जीवन में जो कुछ हम प्राप्त करना चाहते हैं वह सब कुछ जरूरी नहीं कि सुगमता से सुलभ हो जाये । उसमें बाधा-विघ्न भी आ सकते हैं। उन बाधा-विघ्नों से विचलित न होकर उनका सामना करना होगा। ऐसा भी सम्भव नहीं है कि सब कुछ आपकी इच्छा के अनुरूप कार्य होते चले जाएं। जीवन में अच्छे और बुरे सभी प्रकार के अनुभवों का सामना करना पड़ता है। जब हमको हमारी इच्छा के अनुसार मिल जाता है, हम बहुत प्रसन्न होते हैं और जब नहीं मिलता तो दुखी हो जाते हैं। कोई हमें कभी कटुवचन भी बोल सकता है, अपमान भी कर सकता है । उस समय यदि हम अपने क्रोध पर नियंत्रण रख सकें, लड़ाई-झगड़े से बच सकते हैं। शान्त रहकर प्रतीक्षा करें। शायद कटुवचन बोलने वाले या अपमान करने वाले को समझ आ जाए और वह आप से क्षमा भी मांग ले। जो आज खराब है, अरुचिकर है, वह कल अच्छा और रुचिकर हो सकता है। जैसे हम अच्छी बात को, अच्छी वस्तु को स्वीकार करते हैं, ऐसे ही इसके विपरीत परिस्थिति को भी स्वीकार कर सकें तो हम प्रसन्न रह सकते हैं। हमें मानसिक तनाव भी न होगा।
एक संत गंगा जी में स्नान करके बाहर निकले तो वहाँ खड़े एक सिरफिरे व्यक्ति ने उनके ऊपर थूक दिया। सन्त ने कुछ नहीं कहा और वे फिर गंगा जी में स्नान करने गये। जब-जब वे गंगा जी में स्नान कर बाहर निकलते वह सिरफिरा व्यक्ति उन सन्त के ऊपर फिर से थूक देता। सन्त ने उस व्यक्ति को कुछ नहीं कहा। जब सन्त गंगा जी में 108 बार स्नान करके बाहर निकले, तब उस सिरफिरे व्यक्ति ने संत के चरण पकड़कर माफी मांगी अपनी गलती पर। सन्त ने उस व्यक्ति को उठाया और कहा कि भाई, तुमने मेरे ऊपर बड़ा उपकार किया। आज तुम्हारे कारण मैं गंगाजी में 108 बार स्नान कर सका, रोज तो एक बार ही स्नान करता था। तुम्हें बहुत धन्यवाद ।
जीवन में हमें अच्छे और बुरे दोनों ही प्रकार के व्यक्ति मिल सकते हैं। जब अच्छे सज्जन पुरुष हमें मिलते हैं तब हम उनका सत्कार करते हैं, उनको मान सम्मान देते हैं। और यदि कभी कोई बुरा या अभद्र पुरुष मिल जाये तब हम उससे दूर भागने का प्रयत्न करते हैं। उसे स्वीकार नहीं करते। लेकिन हो सकता है कि कोई बुरा या अभद्र पुरुष कभी आपके काम आ जाये । समय बदलते देर नहीं लगती। बुरा भी अच्छा हो सकता है।
जब कभी हमें कोई कटुवचन कह देता है या गाली दे देता है तब हम उलटकर उसे भी कटुवचन कह देते हैं । झगड़ा कर लेते हैं, हम धैर्य खो बैठते हैं। उस व्यक्ति के कटुवचन सहन नहीं होते। यदि हम उलटकर कटुवचन या गाली न दें तो हम बुराई से बच जाएंगे।
हम केवल सुन्दर या अच्छी वस्तु को ही स्वीकार करते हैं। सुन्दर रूपवान वस्तु को देखकर प्रसन्न होते हैं। कुरूप वस्तु की ओर देखना भी पसन्द नहीं करते। प्रख्यात साहित्यकार बाबू गुलाबराय ने ‘फिर निराश क्यों’ पुस्तक में लिखा है- “सौन्दर्य का अस्तित्व ही कुरूपता के ऊपर निर्भर है। सुन्दर पदार्थ अपनी सुन्दरता पर चाहे जितना मान करे, किन्तु असुन्दर पदार्थ की स्थिति में ही वह सुन्दर कहलाता है। कीचड़ से ही कमल की उत्पत्ति है और गुलाब भी कटीली टहनियों में खिलता है। मोती सीप से पैदा होता है। कीट से रेशम उपजता है। अतिशय कर्कश, टेढे और रूखे पत्थर से मनोमुग्धकारिणी मूर्तियाँ रची जाती हैं । जो वस्तु आज कुरूप है वह कल रूपवान बन जायेगी।’’ इसलिए हम कुरूप वस्तु को भी स्वीकार करना सीखें । वह भी अपना कुछ महत्व रखती है। आज के युग में जिस चीज को हम बेकार समझते हैं, वह भी उपयोग में आ जाती है। विज्ञान ने बहुत उन्नति कर ली है।
कभी-कभी ऐसा भी होता है कि हम यदि किसी से कुछ मांगते हैं और वह व्यक्ति हमें उस वस्तु को देने से इन्कार कर देता है तो हम दुःखी हो जाते हैं, निराश हो जाते हैं। हो सकता है, जिससे हमने कुछ मांगा है उसकी कुछ मजबूरी हो सकती है इन्कार करने की । हम उसे नहीं समझ पाते। हम जो वस्तु प्राप्त करना चाहते हैं उसके लिए निराश नहीं होना चाहिए । धैर्य रखकर उसे प्राप्त करने के लिए प्रयत्न करते रहना चाहिए । कोई और भी रास्ता निकल सकता है। सफलता मिल जाएगी।
जो हम प्राप्त करना चाहते हैं, वह महत्व रखता है। जो हम नहीं प्राप्त कर सके उसका अधिक मूल्य नहीं। जो हम प्राप्त करना चाहते थे उसके लिए हमने पूरा प्रयत्न किया या नहीं, यह हमें अवश्य समझना चाहिए। प्रयत्न न करके आलस्य में पड़े रहना ठीक नहीं। यत्न करने पर यदि सफलता न मिले तो हमारा दोष नहीं। कभी-कभी विफलता हमें बतला देती है कि जो मार्ग हमने चुना है वह ठीक नहींहै। विफलता नवीन मार्गों की खोज में सहायक होती है। यदि विफलता हमारी कमियों के कारण है तो हमें अपनी कमियों को पूरा करना चाहिए। यदि विफलता दूसरों की प्रतिकूलता के कारण है तो दूसरों को हमें अनुकूल बनाना चाहिए। जीवन में विषमताएँ भी आयेंगी, उनसे निराश न हों, दूर न भागें उनका सामना करें, तो विषमताएं दूर हो जाएगी। - विनोदशंकर गुप्त
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