जीवन शैली दोष से उत्पन्न यकृत यानि लीवर से संबंधित समस्याओं कि चर्चा करे, यह जानना दिलचस्प होगा कि एक नए शोध से यह तथ्य सामने आया है कि दिनचर्या में अचनाक परिवर्तन आने और उसके गतिहीन हो जाने से लीवर पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। ऐसे मौके पर विशेष रूप से मोटापे से ग्रस्त कम से कम ७५ प्रतिशत लोग लीवर संबंधी नाना अल्कोहलिक फैटी डिजीज नामक बीमारी से प्रभावित होते हैं। शोधकर्ता के अनुसार उन्होंने पाया कि रोजाना व्यायाम करना बंद कर देने पर नाटकीय रूप से लीवर संबंधी बिमारियों के लक्षण दिखाई देने लगते हैं। वैसे यदि आपको लीवर से संबंधित समस्या हो गई है तो ध्यान दें - पालक में खनिज लवण जैसे कैल्शियम, लौह तथा विटामिन ए, बी, सी आदि प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। इसी गुण के कारण इसे लाइफ प्रोटेक्टिंव कहा जाता हैं। कच्चा पालक के पुरे पाचन-तंत्र को ठीक करता है। आंतो को क्रियाशील बनाता है लेकिन पालक को पनीर जैसे दुग्ध उत्पाद के साथ नहीं बनाना चाहिए।
फैटी लीवर के रूप में प्रभावी रूप से वजन पर नियंत्रण कर सकते हैं और कमर परिधि को कम करने, जिगर में वसा जमा जल्दी व्यस्त हो सकता है। इसके लिए आवश्यक है कि कुल कैलोरी नियंत्रण जैसे संतृप्त वसा और मोटापे को नियंत्रित करना। इसके लिए आहार को समायोजित, कम चिकना, तला हुआ भोजन और पशु मांस से परहेज करना चाहिए। भोजन में अंतराल, रात्रि भोजन जल्दी, नमकीन और मिठाई से बचना होगा। अधिक पानी पीना, ककड़ी, टमाटर, गाजर और फलों के बजाय अन्य सब्जियों का उपयोग कर सकते है। आवंला लीवर को मजबूत बनाता तथा शरीर में पेनकिलर, एंटीबायोटिक्स और अधिक एल्कोहल के इस्तेमाल से लीवर में बन जाने वाले विषैले पदार्थों को समाप्त करता है।
Motivational Speech on Vedas in Hindi by Dr. Sanjay Dev
देव पूजन की सही विधि | Ved Katha Pravachan - 68 | Explanation of Vedas
लीवर में राहत के लिए सबसे अच्छा तरीका तेज चलने कदम के लिए, प्रति दिन कम से कम ३ किमी पैदल चलना चाहिए। विश्व में लीवर रोगियों की संख्या बढ़ती जा रही है। इस रोग में लीवर (यकृत) की नालियों के मार्ग में लचकदार सौत्रिक तंतु इस कदर पैदा हो जाता है कि यकृत की जो कोशिकायें पाचक रस उत्पन्न कर रही थी नष्ट हो जाती है या दब जाती है फलस्वरूप मुख्य कोशिकाओं व् शिराओं में रक्त के आने जाने में बाधा पड़ जाती है। प्रकृति विरुद्ध आहार सेवन करने से यकृत (जिगर) पर हानिकारक प्रभाव पड़ने से यकृत वृद्धि होती है। यकृत वृद्धि से रोगी को बहुत हानि होती है। शरीर में रक्त का निर्माण नहीं होता है और रोगी प्रतिदिन निर्बल हो जाता है। यकॄति वृद्धि रोगी के लिए प्राणघातक हो सकती है।
उत्पत्ति :- अनियमित समय पर भोजन करने, भोजन में गरिष्ट व उष्ण मिर्च- मसाले व अम्ल रस से बने खाद्य पदार्थों का अधिक सेवन करने से पाचन क्रिया विकृत होने पर विकृति होती है। हर समय कुछ-न-कुछ खाते रहने की बुरी आदत बहुत हानि पहुंचाती है। अधिक शराब पीने वालो का यकृत भी अधिक विकृति होता है। दूषित जल पीने व दूषित भोजन करने से अधिक यकृत विकृति होती है। घी, तेल आदि से बने खाद्य पदार्थों क्रिया को विकृति करके यकृत में शोध की उत्पत्ति में लाभ होता है। इसके अतिरिक्त अधिक उष्ण व अम्लीय खाद्य पदार्थों के सेवन से यकृत में शोध की उत्पत्ति होती है। कुछ संक्रामक रोगों के कारण यकृत वृद्धि होती है। मलेरिया में रोग में रक्त दूषित होने तथा आंत्रिक ज्वर में भी लीवर (यकृत) वृद्धि हो जाती है।
