सब्जियों में प्रोटीन, विटामिन, कार्बोहाइड्रेट्स एवं खनिज लवण प्रचुर मात्रा में होते हैं। इनमें पीलिया, मधुमेह, पाचन तन्त्र के रोगों को दूर करने के औषधीय गुण होते हैं। किन सब्जियों में किस तरह के औषधीय गुण होते हैं, इसी से सम्बन्धित जानकारी यहाँ प्रस्तुत हैं-
आलू- आलू में पौष्टिक तत्व कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, विटामिन बी कॉम्पलेक्स एवं खनिज तत्व (आयरन, कैल्शियम एवं फास्फोरस आदि) प्रचुर मात्रा में होते हैं। आलू की पत्तियों का रस पीने से कफ एवं बलगम मिटता है। आग से जलने पर इसके कन्दों को पीसकर जले हुए स्थान पर लेप करने से काफी आराम मिलता है। कभी-कभी चोट लगने से नील पड़ जाता है। इस पर कच्चा आलू पीसकर लगाने से फायदा होता है। सर्दी में हवा के कारण हाथों की त्वचा पर झुर्रियाँ पड़ जाती है। इन हाथों पर कच्चे आलू को पीसकर मलने से झुर्रियाँ ठीक हो जाती हैं।
अरबी- अरबी के रस का सेवन करने से उच्च रक्तचाप कम होता है। हृदय रोगी को प्रतिदिन 25 ग्राम अरबी की सब्जी का नियमित सेवन करना चाहिए। अरबी के तने व पत्तियों का रस उबालकर तीन दिन तक घी के साथ मिलाकर लेने से पेट दर्द एवं कब्ज दूर होता है। इसकी जड़ों की राख में शहद मिलाकर लेने से मुँह आना ठीक होता है। जिन व्यक्तियों के पेट में गैस बनती हो, गठिया और खांसी हो उनके लिए अरबी हानिकारक होती है।
टमाटर- टमाटर में विटामिन सी की मात्रा अधिक होती है। इसका उपयोग दमा एवं खांसी के लिए फायदेमन्द होता है। सुबह नाश्ते में एक टमाटर के रस में थोड़ा शहद मिलाकर पीने से चेहरे की रंगत में निखार आता है। कच्चा टमाटर खाने से त्वचा की खुश्की दूर होती है। मधुमेह एवं आँखों के रोग (रतोंधी) में यह बहुत फायदेमन्द होता है। मधुमेह रोग में टमाटर की खटाई शरीर में शर्करा की मात्रा को कम करती है, जिससे मूत्र में शक्कर जाना धीरे-धीरे कम हो जाता है।
प्याज- गर्मियों में इसके उपयोग से लू नहीं लगती। इकसी सब्जी का प्रयोग करने से शरीर की गर्मी दूर हो जाती है। कान में दर्द होने पर इसके रस को हल्का गर्म करके कान में डालने से दर्द में फायदा होता है। इसे कीड़ों के काटने, बिच्छु द्वारा डंक मारने से उत्पन्न जलन को शान्त करने में प्रयोग किया जाता है। प्याज का प्रयोग तम्बाकू के नशे को दूर करने के लिए भी किया जाता है। प्याज का रस तथा सरसों के तेल को बराबर मात्रा में मिलाकर लगाने पर गठिया दर्द एवं सूजन में फायदा होता है। प्याज को सिरका में पकाकर प्रयोग करने पर तिल्ली (प्लीहा) का बढ़ना ठीक होता है। मलेरिया ज्वर में काली मिर्च के साथ खाने पर इसमें आराम मिलता है।
भिण्डी- इसकी हरी फलियों में विटामिन-ए, विटामिन सी एवं खनिज तत्व (आयरन, पोटेशियम, फासफोरस और आयोडीन आदि) भरपूर मात्रा में होते हैं। भिण्डी का उपयोग करने से ज्वर तथा जननांगों में जलन पैदा करने वाले रोग जैसे ल्यूकोरिया, गोनोरिया, डिसूरिया आदि ठीक हो जाते हैं। पेशाब में जलन तथा अन्य मूत्र सम्बन्धी रोगों के उपचार के लिए इसका उपयोग लाभदायक होता है।
करेला- करेले में विटामिन ए, विटामिन सी, विटामिन बी कॉम्पलेक्स तथा खनिज तत्व (कैल्शियम और फासफोरस आदि) प्रचुर मात्रा में होते हैं। मधुमेह रोग में पन्द्रह ग्राम करेले का रस सौ ग्राम पानी में मिलाकर नित्य तीन बार तीन महिने तक पीने से फायदा होता है। करेले की जड़ तथा पत्तियों का प्रयोग कब्ज दूर करने, शरीर को ठण्डा रखने, भूख बढ़ाने तथा पीलिया रोग आदि को ठीक करने के लिए किया जाता है। करेले का साठ ग्राम रस नित्य कुछ दिनों तक सेवन करने से शरीर का दूषित रक्त साफ हो जाता है। पैरों में जलन होने पर करेले के पत्तों की मालिश जलन वाले स्थान पर करने से फायदा होता है।
