क्षणार्धरम्या न सुखाय नार्यः रक्षन्ति वंशं कुलयोषितस्तु।
क्षणप्रभायास्तडितो न पातम् इच्छन्ति लोका जलमेव मेघात्॥121॥
लोकापवादः किमुपेक्षणीयः? पापं सहन्ते न जना हि पुण्ये।
विषौषधेः किं ग्रहणं हिताय? न रक्षणीया विषकन्यका ‘सा’ ॥122॥
सदुत्तरीयं मलिनं यदि स्यात् मालापि कण्ठस्य विदारिणी स्यात्।
सुराप्रभावादसुरो नरः स्यात् न ‘सा’ स्वकीया सुखदा भवेन्नः॥123॥
राज्ये प्रभुत्वं च विवेकहीनं स्वपक्षहानिं कुरुते तदेव।
प्रमत्तबुद्धिः समरे गजोऽपि हन्ति स्वसैन्यम् ह्यविचारतश्च ॥124॥
किं नागिणीशीर्षमणिर्न रम्यः ? शय्यापदे सा न तु पालनीया।
दृश्यं गिरेः सुन्दरकन्दरायाः शृंगात्तु तस्यां पतनं वरं किम् ? ॥125॥
अनिन्द्यरूपा मम बन्धुजाया गृहे न योग्या परिरक्षितुं सा।
या छूरिका कांचननिर्मितापि किमर्हति स्वोरसि सा प्रवेष्टुम् ? ॥126॥
मध्ये तु रावो निजगाद बन्धुम् ‘मस्तानिरेषा मम भाग्यरेषा।
निन्दन्तु मां ये कृपण-स्वभावाः न निन्दकानां वचनं प्रमाणम्’॥127॥
निशम्य बन्धोर्वचनं स रावो मस्तानि-निन्दा-वचनाहतोभूत्।
विरम्य तूष्णीं च नियम्य मन्युम् उवाच बन्धुं कटुभाषिणं सः ॥128॥
‘सम्माननीयता तव बन्धुजाया तस्या विवाहोऽपि मयेति सत्यम्।
उदेति सूर्यो नितरां प्रभाते करण्डकाच्छादितकुक्कुटेऽपि ॥129॥
का नागिणी? कश्च मणिस्तु तस्याः ? मणिर्हरेश्च प्रियकौस्तुभः सः।
किं करन्दरा सा जननी न नद्याः? लोकास्तु मज्जन्ति न नगात् पतन्ति॥130॥
हिन्दी भावार्थ
क्षणमात्र सुन्दर स्त्रियाँ नित्य सुख नहीं दे सकतीं। कुलवधुएँ वंश की रक्षा करती हैं। क्षणमात्र चमकने वाली बिजली का गिरना लोग नहीं चाहते अपितु मेघ से जल की वर्षा चाहते हैं ॥21॥
लोगों में निन्दा की कोई व्यक्ति कैसे उपेक्षा कर सकता है? इस पुणे में (पुण्य में) पाप को कोई सहन नहीं करेगा। विषैली औषधि लेना भी पड़े तो भी निरन्तर उसे लेते रहना हानिकारक होता है। मस्तानी एक विषकन्या ही है। (मस्तानी के चंगुल में मत फँसिए भाईसाहब)॥122॥
यदि उत्तरीय वस्त्र (अंगवस्त्र) पर दाग पड़ गये, गले की माला यदि गला काटने लगे, सुरा (मद्य) भी मनुष्य को यदि असुर बना दे तो उन विषयों को छोड़ना होगा। उसी प्रकार मस्तानी हमारे लिए सुख देने वाली न होगी, क्योंकि वह पराई स्त्री है। (उससे दूर होने में ही भलाई है)॥123॥
राज्य में अधिकार प्राप्त होने पर बुद्धि विवेकशून्य हो जाती है और वही अपने पक्ष के लिए घातक सिद्ध होती है। युद्ध में पागल हाथी भी बिना सोचे समझे अपने ही सैन्य को कुचल देता है। (आपको विवेक रखना चाहिए)॥124॥
नागिन की फणा पर दिखाई देने वाला मणि सुन्दर तो होता है। किन्तु क्या उस नागिन को अपने शयन घर में पालना उचित होगा? पर्वत के शिखर से कोई घाटी सुन्दर दिखाई देती है, किन्तु पहाड़ की चोटी से उस घाटी में कूद पड़ना अच्छी बात है? (अर्थात् सुन्दर है किन्तु मस्तानी को घर में रखना उचित नहीं है)॥125॥
भाभी जी के सौन्दर्य की सर्वत्र प्रशंसा है। किन्तु उन्हें घर में रखना उचित नहीं है। जो छुरी सोने की हो तो भी क्या उसे छाती में घुसाना उचित होता है? कदापि नहीं। (मराठी में एक कहावत है- सोन्याची झाली सुरी, म्हणून काय घालावी उरी?)॥126॥
चिमाजी के वचन सुनते हुए बीच में राव ने उसे कहा- देखो, मस्तानी मेरी भाग्य की रेखा है। जो क्षुद्र लोग होंगे वे भले ही मेरी निन्दा करें। जो दूसरों की निन्दा करते हैं उनकी बातों पर किसी का विश्वास नहीं होता है॥127॥
चिमाजी के कथन में मस्तानी के लिए उसने जो निन्दा वचन कहे थे, उससे बाजीराव व्यथित हुए। कुछ क्षण के लिए वे स्तब्ध हो गए और फिर अपने क्रोध को उन्होंने नियन्त्रित किया॥128॥
बाजीराव ने उस कटुभाषी भाई से कहा- देखो, मस्तानी तुम्हारी भाभी है, उसका आदर तुम्हें करना चाहिये। (व्यर्थ के अपवाद में मत पड़ना), वह मेरी विवाहिता पत्नी है। सत्य तो सत्य ही होता है। किसी बुढ़िया ने अपने मुर्गे को सूर्योदय न हो इसलिए टोकनी से ढांक दिया, फिर भी सूर्योदय प्रातः समय पर हो गया॥129॥
ऐसी कोई नागिन भी है जिसकी फणा पर मणि किसी ने देखा हो? हमें तो ज्ञात है वह कौस्तुभ नाम का दिव्य मणि जो भगवान् श्रीकृष्ण ने धारण किया था। और घाटी में गिरने की बात करते हो? उस घाटी में जल का उद्गम होता है और वहाँ से नदी निकलती है जो लोकमाता है, घाटी उसकी माता है। उसमें लोग स्नान करते हैं। पर्वत से घाटी में छलाँग नहीं लगाते॥130॥ - डॉ. प्रभाकर नारायण कवठेकर (दिव्ययुग - दिसम्बर - 2008)
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