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ऐश्‍वर्याभिषेक और विवेक

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यहाँ पर ऐश्‍वर्याभिषेक शब्द का प्रयोग दो शब्दों ऐश्‍वर्य एवं अभिषेक की सन्धि के रूप में किया गया है । पिछले दिनों अपने राष्ट्र में सिने जगत की महानायिका एवं नायक विश्‍वसुन्दरी ऐश्‍वर्या एवं अभिनय सम्राट अमिताभ- पुत्र अभिषेक के विवाह रूपी सन्धि की विस्तृत चर्चा रही । ज्योतिषियों ने ऐश्‍वर्य के साथ एक ऐसा विशेषण लगा दिया, जिससे इस वैवाहिक सन्धि में अवरोध उत्पन्न हो गया । उन्होंने ऐश्‍वर्य को मंगली बता दिया। पर विचार कीजिये कि ऐश्‍वर्य यदि वास्तव में ऐश्‍वर्य है, तो उसके साथ सब मंगल ही मंगल होना चाहिये । जहाँ मंगल है, वहाँ अमंगल कैसा? हिन्दी शब्दकोष में ऐश्‍वर्य शब्द के इतने अर्थ दिये हैं, देखिये ! ईश्‍वरता, आधिपत्य, धन-सम्पत्ति, वैभव, सर्वशक्तिमत्ता, प्रेम एवं ईश्‍वरीय-प्रेम आदि । इनमें तो कहीं अमंगल का स्पर्श तक नहीं है । पर संसार में विरोधाभास की कमी नहीं है । जैसे पास नहीं कौड़ी नाम होता करोड़ी, होते बड़े गोदामी नाम होता छदामी, आँख के अन्धे नाम नयनसुख, वैसे ही भरपूर ऐश्‍वर्य के मंगल को कह दिया अमंगल । पौराणिक जगत ने इस अमंगल निवारण के लिये कर्मकाण्ड की झड़ी लगा दी, जिससे दान-पुण्य-पूजा-दक्षिणा के नाम पर ऐश्‍वर्य का अमंगल-अंश छंट गया और इन पुजारियों से आकर मिल गया तथा इनके लिए मंगलमय हो गया।

ऐसे किसी अमंगल-निवारण के लिए क्या कोई एक कर्मकाण्ड सक्षम नहीं है ? पुष्कर के ब्रह्मा-मन्दिर में आराधना, काशी में, विध्याचल में, श्मशान में, अजमेर की दरगाह में ही क्या, जितने कर्मकाण्ड हो रहे हैं, उनकी सूची बनाएं तो यह लेख उसी से भर जायेगा और पाठक भी पढते-पढते ऊ ब जायेगे । दिन प्रतिदिन दूरदर्शन पर यह दृश्य देखने को मिल ही जाते हैं । इस अन्धविश्‍वास के परिमार्जन के लिए जो स्वर भारत में मुखरित होने चाहिएं थे, वे अमेरिका में हिन्दू सुधारवादी संस्था ने उच्चारित किये । वहाँ फलित ज्योतिष आधारित इन कर्मकाण्डों पर असन्तोष एवं चिन्ता प्रकट की गयी । अमेरिका स्थित नव्यशास्त्र के अध्यक्ष जयश्री गोपाल ने कहा कि हिन्दू समाज को विवाह के लिए कुण्डलियाँ मिलाने व रूढिवादी क्रियाकलाप का सहारा लेने की सोच छोड़ देनी चाहिए । उन्होंने गहन आशंका प्रकट की कि इस ऐश्‍वर्य-अभिषेक के प्रकरण को सामने रखकर लोग महिलाओं से होने वाले दुर्व्यवहार को सही ठहराने लगेंगे तथा मंगली लड़कियों के विवाह में बाधायें और बढ जाएंगी।

भगं धियं वाजयन्त:पुरन्धि नराशंसो ग्नास्पतिर्नो अव्या:।
आये वामस्य संगथे रयीणां प्रिया देवस्य सवितु: स्याम  (ऋग्वेद 2.38.10)

