प्राचीन काल में दही को पूर्ण आहार माना गया है जिसमें आहार के सभी घटक प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं। दूध से बना दही स्वस्थ्य के लिए बहुत उपयोगी है। पेट के रोगियों तथा पाचन शक्ति के कमजोर व्यक्तियों के लिए दही विशेष लाभप्रद है। आयुर्वेद में दही को वात, कफ दोष नाशक तथा मूत्रवर्धक कहा गया है। शास्त्रों में दही को दीर्घ यानि आयुवर्धक बताया गया है।
पौष्टिकता की दृष्टि से दूध से दही उत्तम माना गया है। इसमें कैल्शियम, प्रोटीन, विटामिन-बी-१२ तथा फास्फोरस प्रचुर मात्रा में होते हैं। दही के अतिरिक्त छाछ व मट्ठा भी गुणकारी माना गया है। इनमें चिकनाई का अंश कम मात्रा में रहता है और सुपाच्य होने से हजम करने में अमाशय को अधिक श्रम नहीं करना पड़ता है। जिन व्यक्तियों को दूध वायु करता हो, दस्तावर हो, उनको दही लेने के लिए डॉक्टर परामर्श देते हैं। आयुर्वेद ने तक्र या मट्ठा की तुलना अमृत से की है तथा यह बताया कि उपचार के पश्चात् पुनः रोग की उत्पत्ति नहीं होती है।
दूध में थोड़ा-सा दही मिला देने से सारा दूध दही में बदल जाता है। दूध से दही बनाना एक ऐसी रासायनिक क्रिया है जो एक विशेष बैक्टीरिया रो कैसीन प्रोटीन के बीच होती है। दूध में केसीन नाम का प्रोटीन सौंदर्यवर्धन के लिए किया जाता रहा है। सिर धोने से पूर्व बालों में दही की मालिश करने तथा सिर धोने से सिर की रूसी कम होती है तथा बाल साफ-सुन्दर चमकीले व मुलायम रहते हैं।
दस्तों में एक कप दही में दो चम्मच इसबगोल की भूसी मिलाकर लेने से दस्त रुक जाते हैं। जिन व्यक्तियों को बंधा दस्त ना आता हो उनको केले का रायता अति लाभदायक है। अब प्रयोगों से भी सिद्ध हो रहा है कि दिल के मरीजों के लिए दही का प्रयोग उत्तम रहता है। यह रक्त में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा घटाता है।
दही व बेसन में एक चुटकी हल्दी मिलाकर उबटन करने से त्वचा पर निखार आता है। दस्त संग्रहणी अतिसार जैसी आंत की बिमारियों में इसका उपयोग लाभदायक है। इससे आतों में पाये जाने वाले हानिकारक जीवाणु नष्ट हो जाते हैं। यह श्वास, विषम ज्वर व पीनस से भी उपयोगी है। खाना खाने के बाद दही या छाछ का सेवन करने के दो घण्टे बाद पेट हल्का हो जाता है तथा स्वस्थ अनुभव करते हैं। अतः दही स्वस्थ रहने के लिए सहयोगी होकर आयुवर्द्धक है।
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