विशेष :

आलोचक न बनें

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alochak na bane

लोगों में एक आदत होती है दूसरों की आलोचना करने की, उनमें कमियाँ निकालने की। जहाँ भी जाइए, लोग अगर बिना किसी कार्य के एक जगह बैठकर बात कर रहे होंगे तो उनकी बातों में दूसरों की आलोचना के अतिरिक्त किसी की प्रशंसा कम सुनने को मिलेगी। असल में आलोचना या छिद्रान्वेषण करना बहुत आसान है। आप अपने घर में देख लें, स्कूल कालेज हो, सरकारी गैर सरकारी कार्यालय हो, कॉफी हाउस हो, राजनैतिक पार्टी का कार्यालय हो या रेल का सफर हो, अगर लोगों को चाहे वे पुरुष हों चाहे महिलाएं हों या स्कूल कालेज के विद्यार्थी हों, जितना आनन्द उन्हें दूसरों की आलोचना में आता है उतना किसी के गुणगान करने में नहीं ।

बात घर-परिवार से शुरु करते हैं। सास-बहु, ननद-भौजाई की एक दूसरे की आलोचना करने की बात तो जग प्रसिद्ध है ही। बहु कितनी भी अच्छी हो, उसकी सास उसमें कुछ न कुछ कमी निकालकर दूसरों को बतलाएगी। ऐसा ही सास का है। सास अपनी प्यारी बहु के लिए कितना भी अच्छा करे, फिर भी जरूरी नहीं कि बहु सन्तुष्ट हो और वह अपनी किसी सखी या बहन को अपनी सास की कमियां न गिनाए। सासु जी कहती हैं कि हमारी बहु हमारा ध्यान नहीं रखती। बहु कहती है, सासु जी के बन्धन में हम बन्धे हैं, अपनी इच्छा से कुछ नहीं कर सकते। बच्चों की दादी अपने पोती-पोते पर लाड़-प्यार अधिक करे तो बहु को शिकायत होती है कि सासु जी हमारे बच्चों को बिगाड़ रही है। पत्नी अगर किट्टी पार्टी आदि में जाना शुरु कर देती है, तो पति महोदय शिकायत करते हैं कि घर की देखभाल नहीं होती, बच्चों का ध्यान नहीं रखती। अगर पति महोदय अपने आफिस से रोज देर से आते हैं तो पत्नी नाराज होती है। बेटा कितना भी योग्य बन जाए, परन्तु पिता जब उसे फिर भी नासमझ कहे तो बेटे को शिकायत होती है कि मेरे पिताश्री मुझे अभी भी बच्चा ही समझते हैं। पिता को शिकायत रहती है कि बेटा मुझे पुराने विचारों का समझता है । कहता है जमाना बदल गया है, जमाने के साथ चलना सीखिए। जीवन में सन्तुलन रह ही नहीं गया है। दूसरों के दृष्टिकोण को समझने की आवश्यकता है। हम अपने को ही ठीक समझते हैं। एक दूसरे को समझने का प्रयत्न करें, न कि उनके काम में कमियाँ देखें। देखें तो गुण देखने का प्रयत्न करें।

आप अपने घर-परिवार को तो देख नहीं पाते ठीक तरह से, पास-पड़ोस में क्या हो रहा है उस पर नजर रखते हैं। हमारे पड़ोसी के बहु-बेटियां कहाँ जाती हैं कैसे जाती हैं, इन बातों को अपनी बातचीत में अवश्य बखान करेंगे। कोई कितना फैशन करता है, कोई कब जाता है, कब आता है, हमें क्या लेना-देना। पर नहीं, ये बाते चर्चा में रहती हैं। किसी का लड़का अगर पढता-लिखता नहीं या इधर-उधर घूमता है, तो आप क्यों परेशान हैं ? हम बलपूर्वक किसी को सुधार नहीं सकते ।
स्कूल-कालेज में विद्यार्थियों को लीजिए। वे भी कम नहीं हैं। अगर कोई काम नहीं तो एक दूसरों की आलोचना करेंगे। चलो अपने साथियों की करे तो करे, अपने अध्यापकों जो गुरु हैं, उनमें भी कमियां निकालते हैं। कार्यालयों में जाइए । वहाँ भी जब लोगों के पास कोई काम नहीं होता या कैन्टीन आदि में बैठे होते हैं, अपने सहयोगी कर्मचारी की या बोस की ही आलोचना करते मिलेगे। किसी कर्मचारी को शिकायत है कि उसने किसी प्रोजेक्ट के लिए सारा काम किया और अधिकारी ने उस प्रोजेक्ट की रिपोर्ट में उसका नाम तक नहीं दिया। किसी को शिकायत है कि बोस ने मुझे प्रमोशन नहीं दिया, जबकि मेरे जूनियर को प्रमोट कर दिया । ऐसे न जाने कितनी बाते सुनने को मिलेंगी।

राजनीति के क्षेत्र में चले जाइए। वहाँ भी एक दूसरे के काम में नुक्ता-चीनी करते मिलेंगे लोग। किसी पार्टी का कार्यकर्ता कहता है कि मैंने अमुक मंत्री जी के चुनाव में जीजान से काम किया वे मुझ से मिलना ही नहीं चाहते, उन्हें समय नहीं। किसी मंत्री को शिकायत है कि हमारी पार्टी के प्रेसीडेन्ट हम अपने क्षेत्र में जो कार्य करना चाहते हैं उसे करने नहीं देते।

हम आलोचना और छिन्द्रान्वेषण से बचें और अपना समय कुछ रचनात्मक कार्य में लगाएं। समाज और देश की उन्नति में समय लगाएं। दूसरों के भले के लिए कार्य में लगाएं। समाज और देश की उन्नति में समय लगाएं। दूसरो के भले के लिए कार्य करें, तो आलोचना के लिए समय ही नहीं मिलेगा।• - विनोदशंकर गुप्त

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