प्रस्तुत मन्त्राशय के अनुसार जो मनुष्यों द्वारा प्रशंसित स्वपालना में समर्थ, वाणियों या सद्वचनों पर दृढ, जगत-कर्त्तव्यों का धारक, जीवन-संग्रामों में शोभन विजय प्रदाता, रचनात्मक प्रेरणा प्रसूत और परमेश्‍वर के प्रति प्रीति बढाने वाला हो, वही सच्चा ऐश्‍वर्य है । इस मन्त्र का भावार्थ जो महर्षि दयानन्द सरस्वती ने हमें दिया है, उसे पढकर किसी को आड़म्बर पूर्ण पाखण्डग्रस्त कर्मकाण्ड में भटकने की आवश्यकता नहीं रहेगी । देखिये, हे मनुष्यो ! सबकी रक्षा और धारण करने वाले प्रशंसित सबके स्वामी परमेश्‍वर की उपासना कर उसकी आज्ञा के आचरण से उसके प्यारे तुम होओ । सार यह कि परमात्मा के प्रति प्यार और उसकी आज्ञानुसार जीवन का संचालन ही समग्र ऐश्‍वर्य का उत्स है । ईश्‍वर की आज्ञा वही है जो उसने वेद, धर्मग्रन्थ एवं सच्चे सन्त उपदेशकों-गुरुओं की वाणी के रूप में हमारे सामने प्रत्यक्ष कर दी है । स्वयं वेद भगवान ने यही कहा है:-
भगस्या स्वसा वरुणस्य जामिरुष: सुनृते प्रथमा जरस्व।
पश्‍चा स दध्या यो अघस्य धाता जयेम तं दक्षिणया रथेन।। (ऋग्वेद 1.123.5)

हे (सु+ ऊ न् + ऋते =सुनृते) उषे ! तू दु:खों का परिहरण करने वाली तथा ठीक समय पर आने वाली (भगस्य स्वसा) ऐश्‍वर्य की बहन है। (सु +अस् = स्वसा =बहिन) ऐश्‍वर्य को उत्तम स्थिति में रखने वाली तथा (वरुणस्य जामि:) श्रेष्ठताओं को जन्म देने वाली हैं । सब देव तेरी ही प्रभात-प्रभा में श्रेष्ठताओं को सृजित करते है। तेरी हमारे द्वारा (प्रथमा जरस्व) सबसे पहले स्तुति की जाये । सार यह कि हम उषा के महत्त्व को सामने रखते हुए ऐश्‍वर्य व श्रेष्ठता को प्राप्त करें । उषा-वेला की पवित्रता एवं प्रेरणाशीलता सर्वविदित ही नहीं सर्व अनुभूत है । ऐसा ही हम अपनी बहिन से प्यार-प्रेरणा एवं पवित्रता का सम्बन्ध रखते हैं । राम ने बाली से यही तो कहा था- अनुज वधु भगनी सुतनारी । सुन सठ यह कन्यासम चारी ॥ कूल-गोत्र से दूर की कोई दुहिता या कन्या किसी वर की वरणी या वधू बनकर आती है, तो भी वह उषा के प्यार-प्रेरणा एवं पवित्रताओं को साथ लेकर आती है । पत्नी देवता वाला वेद मन्त्र- चन्द्रे ज्योतेऽदिते सरस्वती महि विश्रुति (यजु.8.43) अर्द्वांगिनी को चन्द्रशीतल स्वभावयुक्त, श्रेष्ठशील से ज्योतित, आत्मिक दृढतापूर्ण, प्रशंसित विज्ञानमयी मेधा व सरसवाणी वक्त्री, पति को महानता की ऊँ चाई पर पहुँचाने के लिये धर्म की अच्छी अच्छी बातें बताने वाली के रूप में प्रतिष्ठित करता है । आश्‍चर्य तब होता है, जब किसी युवती के इंटरनेट पर अश्‍लील दृश्यों की भरमार (दैनिक जागरण 12.02.07) में तो कोई अमंगल दिखाई नहीं देता है, किन्तु ज्योतिषी के पत्रा में अंकित मगंल को भी अमंगल मानकर इससे बचाव के उपायों की भरमार लगा दी जाती है

