विशेष :

क्या यह सोच और कृत्य देशहित में है?

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चुनाव सम्पन्न हो गए। जनता की मनचाही सरकारें बन गई। वातावरण गरमाया, जोर-शोर से नारे लगे, वादे हुए, एक दूसरे पर कीचड़ उछाला गया। दंगल समाप्त हो गया। विजेता पुरस्कार लेकर घरों को लौट गए, परन्तु एरिना अभी अस्त-व्यस्त है। विजेता पक्ष खुश है और पराजित कहीं छिप गए हैं। दोनों पक्ष खुशी और गम में डूब गए हैं। आम जन होटलों, चौपालों, पान की दुकानों, चौराहों, घर के ओटलों आदि पर बैठकर अखबारों के पन्नों पर आँख गड़ाए बैठे हैं।

हार-जीत की समीक्षाओं के बीच कुछ खबर ऐसी थी, जिन्हें पढ़कर भगवानसिंह पटेल सुनाने लगे- “मीठापुर में आतंकी विस्फोट। पचास मरे, सौ घायल। सीमा पर घुसपैठ । सेना के दो जवानों की मौत, आतंकी भागने और छिपने में सफल । मधुपुर में पांच जीवित बम मिले, पता चला है कि इनका निर्माण भारत में ही हुआ था । बरामद सूटकेस पर कुशलपुर अंकित था । महत्वपूर्ण सूचना और मानचित्र दुश्मनों को बेचते हुए एक भारतीय गिरफ्तार।“ इन समाचारों को सुनकर बातचीत में गरमाहट आ गई। पान मुँह में रखते हुए मांगीलाल बोला, “अरे भाई, देश की किसको पड़ी है ! नेता जेब भरने और जनता अपने-अपने धंधे पानी में डूबी हुई है, देश की किसको पड़ी है!’‘ मि. शर्मा बोल उठे, “आप में से कोई बताएगा कि चुनाव प्रचार के दौरान किस नेता ने आतंक को मिटाने और देश की रक्षा करने का संकल्प लिया ?’’ पीछे खड़ा एक आदमी बोलते हुए आगे आया। उसके शब्द थे- “भय्या, आप बिल्कुल सच कह रहे हैं। आम आदमी को रोजी, रोटी, छप्पर, जल, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि सभी कुछ चाहिए। ये सबकी सबसे निकट की आवश्यकताएँ हैं। इनसे संबंधित प्रलोभन देकर वोट कबाड़ लिए जाते हैं। होना न होना दूर की बात है। इन जरूरतों से ऊपर उठकर देश की रक्षा, बाहरी-भीतरी आतंक की रोकथाम, बढ़ता बिखराव आदि की ओर किसका ध्यान जाता है? सब बेखबर अपने-अपने स्वार्थ में डूबे जीवन जी रहे हैं। देशहित की इसी विस्मृति का लाभ उठाकर नेतागण अपने वोट बैंक को सुरक्षित करने के लिए तुष्टिकरण की नीति को तो अपना ही रहे हैं, अपितु इससे आगे बढ़कर बारूद के ढेर पर बैठकर आग से खेल रहे हैं।’‘ “सुनिए’‘ एक युवक चिल्लाते हुए बोला- “जनाब, इन सत्ताधीशों ने हमारे देश को उस चौराहे पर पहुँचा दिया है जहाँ मौत मंडरा रही है।’‘ उसने अखबार से एक समाचार पढ़कर सुनाया, “यूपीए सरकार ने भारतीय सेना को आतंकवादी ठहराकर वह काम कर दिया जो पाकिस्तान 20 वर्षों से करना चाहता था, पर सफल नहीं हो पाया था। सरकार महाराष्ट्र में तो मकोका जैसा आतंक विरोधी कानून लगाने देती है, पर गुजरात में आतंकवादियों की सजा के लिए ऐसा कानून नहीं बनने देती। वोट बैंक के लिए केन्द्र सरकार सेना, पुलिस और सुरक्षाकर्मियों का मनोबल तोड़कर देश की सुरक्षा के लिए भयंकर खतरा खड़ा कर रही है।‘’

आम भारतीयों के लिए यह गंभीर चिन्तन का विषय बन गया है कि क्या सत्ताधीशों की यह सोच और ये कृत्य देश हित में उचित है? -  जगदीश दुर्गेश जोशी

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