चिकित्सा में विलम्ब या बदपरहेजी से घातक हो सकती है। यकृत वृद्धि में रोगी हल्के ज्वर से पीड़ित रहता है। कभी कोष्ठबद्धता (कब्ज) होती है तो कभी अतिसार। वमन व पीलिया रोग भी आता है। रोगी शारीरिक रूप से बहुत निर्बल हो जाता है। उसकी पहचान शक्ति बहुत क्षीण हो जाती है। कुछ रोगी उदर शूल से अधिक पीड़ित होते हैं।
क्या खाएं :- रोगी को सेब व उसका रस पिला सकते हैं। जमुन के कोमल पत्तों का अर्क ५ ग्राम मात्रा में ४-५ दिन तक सेवन करने से बहुत लाभ होता है। गोमूत्र कपडे द्वारा दो बार छानकर २०-२० ग्राम मात्रा में सुबह-शाम पीने से बहुत लाभ होता है। मूली और मकोय का २०-२० ग्राम रस मिलाकर पीने से लाभ होता है। हरी मकोय का अर्क, गुलाब के फूल २० ग्राम और अमलतास का गूदा २० ग्राम, सभी को एक साथ पीसकर यकृत के ऊपर लेप करने से लाभ होता है।
रोगी को अनार, जामुन, लीची आदि के फल खिलाएं। पपीता खाने से यकृत वृद्धि में बहुत लाभ होता है। नारियल का जल पीने से यकृत वृद्धि में लाभ होता है। सौंठ, धनिया व काला नमक को कूट-पीसकर चूर्ण बना लें। २-२ ग्राम चूर्ण दिन में दो-तीन बार सेवा कराएं। मट्ठे के सेवन से बहुत लाभ होता है, लेकिन उसमे से घी की चिकनाई निकाल लेनी चाहिए। यदि रोगी ६० दिन का फलाहार व रसाहार उपवास करता है तो आशातीत लाभ मिलता है।
परहेज:- यकृत वृद्धि में उष्ण मिर्च-मसालों व अम्लीय रसों से बने खाद्य पदार्थों का सेवन न कराएं। घी, तेल, मक्खन, अंडे, मांस, मछली, का सेवन न करें। गरिष्ठ खाद्य पदार्थ का सेवन न करें। अरबी, कचालू, उड़द की दाल, मिठाई, खोएं का सेवन न करें। चाय, कॉफी और शराब का सेवन न करें। रोगी को बाजार के चटपटे व्यंजन तथा चाऊमीन, बर्गर पास्ता, छोले-भठूरे, गोल-गप्पे, आलू की टिकिया, समोसे आदि से बचना चाहिए।
खास - किस समय क्या खाना है, जिससे लीवर की बीमारी ठीक हो सकती है। खाना आप तभी खाएं जब आपको भूख लगती हो। और खाना केवल भूख से अधिक न खाएं। रात के खाने में सब्जियां, प्रोटीन और स्टार्च वाली चीजों को शामिल करें।
विशेष - नियमित योगाभ्यास से लीवर को सशक्त रखा जा सकता है। सूक्ष्म व्यायाम के अतिरिक्त पवनमुक्तासन विधि इस प्रकार है- पीठ के बल जमीन पर लेट जाइए। दायें पैर को घुटने से मोड़कर इसके घुटने को हाथों से पकड़कर घुटने को सीने के पास लाइए। इसके बाद सिर को जमीन से ऊपर उठाइए। उस स्थिति में आरामदायक समय तक रुककर वापस पूर्व स्थिति में आइए। इसके बाद यही प्रक्रिया बांये पैर और फिर दोनों पैरों से एक साथ कीजिए। यह एक चक्र है। धीरे-धीरे इसकी संख्या बढ़ाए।'
शीतली प्राणायाम भी करना चाहिए। विधि - 'पदमासन, सिद्धासन, सुखासन या कुर्सी पर रीढ़, गला व सिर को सीधा कर बैठ जाइए। दोनों हाथो को घुटनों पर सहजता से रखें। आंखों को ढीली बन्द कर चेहरे को शांत कर लें। अब जीभ को बाहर निकालकर दोनों किनारों से मोड़ लें। इसके बाद मुंह से गहरी तथा धीमी सांस बाहर निकालें। इसकी प्रारम्भ में १२ आवृतियों का अभ्यास करें। धीरे-धीरे संख्या बढ़ाए।
प्राकृतिक उपचार - गर्म ठण्डा सेक अत्यंत प्रभावी उपचार है। ४ मिनट गर्म २ मिनट ठण्डा करीब दिन में पांच से छ बार से करने पर नष्ट व दबी कोशिकायें ठीक होने लगती है गर्म ठण्डे सेक द्वारा लीवर पर रक्त का दबाव तेजी से पड़ता है जिससे वह तेजी से कार्य कर अपने को ठीक करने में लगता है।
मिट्टी पट्टी संकुचन पैदा कर विषाक्त तत्वों को बाहर निकालने में मदद करती है। नीम गिलोम व छाछ का एनीमा आंतों की सफाई कर पाचक रसों के स्त्राव को बढाकर तिल्ली के आकार को कम करने में मदद करता है ताकि संक्रामक रोग का खतरा टल सके। - डा. अम्बरीश
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