यहीं पर आवश्यकता होती है विवेक जागरण की । शुभ-अशुभ का निर्णय करके अशुभ को त्यागने व शुभ को अपनाने वाले बुद्धि के स्तर को ही विवेक कहते हैं। बुद्धि का नितान्त निजी हित में प्रयोग चातुर्य एवं व्यापक हित में प्रयोग विवेक है । महान से महान व्यक्ति अथवा साधारण से अति साधारण व्यक्ति इस विवेक के बल पर ऊंचाई की गौरव-गरिमा को प्राप्त कर सकता है। यही होता है उसका अभिषेक । विधिपूर्वक जल-सिंचन अथवा मन्त्रोच्चारण पूर्वक जल के छीटों के मध्य किसी राजकुमार का राजतिलक किया जाये, तो हुआ यह -राज्याभिषेक । इसी विधि से हमारे मित्र पुरुषार्थी जी ने अपने पद से सेवानिवृत होने पर चार दिन का एक बृहत समारोह किया जिसका नाम रक्खा गया, पुत्र के लिए गृह दायित्वाभिषेक महोत्सव। इसके अन्तर्गत वेदपारायण यज्ञ, वेदकथा, गुरुकुल, कन्या गुरुकुल के आचार्य-आचार्याओं व ब्रह्मचारी-ब्रह्मचारिणियों के कार्यक्रम रक्खे। हितैषियों को प्रीतिभोज तथा मातृछाया के अनाथ बच्चों को भोजन कराया। इस प्रकार उन्होंने शासन से मिलने वाले एकमुष्ठ धन को स्वहित के साथ-साथ व्यापक समाज हित में प्रयोग करके ऐश्‍वर्य का स्वरूप प्रदान किया। यह उदाहरण लेखक ने यहाँ पर प्रस्तुत करके अपने लेख के ऐश्‍वर्य, अभिषेक एवं विवेक समन्वित शीर्षक को स्पष्ट किया है, साथ ही क्षमायाचना सहित यह प्रार्थना भी है कि शीर्षक एवं कथ्य को व्यक्ति विशेष से जोड़कर न देखा जाये । इससे बस इतना ही समझा जाये कि जब किसी पर धन ऐश्‍वर्य की वृद्धि या वर्षा हो, तो वह उसे विवेक से ही अपनाये और व्यय करे।

ऐश्‍वर्य का स्वागत ऐसे होता है, जैसे युवती मानसी प्रसाद ने करके दिखाया । आई.आई. एम बंगलूर की स्नातिका इस युवती ने यू.एस.इन्वेस्टमेण्ट बैंक के एक करोड़ के प्रस्ताव की अपेक्षा शास्त्रीय संगीत से अपने भविष्य को उज्ज्वल करना उचित माना । वह अमेरिका जाने के बजाय बंगलूर में ही नौकरी करते हुए कर्नाटक शास्त्रीय संगीत व भरतनाट्यम् को बढावा देने की इच्छुक है । उनके मीरा माधुरी आदि दस एलबम आ चुके हैं और वे सिंगापुर-अमेरिका व यूरोप में अपनी संगीत कला का प्रदर्शन कर चुकी हैं तथा आईआईएम के स्तर का संगीत संस्थान खोलकर कर्नाटक संगीत की जड़ों को फिर से जमाने के लिए संकल्प बद्ध हैं । (दैनिक जागरण 23.2.07) आईआईएम अहमदाबाद के वरिष्ठ प्रोफेसर डॉ. अनिल के गुप्ता के दर्शनों का लेखक को अनेक बार सौभाग्य मिला । उनकी अतिशय सरल सामान्य वेशभूषा में ऐसे महान व्यक्त्वि का प्रभास होता है, जो आधुनिक विज्ञान के साथ-साथ सनातन वैदिक संस्कृति के व्यावहारिक पक्ष को उजागर करने के लिए व्यग्र दिखाई देता है । इनका पैतृक ग्राम गंगागढ (बुलन्दशहर) अलीगढ से अधिक दूर नहीं है, जहाँ विवेकपूर्वक ऐश्‍वर्य के अभिषेक का प्रत्यक्ष दृश्य आपको दूरवर्ती ग्रामीण क्षेत्र में एक समृद्ध माध्यमिक विद्यालय के रूप में सुस्पष्ट दिखाई देता हैं । उच्च पद से सेवानिवृत प्रोफेसर साहब के पिता डा. जी.पी. गुप्ता गांव को छोड़कर दिल्ली में बस गये, किन्तु जन्मभूमि की सेवा के लिये फिर से वहाँ गये और स्वयं तथा समृद्धजनों से दान लेकर लाखों-करोड़ों रुपयों का वास्तव में आदर्श विद्यालय स्थापित करके उन्होंने धन को ऐश्‍वर्य का स्वरूप प्रदान कर दिया । भारत में उनके नाम का, ग्राम का और विद्या के साम-विश्राम का यशगान छा गया।

