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लोकप्रिय कैसे बनें?

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लोकप्रिय शब्द का अर्थ है, लोगों में ‘प्रिय’ अर्थात् ऐसा व्यक्ति जो अपने घर-परिवार, रिश्तेदार, मित्रों, आस-पड़ोस, मुहल्ले, कस्बे, शहर-समाज सभी में लोगों का प्रिय हो। वर्तमान समय में नेता, अभिनेता, मन्त्री आदि खास लोग चर्चित होते हैं। इनमें से अभिनेता ज्यादा लोकप्रिय होता है। इसलिए प्रायः बच्चे, किशोर, युवा, अधेड़ और कभी-कभी बूढ़े भी अभिनेता की तरह लोगों के प्रिय बनना चाहते हैं और जिन्दगी भर दूसरों की नकल करने में लगे रहते हैं। दरअसल लोकप्रिय होने के लिए किसी की नकल नहीं, बल्कि जीवन के गुणों को ही विकसित करना चाहिए। लोकप्रियता एक प्रकार की मनौवैज्ञानिक भूख है, जो हर व्यक्ति में होती है। आज व्यक्ति किसी तरह से अपने आसपास के लोगों में आकर्षण का केन्द्र बनना चाहता है।

जीवन में लोगों के आकर्षण का केन्द्र बनने या लोकप्रिय होने के कुछ उपाय इस प्रकार हैं-
1. सर्वप्रथम अपने व्यक्तित्व और व्यवहार में अन्तर्मुखता का त्याग कर बर्हिमुखता को स्थान दें। क्योंकि यह प्रवृत्ति आपको समाज से अलग करती है और लोकप्रिय होने के लिए लोगों के बीच रहना जरूरी है।
2. आप जो है, वह रहिए। झूठा दिखावा न करें, क्योंकि सच्चाई का पता चलने पर कोई आपको पसन्द नहीं करेगा।
3. बिना मांगे सलाह न दें। किसी भी व्यक्ति को आवश्यकता पड़ने पर ही अपनी राय या सलाह दें, अन्यथा उसका कोई महत्व नहीं रहेगा।
4. अपने ज्ञान का विविध क्षेत्रों में विस्तार करें।
5. उच्च पदासीन व्यक्ति भी अक्सर अपने परिवार, रिश्तेदारों और पड़ोसियों में आदर-सम्मान की दृष्टि से नहीं देखे जाते। यहाँ तक कि काम पड़ने पर भी लोग उनके पास जाना पसन्द नहीं करते। इसका प्रमुख कारण यह है कि ये लोग समझते हैं कि मेरा सम्मान नहीं होगा। यही गर्वानुभूति उन्हें समाज में अकेला कर देती है। अतः अनावश्यक पद गरिमा के गर्व-दम्भ से बचें।
6. जब कोई आपसे मिलने आये, तो मुस्कुराकर उसका स्वागत करें। अपने दुश्मन से भी अच्छा व्यवहार करें। आपका किया अच्छा व्यवहार ही उसे शर्मिन्दा कर देगा।
7. समय की कीमत और अपने वचन की रक्षा करें। समय पर दी गयी दवा ही मरीज को निरोगी करेगी। अतः समय को पूंजी के समान खर्च करें तथा अपने वचन की रक्षा करें। जो भी कहें उसे पूरा अवश्य करें। अन्यथा आपके वचन का कोई मूल्य नहीं रहेगा।
8. अपना हृदय विशाल रखें। दूसरों की सहानुभूति या दया लेने की कभी कोशिश न करें। बल्कि हमेशा दूसरों की सहायता करने के लिये ही प्रयत्नशील रहें।
9. अपने से बड़ों का आदर, समवयस्कों के साथ मित्रवत् व्यवहार आपको बड़े-बुजुर्गों, समवयस्कों और छोटे बच्चों सभी में लोकप्रिय और सम्मानित बनायेगा।
10. ’अति सर्वत्र वर्जयेत्’ अर्थात् हर चीज की अति हमेशा बुरी होती है। अतः जरूरत से ज्यादा बोलना और जरूरत से ज्यादा चुप रहना भी खराब है। अपने व्यवहार में अति से बचें।
11. व्यक्ति को देखकर उसके व्यक्तित्व और मर्यादा के अनुसार ही व्यवहार करें।
12. दूसरों के जीवन, उनकी समस्याओं आदि में अनावश्यक हस्तक्षेप न करें।
13. अपनी मनोरंजक विचारशैली बनाए रखें, ताकि लोगों के बीच आपकी उपस्थिति महत्वपूर्ण बन सके।
14. जीवन में सफलता पाने के लिए मुस्कुराना सीखें। प्रसन्नता और मुस्कुराहट से सैकड़ों मित्र बनेंगे। - डॉ. प्रेरणा चतुर्वेदी
आकाश में एक मच्छर को भी उड़ने की उतनी ही आजादी है जितनी गरुड़ को, परन्तु मच्छर गरुड़ के बराबर ऊँचा नहीं उड़ सकता।

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