य साधना है, व्रत है।
चौथी सीढी है जीवनशैली में बदलाव। विदेशियों के संग से हम निष्क्रिय और आलसी बन गए हैं। सुबह ब्राह्म-मुहूर्त पर बिस्तर छोडकर उठना चाहिए। ब्राह्म-मुहूर्त से अर्थ है, सूर्योदय के पूर्व ढाई घण्टे, प्राय: 3.30 से 6.00 सुबह। ईश्वरस्मरण के लिए यह शुभकाल है। आसन, योग, सूर्य नमस्कार, व्यायाम आदि करें। उसके पश्चात् स्नानादि और पूजा-पाठ एवं स्वाध्याय से निवृत्त हों। दिन-भर उत्साह से कार्य करें। रात का भोजन सोने के पहले दो-तीन घण्टे पूर्व हो। दस बजे के पहले सो जाना चाहिए। सोने के पूर्व आधा घण्टा ईश्वरस्मरण करें। वेदों में सुस्पष्ट रूप से कहा है, ‘‘सूरज जिसे सोते हुए को देखता है वह दरिद्री बन जाता है।‘‘ हमने विदेशी भाषा में भी यही सीखा है- Early to bed and early to rise makes man healthy wealthy and wise. पर यह विचार केवल पढने से जीवन सफल नहीं बनता, उसे चरितार्थ करना निहायत जरूरी है। तभी चेहरे की आभा बढकर सौन्दर्य में निखार आयेगा।
तो नि:सन्देह के साथ हुँकार दो कि हम चन्द्रमुखी हैं। - प्रभाकर आत्माराम कुलकर्णी (दिव्ययुग - जून 2014)