इसके विपरीत जननी जन्मभूमिश्‍च स्वर्गादपि गरीयसी का प्रेरक वाक्य सुनकर अति निर्धन से निर्यातक धनी बने एक सज्जन बहुत वर्षों बाद अपने गांव लौटे और वहाँ एक करोड़ की लागत से एक मन्दिर बनवा दिया । मन्दिर प्रतिमाओं की तथाकथित प्राण प्रतिष्ठा करने वाले सद्विचारशील पं. कृष्णानन्द ने बताया कि इस लघु ग्राम के सभी निवासी पहले भी मजदूर थे, अब भी मजदूर हैं जो दिनभर मजदूरी करके घर लौटते हैं । परिवारों का गुजारा अभाव में ही होता है । क्योंकि वे बेभाव मदिरापान करके रात्रि में परस्पर लड़-झगड़कर सो जाते हैं और प्रात: को फिर मजदूरी के लिए निकल जाते हैं। बहुमूल्य मन्दिर पर कोई पुजारी इसलिये नहीं टिकता है, क्योंकि दुर्व्यसनी ग्रामवासी उसे मारपीटकर भगा देते हैं । मन्दिर पर करोड़ रुपयों की अपव्यय की गयी बड़ी राशि माटी बनकर रह गयी, वह ऐश्‍वर्य नहीं बन पायी । यदि वहाँ बच्चों के लिए आधुनिक सुविधा सम्पन्न पाठशाला बनी होती, तो संस्कारित सन्तानें अपने बड़ों के सुधार में सहायक सिद्ध हो सकती थी । इस वर्ष अलीगढ की शताधिक वर्ष पुरातन भारत प्रसिद्ध प्रर्दशनी के हास्य-व्यंग्य कार्यक्रम में राजकोट (गुजरात) का एक बारह वर्षीय विकलांग बालक देखने को मिला, उसने अपने उपचार काल में चुटकुलों का कैसेट सुना और ज्यों का त्यों स्मरण कर लिया । उसी को रोचक ढंग से सुनाकर वह लोकप्रिय हास्य कलाकार बन गया । उस पर ऐश्‍वर्य की वर्षा होने लगी और उसे मिल गये सेवक-सहायक, जिससे उसके जीवन का प्रगतियान प्रशंसापूर्वक गतिमान हो गया । इसीलिये तो वेद ने कहा है- भग प्रणेतर्भग सत्यराधो भगेमां धियमुदवा ददन्न:। अर्थात सर्व ऐश्‍वर्यवान् परमेश्‍वर के सत्यस्वरूप के नाम-स्मरण-ध्यान-आचरण से व्यक्ति को मिलती है ऐश्‍वर्यमयी विवेक बुद्धि, जिससे वह अपनी बहुआयामी समृद्धि एव रक्षा में समर्थ हो जाता है।

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