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सुखी रहने का मार्ग (5)

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Way to be Happy

एक तरफ आज जहाँ निर्धनता के कारण मजबूरी भरे दृश्य सामने आ रहे हैं, वहीं दूसरी ओर ‘धन की भूख‘ का भूत ही भ्रष्टाचार और घिनौने ढंगों से धन कमाने का बाजार गर्म कर रहा है। अत: धनार्जन के सम्बन्ध में एक स्वस्थ दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। यतो हि इसमें कोई शक नहीं है कि धन बहुत कुछ जरूर है, पर यह ध्यान रहे धन सब कुछ नहीं है। नि:सन्देह गरीबी एक अभिशाप है, क्योंकि गरीब न अपनी और न ही अपनों की मौलिक आवश्यकतायें पूरी कर सकता है तथा समाज में किसी रूप में भी उसकी इज्जत नहीं होती। वह सर्वत्र अयोग्य, अकर्मण्य समझा जाता है और दूसरी ओर धन वालों के ‘कमले भी सयानें‘ सिद्ध होते हैं। वस्तुत: गरीब के साथ जो बीतती है, यह वह ही जानता है। अत: यह सोचना आवश्यक हो जाता है कि-
कोई गरीब क्यों? जीवन-उपयोगी भौतिक पदार्थों को लेने में असमर्थ को गरीब कहते हैं अर्थात् जिसके पास एतदर्थ धन-सम्पत्ति न हो। जिसके द्वारा वह अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अपेक्षित अन्न, वस्त्र, भवन, चिकित्सा, शिक्षा आदि प्राप्त कर सकें। इसी को दूसरे शब्दों में क्रयशक्ति का अभाव भी कहा जा सकता है। जीवनोपयोगी भोग्य पदार्थों को न ले सकने का असामर्थ्य अधिक या थोड़ी मात्रा में जहाँ हो सकता हैं, वहाँ रोगी, अपाहिज, अकर्मण्य होने के कारण तात्कालिक या बिल्कुल नहीं भी होता है। क्योंकि ऐसे व्यक्ति रोगी, अपाहित होने से तात्कालिक रूप से कमा सकने में जहाँ असमर्थ होते हैं, वहाँ कुछ व्यक्ति स्वस्थ होते हुए भी अकर्मण्य होने के कारण कुछ भी करने के लिए तैयार नहीं होते।

हाँ, कुछ ऐसे भी व्यक्ति हो सकते हैं, जो चाहते हुए भी कार्य के अभाव में कुछ भी कमा नहीं सकते। इनको बेकार शब्द से अभिहित किया जाता है। अकर्मण्यता जहाँ अपनी रूचि पर निर्भर है, वहाँ विशेष अपाहिज को छोड़कर रोगी और बेकार की स्थिति अस्थायी है। अत: रोगी का इलाज और बेकार के लिए आजीविका का प्रबन्ध होना चाहिए।

गरीबी की श्रेणी में दूसरे वे लोग भी आते हैं जो कमाते तो हैं, पर थोड़ा ही कमा पाते हैं। क्योंकि वे जो भी कार्य करते हैं, वह बहुत थोड़ा होता है या उनको कार्य नियमित रूप से प्राप्त नहीं होता। जिन दिनों उनको कार्य प्राप्त होता है, उन दिनों उनकी आय पर्याप्त हेाती है। अत: ऐसे व्यक्ति के लिए कार्य के विकल्प का विचार और प्रबन्ध होना चाहिए।

कुछ इसलिए थोड़ा कमाते हैं, क्योंकि वे जो कार्य करते हैं, उसकी समाज में बहुत कम कीमत आंकी जाती है। अनेक कार्य समाज के लिए उपयोगी होते हुए भी हल्के समझे जाते हैं। जैसे कि एक मजदूर या सफाई वाले का कार्य। अतएव वेतनमानों में आज बहुत अधिक अन्तर है और वह बहुत अधिक श्रेणियों में विभक्त है। कुछ इसलिए कम कमाते हैं, क्योंकि वे अपने कार्य में दक्ष नहीं होते। ऐसों को जहाँ दक्ष बनाया जाए, वहाँ जिनको योग्य होने पर भी रिश्‍वत, सिफारिश, पहुंच आदि के अभाव में अयोग्य स्थानों पर नियुक्त कर दिया गया है। उसका तो यही इलाज है कि उनको योग्य स्थान पर नियुक्त किया जाए।

गरीबी की श्रेणी में तीसरे प्रकार के वे लोग आते हैं जो कमाते तो पर्याप्त हैं, परन्तु कमाई अपने या दूसरों द्वारा शोषित अथवा लूट ली जाती है। तब ‘आगे दौड़ पीछे चौड़‘ वाली बात हो जाती है। इसका कारण कहीं अज्ञान, लापरवाही, असंयम, विलासिता, व्यसन होता है तो कहीं फिजूलखर्ची या दिखावे की भावना होती है। अत: आय के साथ व्यय को सूझ-बूझ से करना भी जरूरी है।

नि:सन्देह आज हमारे देश में गरीबी का ताण्डव नृत्य हो रहा है। पुनरपि स्पष्ट नुकसान देने वाले शराब, धूम्रपान जैसे नशीले पदार्थ, मांस, जुए, लाटरी का खूब प्रसार हो रहा है। गरीबी का एक कारण फैशन और दिखावे की भावना भी है। अपनी स्थिति का ध्यान रखे बिना अपने आपको अमीर दिखाने के लिए अनेक रूपों में खुला खर्च किया जाता है। ऐसे ही कुछ की गरीबी का कारण धार्मिक-सामाजिक प्रथाओं का प्रभाव है। जैसे कि मृतक के नाम पर होने वाले बह्मभोज, श्राद्ध, चौवर्सी आदि और विवाह आदि के आधुनिक रीति रिवाज भी हैं।

क्या अमीरी-गरीबी भाग्य से मिलती है? अनेक लोग अमीरी-गरीबी को भाग्य से समझते हैं और कहते हैं कि जिसके भाग्य में गरीबी बदी है, वह हर प्रकार का प्रयास करने पर भी अमीर नहीं हो सकता। प्रतिदिन के अनुभव के आधार पर जब हम इस पर विचार करते हैं कि पुरुषार्थ और भाग्य की स्थिति खेत की तैयारी और बीज की तरह है। अत: दोनों का समन्वय आवश्यक है। धनी देशों और व्यक्तियों का इतिहास भी इसका साक्षी है कि अमीरी के मुख्य रूप से चार कारण हैं । जैसे कि -
1. व्यक्ति की योग्यता
2. परिस्थिाति
3. सुविधा की अनुकूलता
4. धन का व्यवस्थित उपयोग या व्यय।

तभी तो कहा है-
पसीने से नसीब बदलो मेहनत का सिक्का चलता है। •(क्रमश:) - प्रा. भद्रसेन वेदाचार्य (दिव्ययुग- मार्च 2015)

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