विशेष :

राष्ट्रपुरुष महर्षि दयानन्द

User Rating: 0 / 5

Star InactiveStar InactiveStar InactiveStar InactiveStar Inactive
 

Swami Dayanand Saraswati 1भारत में अनेक महान आत्माओं ने अपने व्यक्तित्व और कृतित्व से देश, जाति, धर्म एवं संस्कृति के निर्माण तथा उत्थान हेतु उल्लेखनीय कार्य किये हैं। इस शृंखला में महर्षि दयानन्द का नाम अत्यन्त श्रद्धा व सम्मान से लिया जाता है। उनका सम्पूर्ण जीवन में मानवता के लिए ऐसे समय समर्पित रहा जबकि चारों ओर अज्ञान, अविद्या, अन्धकार, अन्याय व पाखण्ड आदि फैले हुए थे।

महर्षि दयानन्द का जन्म 1824 ई. की फाल्गुन कृष्णा दशमी को गुजरात में मोरवी के अन्तर्गत टंकारा ग्राम में हुआ था। पिता शैव थे। वह सदा इन्हें अपने साथ शिवमन्दिरों व शिवोत्सवों में ले जाया करते थे। इनका बचपन का नाम मूलशंकर था। अपने पिताश्री की इच्छानुसार मूलशंकर ने मात्र चौदह वर्ष की आयु में शिवरात्रि का व्रत रखा। मन्दिर में घटी चूहे की अप्रत्याशित घटना से इनके हृदय में सच्चे शिव को जानने की तीव्र भावना जाग्रत हो उठी। अकस्मात् बहिन और चाचा की मृत्यु से इन्हें बहुत आघात पहुंचा। तत्पश्‍चात् ज्ञानप्राप्ति हेतु वैराग्य धारण किया और मृत्यु पर विजय की कामना से मूलशंकर घर-परिवार त्यागकर साधु-सन्तों व महन्तों के पास बीहड़ जंगलों, गुफाओं व पर्वतादि स्थानों पर घूमने लगे। तीव्र ज्ञान व वैराग्य की परिणति संन्यास से हुई। अब वह मूलशंकर से स्वामी दयानन्द सरस्वती कहलाने लगे। सच्चा ज्ञान प्राप्त करने हेतु मथुरा में व्याकरण सूर्य गुरु विरजानन्द का द्वार भी खटखटाया। अन्दर से आवाज आई, कौन? दयानन्द ने उत्तर में कहा- “यही जानने के लिए आया हूँ कि मैं कौन हूँ?’’

गुरु को सच्चा शिष्य मिल गया। वेद-शास्त्र की कुञ्जी प्रदान कर दी । गुरु दक्षिणा के समय विरजानन्द ने कहा- “दयानन्द, संसार में फैली जड़ता, अज्ञानता और रुढ़िवादिता को हटाओ। वेदों के पुनरुद्धार हेतु अपने जीवन को लगा दो।’’ दयानन्द गुरु विरजानन्द को वचन देकर कर्मक्षेत्र में निकल पड़े। सर्वप्रथम दयानन्द ने लेखन, प्रवचन व शास्त्रार्थ के द्वारा प्रचार कार्य आरम्भ किया। जब उन्होंने सत्य व वेदानुकूल बातों का प्रचार किया तो झूठे स्वामी, सन्त, ढोंगी और अन्धविश्‍वासी लोग उनसे चिढ़ने लगे। अनेक स्थानों पर विरोध हुआ। ईंटों, पत्थरों व गालियों के अपमान को उन्होंने झेला। अनेकों बार विषपान किया। अपने व पराये सभी विरोधी हो गए। किन्तु वह ईश्‍वर विश्‍वासी और मानवता का मसीहा अपने निर्दिष्ट पथ से किञ्चित भी विचलित नहीं हुआ। उन्हें सदा देश, धर्म, संस्कृति, सभ्यता, वेदज्ञान आदि की दुर्दशा विकल किये रहती थी। विपरीत परिस्थितियों में भी वह वैदिक पुरोधा निर्भीकता से सतत आगे ही बढ़ता चला गया। उनकी वाणी में ऐसा जादू व व्यक्तित्व में ऐसा आकर्षण था कि जो भी उनके सम्पर्क में आया, वह पूर्णतया प्रभावित होकर ही लौटा। वह जिधर भी निकल जाते थे उधर का ही पाप, ढोंग व अधर्म मिटता चला जाता था। राजाओं, नवाबों, पादरियों व अन्ध विश्‍वासी पौराणिकों ने उन्हें धन, सम्पत्ति, पद, जागीर और अवतार तक घोषित किये जाने से सम्बन्धित नाना प्रकार के प्रलोभन दिये, जान से मार डालने की धमकियाँ दीं, विष दिया गया, किन्तु वह सत्य शोधक, सत्य वक्ता और सत्य के प्रचारक सत्य पक्ष से कभी नहीं डिगे। ‘सत्यमेव जयते’ ही उनका आदर्श वाक्य था।

महर्षि दयानन्द ने वेदों को ईश्‍वरीय ज्ञान मानते हुये वेदों का पुनरुद्धार किया और सन्देश दिया कि वेदों की ओर लौटो। वेदों में ईश्‍वर एवं धर्म का सीधा-सच्चा-सरल और व्यवहारिक मार्ग बताया गया है। धर्म का सम्बन्ध कर्म के साथ है। धर्म जोड़ता है, तोड़ता नहीं। महर्षि दयानन्द ने वेद के अनुसार ईश्‍वर को सर्वव्यापक व सर्वशक्तिमान मानते हुये निराकार उपासना पर बल दिया। उन्होंने ईश्‍वर, जीव और प्रकृति को ही सत्य की संज्ञा दी। महर्षि का सन्देश था- कृण्वन्तो विश्‍वमार्यम्। सबको आर्य (श्रेष्ठ) बनाओ। ’वसुधैव कुटुम्बकम्’ यानि समस्त पृथ्वी ही एक परिवार है। ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ सब सुखी और निरोग हों। - डॉ. सत्यदेव आजाद

Saint Prince Maharshi Dayanand | Messiah of Humanity | Evangelists of Truth | Divine Knowledge | Krishnanto Vishwaramaryam | Vasudhaiva Kutumbakam | Hindutva | Divyayug | Divya Yug |


स्वागत योग्य है नागरिकता संशोधन अधिनियम
Support for CAA & NRC

राष्ट्र कभी धर्म निरपेक्ष नहीं हो सकता - 2

मजहब ही सिखाता है आपस में बैर करना

बलात्कारी को जिन्दा जला दो - धर्मशास्त्रों का विधान