पिछले कुछ समय से यह बहुत ज्वलंत चर्चा या यूं कहें कि विवाद का विषय भी बना हुआ है कि स्कूली स्तर पर यौन शिक्षा अनिवार्य कर दी जाए। इसके बहुत फायदे गिनाए गए हैं। जैसे यदि यौन शिक्षा द्वारा बच्चों को, किशोरों को सब कुछ समझा दिया जाए तो वे कई दुष्परिणामों से बच जाएंगे। उन्हें समझ में आ जाएगा कि गलत आयु (अपरिपक्वता तथा अविकसित शारीरिकवय संधिकाल) में इन संबधों के कारण अनचाही परिस्थितियों से गुजरना पड़ सकता है। छात्र-छात्राएं यह समझ पाएंगे कि इस उम्र के आवेग को भोगना नहीं है, बल्कि उससे बचना है।
यौन शिक्षा को सीबीएसई पाठ्यक्रम में शामिल करने की जबर्दस्त सिफारिश की गई। इसलिए स्कूली स्तर पर इसे पाठ्यक्रम में शामिल कर लिया गया, पर कुछ राज्यों ने इसे नकार दिया। उन्होंने स्कूली स्तर पर यौन शिक्षा देने की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया। इस पर अब फिर बहस छिड़ी है कि ऐसा करना चाहिए या नहीं?
क्या वाकई यौन शिक्षा को स्कूली पाठयक्रम में शामिल करने से इस उम्र के आवेगों को रोका जा सकता है? या संबंधित अध्यायों को पढने से छात्र-छात्राएं समझ जाएंगे कि इस उम्र में यह संबंध उचित नहीं है, अस्वास्थ्यकार है। विशेषकर लड़कियां अपना बचाव क्या वाकई कर पाएंगी? इस पाठ्यक्रम के प्रबल हिमायतियों का मानना है कि जानकारी के अभाव में भूलें, गलतियां हो जाती हैं। इस मामले में उन्हें जितना ज्ञानवान बनाया जाएगा, उतना ही वे सतर्क और सचेत रहेंगे। क्या सच में ऐसा संभव है?
कल्पना कीजिए, इस पाठयक्रम के होमवर्क की। माँ या पिता बच्चे या किशोरवय लड़के व लड़की को होमवर्क करवा रहे हैं। उसे समझा रहे हैं कि शारीरिक संबंधों की प्रक्रिया क्या होती है? गर्भ कैसे ठहरता है ? प्रसव पीड़ा क्या होती है ? यह भी कल्पना कर लें कि होमवर्क में चित्रांकन भी करना होता है और नोट्स भी लिखना होते हैं । राइट और रांग पर टिक मार्क लगाइए, फिल इन द ब्लैक्स (रिक्त स्थान को भरो) भी करिए ।
क्या इससे बढकर और कोई अपरिपक्व और मूर्खतापूर्ण सोच हो सकता है ? क्या इस पाठ्यक्रम के पाठों को पढने और उन्हें याद करने के बाद किशोरों के मस्तिष्क में उठने वाले आवेगों, उत्तेजनाओं को उन्हें नियंत्रण करना आ जाएगा? यह उन शिक्षाविदों का अधकचरा, सतही ज्ञान है जो शिक्षा के हर नए प्रयोग के लिए पश्चिम का मुंह तकते हैं। अमेरिका में तो शायद स्कूली स्तर पर सेक्स एजुकेशन का बहुत चलन है । तो क्या वहाँ टीनएज सेक्स में कमी आ गई? चौंकाने वाला तथ्य तो यह है कि वहाँ टीनएजर (किशोरवय) की गर्भवती लड़कियों की इतनी अधिक संख्या के बढने से माता-पिता तथा स्कूल प्रशासन बहुत चिंतित है। यह विचार किया जा रहा है कि स्कूल में कुछ समय प्रार्थना, ध्यान का निर्धारण किया जाए । पादरी आएं और नैतिकता की, संबंधों की, शुचिता की बात करें । बाइबल का पाठ हो । माता-पिता से अनुरोध किया जा रहा है कि वे अपने बच्चों को प्रत्येक रविवार चर्च लेकर जाएं । उस पवित्र, आध्यात्मिक वातावरण में एक तो माता-पिता की निकटता प्राप्त होगी, दूसरा उन नैतिक, पावन बातों का गहरा असर होगा । वे अपने बच्चों को सुरक्षित नहीं, बल्कि सेक्स से ही बचाना चाहते हैं ।
यही एक मार्ग है । बहुत पहले पाठयक्रमों में एथिक्स (नैतिक शास्त्र) का एक पीरियड होता था । बहुत अच्छी, संस्कारित, मानव के सबसे विकसित शुचित रूप की बातें पढाई जाती थी । यह जो चारों तरफ विषाक्त, अनियंत्रित, अश्लील, अपरिपक्व सेक्स, यौन अपराधों का माहौल बना है, इसका इलाज यौन शिक्षा में नहीं है । इसका समाधान तो उसी रास्ते से ढूंढना होगा, जिस रास्ते पर सदियों से चलकर मानव सभ्यता ने जीवन के श्रेष्ठतम मूल्यों, आदर्शों और एक दूसरे के प्रति मानवीय संवेदनाओं के संवाद स्थापित किए । परिवार से लेकर जीवन के हर क्षेत्र में लड़के-लड़की का भेद, असमान व्यवहार समाप्त हो। वे एक -दूसरे को अजनबी और विपरीत लिंगी न समझकर परस्पर सम्मान व आदर का व्यवहार करना समझ जाएं । यही नैतिक शिक्षा है। - वीना नागपाल
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