विशेष :

किसान की परीक्षा

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kisan ki parikshaबहुत पुरानी बात है। कान्यकुब्ज में एक राजा राज्य करता था। एक बार उसे अपने खजाने की रक्षा के लिये कोषाध्यक्ष की जरूरत पड़ी। राजा चाहता था कि कोई ईमानदार और निर्लोभी व्यक्ति ही इस पद पर रखा जाये। पर ऐसे व्यक्ति को ढूंढना सरल नहीं था। अनेक व्यक्ति राजा द्वारा ली गयी परीक्षा में असफल हो चुके थे।

राजभवन से आधा मील दूर एक गरीब किसान रहता था। टूटी-फूटी एक उसकी झोंपड़ी थी। वर्षा ऋतु में जब उससे पानी टपकता था, तो वहाँ बैठना भी दूभर हो जाता था। किसान और उसका परिवार दिन में बस एक बार रूखी-सूखी रोटी खाता था। उसका सारा परिवार फटे-पुराने कपड़े पहनता था।
एक दिन किसान सुबह-सुबह अपने खेत पर जा रहा था। सहसा उसकी निगाह झोंपड़ी के द्वार पर पड़ी। उसके पास मिट्टी का एक सुन्दर सा घड़ा रखा था। उसका मुँह कपड़े से ढका था। किसान को बड़ी उत्सुकता हुई कि यह क्या है? उसने घड़े को खोलकर देखा। कपड़ा हटाते ही उसकी आँखें चौंधिया गयीं। घड़ा तो स्वर्ण मुहरों से खचाखच भरा था।
किसान उसे लेकर तुरन्त घर में घुस गया। उसने वह घड़ा पत्नी को दिखाया। उसके चारों बच्चे भी वहाँ इकट्ठे हो गये थे। बच्चे सोच रहे थे कि अब तो हमारी सारी गरीबी दूर हो जायेगी। हम भी अच्छे कपड़े पहनेंगे, अच्छा खायेंगे। बड़ा बेटा कहने लगा- “पिताजी! इतने ढेर सारे धन से तो अब हमारे सभी के सारे दुःख दूर हो जायेंगे।’’
किसान कहने लगा- “पुत्र! इस धन पर हमारा क्या अधिकार है? इसे तो मैं अभी जाकर राजा के खजाने में जमा ही करा दूंगा। ध्यान रखो! मुफ्त का धन कभी सुख नहीं देता। वह अपने साथ रोग, दुःख और पतन लेकर आता है। ईमानदारी और परिश्रम की कमाई ही फलती है।’’
किसान की पत्नी बोली- ’‘यह तो तुमने बड़ी अच्छी ही बात सोची है। चलो हम दोनों अभी चलकर इसे खजाने में जमा कर आते हैं।’’
किसान और उसकी पत्नी दोनों राज-दरबार में पहुँचे। सोने की मुहरों से भरा घड़ा राजा के सामने रखते हुए बोले- ’‘महाराज! यह हमें अपनी झोंपड़ी के द्वार पर पड़ा हुआ मिला है।’’
राजा ने देखा कि एक कृषक अपनी पत्नी के साथ उनके सामने खड़ा यह कह रहा है। राजा ने बड़े गौर से उन्हें देखा। दोनों के शरीर पर पैबन्द लगे मटमैले कपड़े थे। गरीबी उनकी वेषभूषा से साफ झलक रही थी।
राजा बोला- ’‘क्या तुम्हें धन की जरूरत नहीं?’’
“पर हम ईमानदारी और परिश्रम से धन कमायेंगे। इस धन को मैं कैसे ले लूँ? यह न जाने किसका है? दूसरे के धन पर मेरा क्या अधिकार है? इसलिये मैं इसे राज्य के खजाने में जमा करने आया हूँ।’’ किसान यह कह रहा था।
राजा कुछ सोने की मुहरें किसान की पत्नी को देता हुआ बोला- ’‘मैं तुम दोनों की इस ईमानदारी से बहुत खुश हूँ। लो यह कुछ ईनाम ले लो।’’
’‘राजन्! यह तो हमारा कर्त्तव्य है।’’ किसान की पत्नी ने कहा और मुहरें लेने से साफ इन्कार कर दिया। किसान भी सिर हिला-हिलाकर ‘नहीं-नहीं’ कह रहा था।
अब राजा ने न रहा गया। वह अपने सिंहासन से उतर पड़ा। किसान को गले लगाता हुआ बोला- “मुझे तुम्हारे जैसे ईमानदार कोषाध्यक्ष की ही बहुत जरूरत है। आज से तुम इस राज्य के खजाने की देखभाल करो।’’
किसान और उसकी पत्नी ने यह कभी स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि कभी वे इतना बड़ा पद प्राप्त करेंगे। दोनों के मुख प्रसन्नता से चमकने लगे।
यह तो उन्हें बहुत बाद में पता लगा कि उनकी परीक्षा के लिये वह घड़ा राजा ने ही रखवाया था। अन्य व्यक्तियों ने तो अपने द्वार पर घड़ा पाकर उसमें से मुहरें निकालकर उन्हें अपने-अपने घरों में छुपा लिया था। राजा ने उन सबको चोरी के आरोप में कड़ी सजा दी थी। घड़े को जमा कराने वाला एकमात्र व्यक्ति किसान ही था। - प्रस्तुतिः कु. भावना

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