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बढ़ता आतंकवाद और हमारी विवशता

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Terrorismआतंकवादी बम ब्लास्ट करते जा रहे हैं। निरपराध बच्चे-महिलाएँ-पुरुष शिकार होते जा रहे हैं। सारा देश आतंकित है। कब और कहाँ विस्फोट हो जाए, कोई नहीं जानता। मीडिया समाचार प्रसारित करता जा रहा है। राष्ट्र की सत्ता मृतकों के परिवारों को आर्थिक सहायता की घोषणा कर सहानुभूति व्यक्त करने के साथ सावधानी बरतने की घोषणा करती जा रही है। कुछ आतंकी पकड़े जाने के समाचार सुनने-पढ़ने को मिल जाते हैं। उन्हें दण्डित करने की बात सामने आती है। कुल मिलाकर भारत की आतंकित तथा भयभीत जनता को आतंक से छुटकारा पाने का कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा है। सत्ताधीशों ने अपने व्यवहार से जनता को निराश ही किया है।

कुछ चिन्तकों ने आतंकवाद के बीज पर विचार करना शुरु भी किया है, किन्तु इससे बचने का कोई उपाय सामने नहीं आ रहा है। बचाव के कुछ नाटक जरूर किए जाते हैं, परन्तु परिणाम में आतंकवाद और फैलता जा रहा है। सही औषधियों के अभाव से बीमारी फैलती जा रही है। दूसरी ओर चोट खाए हुए इन्सान कराह और रुदन तो कर सकते हैं, परन्तु यदि कोई गुस्सा प्रकट करता है या कुछ विरोध करता दिखाई देता है, तो उसका मुँह यह कहकर दबा दिया जाता है कि यह तो साम्प्रदायिक उन्माद है। कुछ मतान्ध लोग शान्ति भंग करना चाहते हैं। लाठियाँ, गोलियाँ, कर्फ्यू आदि के द्वारा शान्ति स्थापित कर दी जाती है। ऐसा लगता है मानो आतंकवादी बम ब्लास्ट कर शान्ति स्थापित करना चाहते हैं और पीड़ित व्यक्ति चिल्लाकर शान्ति भंग कर रहे हों।

भारत के प्राण और मस्तिष्क के केन्द्र देहली पर हुए बम-ब्लास्ट में शहीद हुए मृतकों के परिवारजनों का करुणाजनक रुदन सारे देश में सुना गया। उनके प्रति अपनी संवेदना प्रकट करने के लिए देशभर में शोकसभाएँ आयोजित की गई। उनमें से एक सभा में वक्ताओं के विचार सुनने का अवसर मिला। सभी ने संवेदना तथा गहरा दुःख प्रकट करते हुए केन्द्र की सरकार पर कई आरोप लगाए। एक ने कहा- “धिक्कार है इस सरकार पर जो अपनी जनता की रक्षा करने में पूरी तरह असफल है। ऐसे नेताओं को सत्ता के तख्त पर बैठने का कोई अधिकार नहीं है। चाहे जो भी अन्तरराष्ट्रीय विवशता हो, चाहे आन्तरिक विग्रह का भय हो, जनता की रक्षा करना सरकार का परम कर्त्तव्य है। आतंकी दुष्टों को कठोर दंड देना उसका उत्तरदायित्व है। कोई नहीं जानता कि सरकार की क्या विवशता है ? पर है विवशता, जो उसे अपना कर्त्तव्य पालन करने से रोक रही है।“

केशरिया दुपट्टाधारी एक अन्य वक्ता ने कहा, “जो राष्ट्र अपने इतिहास से सबक नहीं सीखता, उसका पतन निश्‍चित है। हत्यारों के विरुद्ध सख्त कार्यवाही न कर पाने की जो विवशता है, वह एक पाली हुई मजबूरी है। इस मजबूरी का प्रारंभ स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व से चला आ रहा है। एक वर्ग जो भारत की उदारता और समरसता को पसंद नहीं करता था, अपने लिए स्वतंत्र भाग की मांग कर बैठा। हमने बड़ी उदारतापूर्वक उन्हें वह भाग दे दिया। भोले नेता उनके षड्यन्त्र को नहीं समझ पाए। उन्हें तो अपने षड्यन्त्र को मजबूत करने और मूर्त रूप देने के लिए स्वतन्त्र भूभाग की आवश्यकता थी। इसे न समझकर उन षड्यन्त्रकारियों को भी यहीं रोक लिया गया और उनके संरक्षण की जिम्मेदारी भी अपने ऊपर ले ली। यही जिम्मेदारी सत्ताधीशों की विवशता बन गई। आज भी वे समरस नहीं है। अगर वे भारत और भारतीयता के साथ समरस हो जाते हैं, तो भारत की उदारता उन्हें ससम्मान गले लगा सकती है। अब बॉल उनके पाले में है। वे अपने आचरण से देशभक्ति का परिचय दें। आतंकवादियों को शरण देना बंद करें, उन्हें उजागर करें और षड्यन्त्र करने से रोककर अपनी निष्ठा प्रकट करें। यह निष्ठा सरकार को बल प्रदान करेगी। तभी विवशता दूर हो सकती है, अन्यथा.......।’’ - जगदीश दुर्गेश जोशी

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