गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में कहा है कि दुष्ट लोगों को विनम्रता और प्रेम की भाषा समझ में नहीं आती। शक्ति से अथवा भय दिखाकर ही उन्हें नियन्त्रण में किया जा सकता है या फिर उन्हें समाप्त किया जा सकता है। देश में बढ़ रहे आतंकवाद और अलगाववाद को खत्म करने के लिए भी भय की भाषा की ही जरूरत है। हाल ही में जम्मू कश्मीर सरकार ने वर्षों से जेल में बन्द मसर्रत आलम नामक एक अलगाववादी को छोड़ दिया था। उसके बाहर आते ही कश्मीर में एक बार फिर पत्थरबाजी का दौर शुरू हो गया। उसने रैलियाँ कर पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाए तथा पाकिस्तानी झण्डे भी लहराए। मेरी जान पाकिस्तान कहने वाले इस मर्सरत को छोड़ने वाली राज्य सरकार दुर्भाग्य से भाजपा के सहयोग से चल रही है, जो खुद को राष्ट्रवादी कहते नहीं थकती। हालांकि बाद में इस मसर्रत को फिर से जेल में डाल दिया गया, लेकिन उसके बाहर आने का मकसद तो पूरा हो ही गया। घाटी में भारत विरोधी आवाजें एक बार फिर तेजी से बुलन्द होने लगी हैं। अब वहाँ पाकिस्तानी झण्डे और भारत विरोधी नारेबाजी आम हो चली है। जम्मू कश्मीर की मुफ्ती सरकार को समर्थन भाजपा के गले की फांस बन गया है।
इतना ही नहीं अब तो वर्षों से जारी अमरनाथ यात्रा पर भी अलगाववादी नेताओं ने आंखें दिखाना शुरू कर दिया है। हिन्दू समुदाय की आस्था और श्रद्धा के केन्द्र अमरनाथ की यात्रा जुलाई में शुरू होगी, लेकिन इन अलगाववादियों ने आतंकवादियों की भाषा बोलना शुरू कर दी है। वे कहने लगे हैं कि अमरनाथ यात्रा को 15 दिन के लिए ही सीमित कर दिया जाए, जबकि लाखों श्रद्धालुओं को देखते हुए यह अवधि बहुत ही कम है। यात्रा की अवधि सीमित करने के लिए पर्यावरण की दुहाई भी दी जा रही है, जबकि कश्मीर के सीने को छलनी करती गोलीबारी और बम विस्फोट से होने वाले नुकसान पर कभी इनकी जुबान नहीं खुलती। शायद धमाकों में इन अलगाववादियों को संगीत सुनाई देता होगा। केन्द्र सरकार को चाहिए कि वह इन देशद्रोही तत्वों और उनके आकाओं को कड़ा सन्देश दे और बताए कि होगा तो वही जो भारतवासी चाहेंगे। जम्मू कश्मीर किसी की बपौती नहीं है। यदि इनको थोड़ी भी ढील दी गई तो इन विषधरों की मांगों का फण और फैलता ही जाएगा।
करीब 25 वर्षों से अपनी ही भूमि से भगाए गए कश्मीरी पण्डितों की वापसी की सुगबुगाहट शुरू हो गई है, लेकिन इसके साथ ही विरोध की आवाजें उठना भी शुरू हो गई हैं। इन्हीं अलगाववादियों ने उन्हें सुरक्षा को लेकर डराना शुरू कर दिया है तो कल पण्डितों को अलग बसाने को राजी मुख्यमन्त्री मुफ्ती मोहम्मद सईद भी अलगाववादियों के सुर में सुर मिलाने लगे हैं कि पण्डितों को कश्मीरी मुसलमानों के साथ ही रहना होगा। लेकिन इस बात की गारण्टी किसी के पास भी नहीं है कि पण्डितों की सुरक्षा का क्या होगा। क्योंकि पण्डित उन लोगों के साथ रहने को कतई राजी नहीं होंगे, जिन्होंने आतंकवादियों के सहयोग से उन्हें अपनी ही जमीन से बेदखल कर दिया। उनकी सम्पत्ति लूट ली गई। कई महिलाओं और बच्चियों से बलात्कार किया गया। हालांकि यह कहना भी गलत नहीं होगा कि अलग रहकर भी पण्डित पूरी तरह सुरक्षित नहीं रह पाएंगे । क्योंकि एक साथ रहेंगे तो वे आतंकवादियों के लिए आसान शिकार हो जाएंगे। होमलैण्ड की मांग कर रहे कश्मीरी पण्डितों को इस मामले में फैसला सोच-समझकर ही लेना होगा। क्योंकि कोई भी गलत फैसला उनके और उनके परिजनों के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है। केन्द्र सरकार को ऐसा कदम उठाना होगा ताकि अलगाववादियों और आतंकवादियों में भय पैदा हो, कुछ करने से पहले वे सौ बार सोचें। अब बहुत हो चुका, कठोर फैसले लेने ही होंगे, देश हित में, आम नागरिक के हित में।
दूसरी ओर केन्द्र सरकार एक नारा बड़े ही जोर-शोर से उछाल रही है- बेटी पढ़ाओ, बेटी बढ़ाओ। लेकिन, बेटियाँ सिर्फ नारों से ही नहीं बढ़तीं। इसके लिए जरूरत होती है अच्छे संस्कारों की, अच्छी परवरिश की। जो लोग बड़ी मुश्किल से दो वक्त की रोटी जुटा पाते हैं, वे कम उम्र में ही बच्चों को मजदूरी में लगा देते हैं। उन्हें शिक्षा नहीं मिल पाती, संस्कार तो दूर की बात है। ऐसे में बेटियाँ कैसे बढ़ेंगी और कैसे पढ़ेंगी और कैसे पैदा होंगी रानी लक्ष्मीबाई और रानी दुर्गावती, जो अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए तलवार लेकर दुश्मन के दांत खट्टे करने के लिए निकल पड़ें। जून माह में इन दोनों ही वीरांगनाओं की पुण्यतिथि है। दिव्ययुग परिवार इन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करता है और प्रणाम करता है इनकी राष्ट्रभक्ति को, इनके शौर्य को ! (दिव्ययुग- जून 2015)
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