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वैदिक परंपरा में भारतीय संवत

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bhartiya sanwat

दिनांक 7 अप्रैल 2008 सोमवार को विक्रम संवत् 2065 आरम्भ हो रहा है। इस संवत् से पूर्व वैदिक कालगणना के अनुसार और भी संवत् हैं। जैसे सृष्टि संवत्, कलि संवत् आदि। अध्ययन, चिन्तन एवं मनन की दृष्टि से अत्यन्त संक्षेप में भारतीय कालगणना इस प्रकार हो सकती है- विक्रम संवत् 2064 की समाप्ति पर कालगणना का जो रूप उभरता है, वह निम्नानुसार है-
          सम्वत्                                      आजतक व्यतीत वर्ष
1. सृष्टि सम्वत्                                   1,97,29,420,64 वर्ष
    (सृष्टि के उत्पन्न होने का समय)
2. मानव सम्वत्                                  12,05,33,064
   (मानवोत्पत्ति का समय)
3. कलियुग संवत्                                 5,064
   (कलि के प्रारंभ का समय)
4. विक्रम संवत्                                    2064
यह वैदिक कालगणना का श्रेष्ठतम उदाहरण है। इस गणना की तुलना में अन्य गणनाएँ दोषपूर्ण प्रतीत होती हैं। वैज्ञानिकों के द्वारा अलग-अलग आधार लेकर गणनाएँ की गई हैं, जो अलग-अलग वर्ष संख्या बतलाती हैं। किसी ने सूर्यताप के आधार पर गणना की है, तो किसी ने भूताप के द्वारा। किसी ने समुद्रजल का आधार लिया है, तो किसी ने भूगर्भ के आधार पर गणना की है। रेडियो एक्टीविटी के आधार से भी गणना की गई है। विचारणीय विषय यह है कि ये सभी गणनाएँ एक दूसरे से नहीं मिलती। सृष्टि उत्पत्ति के सम्बन्ध में यही स्थिति अन्य धार्मिक मान्यताओं की है, जो एक दूसरे से नहीं मिलती। इन आधारों पर काल गणना का सच्चा हिसाब आर्यों के सृष्टि संवत् से प्रतीत हो सकता है। बिना इस आधार के सृष्टि व मनुष्य की उत्पत्ति का काल निर्धारण संभव नहीं। कुछ भारतीय विद्वानों ने भी विदेशियों की कालगणना का आधार लेकर विचार प्रकट किए हैं। वे भी अलग-अलग संख्या बतलाते हैं। मतभिन्नता के कारण इन्हें मान्य नहीं किया जा सकता।

अब प्रश्‍न उपस्थित होता है कि विक्रम संवत् का प्रारंभ विगत संवत् के आधार पर इसी दिन से हुआ है अथवा नहीं। कुछ मान्यता है कि विक्रम संवत का प्रारंभ महाराज विक्रमादित्य के राजसिंहासन पर बैठने के दिन से हुआ है। यह भी संभव है कि महाराज विक्रमादित्य ने अपने सिंहासन पर बैठने का दिन पूर्व संवतों पर ही शुभ मुहूर्त में किया हो। विद्वानों की इस राजसभा को पूर्व संवत् की जानकारी तो होगी ही, जिन्होंने सिंहासन पर बैठने की तिथि निश्‍चित की होगी।
कुल मिलाकर हम भारतीयों को आर्यों की कालगणना पर गर्व है।• - जगदीश दुर्गेश जोशी

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