बैंगन- बैंगन में खनिज तत्व कैल्शियम तथा फासफोरस प्रचुर मात्रा में और विटामिन बी कॉम्पलेक्स न्यून मात्रा में होते हैं। बैंगन के फलों को सूई से छेदकर तिल के तेल में तलकर खाने पर दांतों का दर्द दूर होता है। पेट में गैस बनने पर ताजा लम्बे बैंगनों की सब्जी नियमित खाने से यह बीमारी स्वतः ही दूर हो जाती है। बैंगन का रस निकालकर हथेलियों और पगतलियों पर लगाने से पसीना निकलना बन्द हो जाता है।
गाजर- गाजर में पौष्टिक तत्वों तथा विटामिनों की अधिकता होती है। मधुमेह रोग को छोड़कर गाजर का सेवन सभी रोगों में किया जा सकता है। गाजर के रस का एक गिलास पूर्ण भोजन के बराबर होता है। इसका रस लगातार पीने से शरीर के दूषित और विषैले पदार्थ बाहर निकल जाते हैं। गाजर के उपयोग से पीलिया, पथरी, मूत्र रोग आदि की शिकायत दूर होती है। गाजर में विटामिन ए प्रचुर मात्रा में होता है।
मेथी- हरी पत्ती वाली इस सब्जी से ल्यूकोरिया रोग में लाभ होता है। मेथी के बीजों (दाना मेथी) का उपयोग करने से कब्ज, अरुचि एवं भूख न लगना आदि विकार दूर होते हैं। इसके सेवन से यकृत और प्लीहा की कार्य क्षमता बढ़ती है। मेथी के बीजों को घी में भूनकर व पीसकर छोटे-छोटे लड्डू बनाकर कुछ दिन तक सुबह-शाम खाने से जोड़ों के दर्द में लाभ होता है। दाना मेथी के सेवन से मधुमेह रोग में फायदा होता है। इसके सेवन की मात्रा 25 से 100 ग्राम प्रति खुराक है। जब तक रक्त एवं पेशाब में शक्कर आती रहे, इसका सेवन करते रहना चाहिए। इससे चीनी घटने के साथ-साथ कोलेस्ट्राल भी कम हो जाता है। इसकी सब्जी खाने से भूख बढ़ती है तथा कमर दर्द में लाभ होता है।
पालक- पालक हल्का और सुपाच्य होता है। इसके सेवन से दस्त साफ होता है तथा यह भूख बढ़ाता है। पालक में आयरन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है, जो शरीर में रक्त बढ़ाने में सहायक होता है। इसको विभिन्न प्रकार की दालों एवं सब्जियों के साथ पकाया जाता है। पालक का शाक पेट की विभिन्न बीमारियों में उपयोगी होता हैा। साधारण बुखार में खांसी एवं वायु की बीमारी में, अम्ल पित्त में, आंतों में सूजन और कब्ज की बीमारी में यह विशेष लाभकारी होता है।
जिन व्यक्तियों के आंतों में घाव या पतले दस्त की शिकायत हो, उन्हें इसका सेवन नहीं करना चाहिए। शरीर की सूजन और शरीर में दर्द की स्थिति में यह हानिकारक हो सकता है।
लौकी- यह हल्की एवं सुपाच्य होती है। इसके सेवन से आंतों को बल मिलता हैतथा कब्ज की शिकायत दूर होती है। जिन महिलाओं को बार-बार गर्भस्राव तथा गर्भपात हो जाता है, उन्हें गर्भ स्थिति में इसका सेवन उपयोगी रहता है। बुखार, खांसी, दस्तों की बीमारी, सांस, हृदय रोग तथा मूत्र संस्थान सम्बन्धी अनेक रोगों में इसका सेवन विशेष लाभकारी होता है। नेत्रों के लिए भी यह हितकर होती है।
मूली- मूली के पत्तों में प्रोटीन भरपूर मात्रा में पाया जाता है तथा इसके बीजों में विटामिन सी अधिक होता हौ। मूली खाने या इसका रस निकालकर पीने से मधुमेह रोग में आराम मिलता है। एक कप मूली के रस में नमक और मिर्च डालकर पीने से पेट दर्द ठीक होता है। इसके पत्तों की सब्जी खाने से हर प्रकार के बवासीर में फायदा होता है।
बथुआ- यह हरी पत्तियों का शाक है, जो प्रायः सभी जगह पाया जाता है। इसके सेवन से भोजन में रुचि पैदा होती है। यह पेट के कीड़ों को नष्ट करता है और कब्ज की शिकायत को दूर करके दस्त साफ लाता है। इसका शाक बलवर्धक और शुक्र की वृद्धि करता है। इसके सेवन से तिल्ली की बीमारी ठीक होती है। शरीर के किसी भाग से खून आने की शिकायत तथा बवासीर को नष्ट करने में यह सहायक होता है।
अतः सब्जियों का सेवन कच्चा-पक्का या सलाद के रूप में प्रतिदिन आवश्यक मात्रा में करना चाहिए। - सुनील कुमार खण्डेलवाल
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