ओ3म् इन्द्र श्रेष्ठानि द्रविणाहि धेहि चित्तिं दक्षस्य सुभगत्वमस्मे।
पोषं रयीणामरिष्ंट तनूना स्वाद्माहं वाचः सुदिनत्वह्नाम्॥ (ऋग्वेद 2.21.6)
शब्दार्थ- (इन्द्र) हे एश्वर्यशाली परमात्मन्! (अस्मे) हम लोगों के लिए (श्रेष्ठानि) श्रेष्ठ (द्रविणानि) धन, ऐश्वर्य (धेहि) प्रदान कीजिए। (दक्षस्य) उत्साह का (चित्तिम्) ज्ञान दीजिए। (सुभगत्वम्) उत्तम सौभाग्य दीजिए। (रयीणाम् पोषम्) धनों की पुष्टि दीजिए (तनूनाम्) शरीरों की (अरिष्टिम्) नीरोगिता प्रदान कीजिए (वाचः) वाणी का (स्वाद्मानम्) मिठास दीजिए और (सुदिनत्वम् अह्नाम्) दिनों का सुदिनत्व दीजिए।
भावार्थ- भक्त भगवान् से श्रेष्ठ धन प्रदान करने की प्रार्थना करता है। वह श्रेष्ठ धन कौन सा है जिसे एक भक्त चाहता है!
1. हमारे मनों में उत्साह होना चाहिए। क्योंकि जागृति के अभाव में कोई भी कार्य सम्पन्न नहीं हो सकता।
2. हमारा भाग्य उत्तम होना चाहिए।
3. हमारे पास धन-धान्य और ऐश्वर्य की पुष्टि होनी चाहिए।
4. हमारे शरीर नीरोग, सबल, सुदृढ़ होने चाहिएँ।
5. हमारी वाणी में माधुर्य और मिठास होना चाहिए। हम मीठा और मधुर ही बोलें।
6. हमारे दिन सुदिन बनें। हमारे दिन उत्तम प्रकार से व्यतीत होने चाहिएँ। - स्वामी जगदीश्वरानन्द सरस्वती (दिव्ययुग- अक्टूबर 2012)
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