चुनाव होने की घोषणा होते ही जहाँ चुनाव होना है, वे कुरुक्षेत्र के मैदान बन गए हैं और चुनावी संघर्ष महाभारत के युद्ध का रूप लेने लगा है । पूर्व महाभारत में तो दो ही दल कौरव और पाण्डव थे, परन्तु इस चुनावी महाभारत में तो दलों का दलदल दिखाई देता है। सत्य किसके पक्ष में है और अर्जुन कौन है, श्रीकृष्ण किसके सारथी बने हैं, इसका कोई अता-पता नहीं है।
अभी-अभी एक दिन अपने एक घायल मित्र से मिलने अस्पताल जाना हुआ । उस समय डॉक्टरों द्वारा रोगियों का निरीक्षण-परीक्षण चल रहा था। इसलिए वहीं सामने बगीचे में बैठना पढ़ा। वहाँ और भी बहुत से लोग जमा थे, जो भरती हुए बीमारों के सहायक थे। कई लोगों के हाथ में दैनिक अखबार थे और वे आपस में चुनाव को लेकर चर्चा कर रहे थे। मैं ध्यान से सुनने लगा। एक महाशय बड़े ठण्डे स्वर में बोले- “कुछ कहा नहीं जा सकता, कौन जीतेगा और किसकी सरकार बनेगी?’’ मैं बीच में बोल उठा, “अजी श्रीमान्! कैसी बात करते हैं, हम जनता के बीच में रहते हैं और बहुत कुछ देखते-सुनते हैं। उस आधार पर कुछ तो सोचते ही होंगे।’’ बात काटते हुए एक महाशय जो मेरे पास ही बैठे थे, बोले “अजी जनाब, इस चुनाव में कांग्रेस ही जीतेगी। सोचिए, क्यों जीतेगी? इसलिए जीतेगी, क्योंकि भारत को आजाद कराने का सेहरा उसके सिर बांधा गया है। जनमत का आदर करते हुए उसने पाकिस्तान देकर झगड़ा निपटाया और शेष मुसलमानों को हिफाजत का वादा कर यहीं रोक लिया। इसी कारण से कांग्रेस को ही जीतना है। आज जो मजहबों में एकता दिखाई दे रही है, अमन है, वह कांग्रेस की वजह से ही है।’’ “और इसके बावजूद भी भारत की संसद पर हमला, गोधरा और बम्बई में ही नहीं, कई जगह निरपराध लोगों की हत्या इन सबकी वजह क्या है? इसका जवाब कौन देगा?’’ एक अन्य व्यक्ति ने बात काटते हुए कहा। एक दाढ़ी-मूंछ वाला व्यक्ति बड़े ध्यान से इन बातों को सुन रहा था। बड़ी नम्रता से बोला- “यदि आप इजाजत दें तो मैं कुछ कहूँ।’’ सभी हाँ भरते हुए उसकी बात सुनने के लिए उसकी ओर देखने लगे। वह बोला- “पहले वाले महाशय ने जो कुछ कहा, उस सन्दर्भ में मुझे कुछ नहीं कहना। इस सम्बन्ध में इतिहास को गहराई से जानने वाला व्यक्ति ही कुछ बता सकता है। मैं तो कम्युनिष्ट हूँ और चाहता हूँ कि देश की बागडोर प्रगतिशील शक्तियों के हाथों में हो, ताकि मालिकों के शोषण से मजदूर-वर्ग को बचाया जा सके। इस दिशा में कुछ शक्तियाँ जरूर उभर रही हैं। देखें क्या होता है!’’ दूसरा व्यक्ति अचानक बोल उठा, “भाई साहब! मुझे तो आप सबकी बातों का समन्वय मायावती जी में दिखाई दे रहा है। वे सही नेतृत्व के रूप में उभर रही हैं। उन्हें आगे लाना चाहिए।’’ मैं अब तक इन बातों को चुपचाप सुन रहा था। मेरी दृष्टि सामने बैठे एक नौजवान की ओर गई और उससे बोला, “भाई, आप युवक हैं। आप पर ही भावी भारत की आशाएँ निर्भर हैं। इस दिशा में आप क्या सोचते हैं? आप अपने विचार बतलाइए।“ सबसे ‘नमस्ते’ करते हुए वह बोला, “मेरी माँ बीमार हैं। वे भरती हैं। उनकी सेवा के लिए आया हूँ। पिताजी सरकारी कर्मचारी हैं और मैं आर्ट्स् एण्ड कॉमर्स कॉलेज में एम.ए. का विद्यार्थी हूँ। वर्तमान चुनाव के सम्बन्ध में मेरा तो यह मत है कि भारत के समस्त प्रबुद्ध नागरिकों को देश की ज्वलन्त समस्याओं पर विचार करना चाहिए और प्राथमिकता के आधार पर उन्हें हल करने तथा करवाने का प्रयत्न करना चाहिए। जो इस कार्य को पूर्ण करने के लिए आगे आते हैं, उन्हें जिताना चाहिए।’’ एक व्यक्ति बीच में बोल उठा, “भय्या, ये ज्वलन्त समस्याएँ कौन सी हैं, कुछ बताने का कष्ट करें।’’ कृपया सुनिए, “भारतीय स्वतन्त्रता पर बढ़ते आतंकवादी खतरों के प्रति उपेक्षाभाव तथा उदासीनता, सांस्कृतिक पतन जिसके कारण अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो गई हैं, जैसे- चारित्रिक पतन, राष्ट्रीय एकता का अभाव, घोर भ्रष्टाचार, परिवार विखंडन, नारी जाति पर अत्याचार, भ्रूण हत्या, राष्ट्रीय स्वाभिमान का अभाव, देशभक्ति का न होना आदि। कुशल एवं दक्ष नेतृत्व इनमें से प्राथमिकता निश्चित कर उसके लिए संघर्ष की उत्कट अभिलाषा रखने वाला होना चाहिए। आतंकवाद से निपटने के लिए सुदृढ़ सांस्कृतिक आधार अपेक्षित है। हम नौजवान ऐसे ही नेतृत्व की खोज में हैं, जिसके समक्ष हम अपने को समर्पित कर सकें। वर्तमान चुनाव के लिए भारतीय जनता को ऐसे ही जननायक को समर्थन देना चाहिए।’’ उपस्थित सभी के मुँह से निकल पड़ा- “भाई वाह, बहुत-बहुत धन्यवाद।’’ - प्रा. जगदीश दुर्गेश जोशी
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