किसी ने खूब कहा है- लक्ष्यरहित जीवन मल्लाहरहित नाव जैसा है। एक लक्ष्य चुनें और उसकी प्राप्ति में जुट जाएँ। ईश्वर-प्रदत्त अमूल्य जीवन को लक्ष्यविहीन रहकर पशुओं की तरह बरबाद कर देना कहाँ की बुद्धिमानी है? जीवन में प्रगति के लिए सबसे पहले एक सुनिश्चित लक्ष्य निर्धारित करना जरूरी है। यदि कोई लक्ष्य नहीं रखा जाता है, तो जीवन का प्रयोजन ही खत्म हो जाता है। जिसने लम्बे समय तक लक्ष्य-प्राप्ति का प्रयत्न किया, वही व्यक्ति अच्छा जीवन जी सकता है।
लक्ष्य को चुनते समय एक बात का ख्याल रखें कि यह आपने सोच-समझकर चुना हो, न कि किसी को देखकर। यदि आपने सोच-समझकर लक्ष्य चुन लिया और लक्ष्यों की मृगतृष्णा में नहीं भटके, तो समझिए आपने आधा कार्य पूरा कर लिया। गाड़ी के लिए सिर्फ गति प्राप्त करना ही कठिन होता है। एक बार गति पकड़ लेने के पश्चात रास्ता तय करने में कोई खास परेशानी नहीं होती। परन्तु कभी-कभी ऐसा होता है कि अपने बहुमूल्य समय का उपयोग हम व्यर्थ की योजनाएँ बनाने में करने लगते हैं और अनेक लक्ष्य निर्धारित कर लेते हैं। जब हम अनेक लक्ष्य निर्धारित कर लेते हैं, तो हमारी हालत उस हिरण के समान हो जाती है, जिसे तपते में भी चारों ओर सरोवर ही दिखाई देता है। अतः एक लक्ष्य सफलता की सीढ़ी है। प्रत्येक युवक को चाहिए कि वह अपने लक्ष्य के अनुरूप वातावरण का निर्माण करे। अच्छे वातावरण में रहना और बुरे वातावरण से बचना सफलता की एक बड़ी आवश्यकता है।
वातावरण की प्रबलता को मानवीय विवेक और मनोबल से बदला जा सकता है। ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं, जिनमें कई बार असफल होने वाले लोगों ने लगन तथा सतत पुरुषार्थ के बल पर अपना लक्ष्य प्राप्त कर लिया। पं. मदनमोहन मालवीय ने कहा था कि एक बार लक्ष्य निर्धारित करने पर सफलता अवश्य मिल जाती है। अगर आपका लक्ष्य एक है और उसकी प्राप्ति हेतु की जाने वाली अन्य भी परीक्षाओं में काम आ सकती है, तो विकल्प के रूप में एक जैसी अनेक परीक्षाओं में सफल हुआ जा सकता है। हाँ, लक्ष्य के विपरीत मनोभावों की चंचलता के शिकार होकर यदि आप अन्धाधुन्ध या आनन-फानन में परीक्षाओं में बैठेंगे, तो नतीजे सकारात्मक आने के अवसर शून्य के बराबर होंगे।
एक लक्ष्य का निर्धारण ही सफलता तक ले जा सकता है। उदाहरणार्थ, एक ही स्टेशन से अनेक दिशाओं में गाड़ियाँ जाती हैं। स्टेशन पर उनकी पटरियाँ पास-पास ही होती हैं। किन्तु कुछ ही आगे कई मोड़ आ जाते हैं, जो रेलगाड़ियों की दिशाओं को बदल देते हैं। रेलगाड़ियों के गन्तव्य में सैकड़ों किलोमीटर का फासला हो जाता है। यदि कोई व्यक्ति स्टेशन पर खड़ी रेलगाड़ियों में से बिना अपने गन्तव्य स्थान को ध्यान में रखे किसी भी डिब्बे में बैठे, तो वह कहीं भी पहुँच जाएगा। लेकिन यदि वह निश्चित गाड़ी में बैठेगा, तो निश्चित स्थान पर ही पहुँचेगा। विश्व इतिहास यह बताता है कि कोई भी दुर्भाग्य एक इच्छित लक्ष्य वाले युवकों को सफलता से नहीं रोक सकता। अनेक लक्ष्य उन कामनाओं की तरह होते हैं, जो उबलते दूध की तरह खाली बरतन को भी भरा दिखाते हैं, किन्तु उबलता हुआ दूध कुछ समय पश्चात् बैठ जाता है। इसके विपरीत एक लक्ष्य उस बाण की तरह होता है, जो निशाने पर पहुँचकर ही दम लेता है। कार्य कठिन लगे या उसके लिए अधिक परिश्रम करना पड़े तो निराश न हों।
लक्ष्य तक पहुँचने में आने वाली कठिनाइयों का पूर्ण मनोबल से सामना करें। जो व्यक्ति स्वयं को नकारते हैं, वे अपनी असफलता को बुलावा देते हैं। कारणवश असफलता मिल जाए, तो भी उत्साह व साहस से इच्छित लक्ष्य की प्राप्ति हेतु संघर्षरत रहें। - कारूलाल जमड़ा
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