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श्रीराम का सन्देश

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message of shriramश्रीराम भारतीय संस्कृति के ऐसे वटवृक्ष हैं, जिनकी पावन छाया में मानव युग-युग तक जीवन की प्रेरणा और उपदेश लेता रहेगा। जब तक श्रीराम जन-जन में हृदय में जीवित हैं तब तक भारतीय संस्कृति के मूल तत्व अजर-अमर रहेंगे। राम भारतीय जन-जीवन में धर्म भावना के प्रतीक हैं। उनमें मानवोचित और देवोचित गुण थे। इसीलिए वे ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ कहलाए। कोटि-कोटि जनमानस के वे प्रातः स्मरणीय एवं वन्दनीय हैं। उनका जीवन चरित्र भारत की सीमाओं को लांघकर विदेशियों के लिए शान्ति, प्रेरणा और नवजीवनदायक बनता जा रहा है। आज शिक्षित-अशिक्षित सभी उठते-बैठते, सोते-जागते राम का नाम लेकर अपनी धार्मिक भावना प्रकट करते हैं। श्रीराम का यहाँ तक महत्व है कि शव को श्मशान भूमि तक ले जाते समय भी उनके नाम का उच्चारण किया जाता है। वे धर्म के साक्षात् स्वरूप हैं। धर्म के किसी अंग को देखना है तो राम का जीवन देख लो। धर्म की असली पहिचान हो जायेगी। धर्म की पूर्णता उनके जीवन में आद्यन्त घटित हुई है। राम जैसा चरित नायक आज तक धरती पर नहीं आया। श्रीराम एक आदर्श महामानव थे। उन्होंने लौकिक धरातल पर स्थिर रहकर धर्ममर्यादा का पालन करते हुए मानव को असत्य से सत्य की ओर, अधर्म से धर्म की ओर, अन्याय से न्याय की ओर चलने की प्रेरणा दी है। कर्त्तव्य की वेदी पर अपने व्यक्तिगत सुख-प्रलोभनों की आहुति राम की जीवन कहानी का सार है।

संसार में महापुरुष अपने जीवन, गुण, कर्म, स्वभाव, कर्त्तव्य बुद्धि, तप-त्याग और तपस्या से जो अमर जीवन-सन्देश देते हैं वही मानवता की स्थायी धरोहर होती है। हमारा सौभाग्य है कि हम ऐसे दैवीय गुणों के धनी मर्यादापुरुषोत्तम श्री रामचन्द्र की सन्तानें हैं। प्रतिवर्ष रामनवमी और विजयादशमी का पर्व मनाते हैं। किन्तु उनके आदर्श चरित्र से जीवन, परिवार, समाज और राष्ट्र के लिए कोई प्रेरणा, सन्देश एवं संकल्प नहीं लेते हैं। उनकी शिक्षाएं, आदर्श तथा जीवन मूल्य आज जीवन में व्याप्त दुःख, चिन्ता, अतृप्ति, असन्तोष, संघर्ष, वैर-विरोध आदि का सुन्दर समाधान दे सकते हैं। श्रीराम का प्रेरक चरित्र भूली-भटकी मानव जाति में नवजीवन चेतना का संचार कर सकता है। उनके जीवन की घटनाएं आज के भोगी विलासी और मानवता का गला घोटने वाले नामधारी मनुष्य को बहुत कुछ सोचने, करने और जीने की प्रेरणा दे सकती है। उनके जीवन के प्रत्येक क्रिया-कलाप से अमर सन्देश मिलता है।

श्रीराम के द्वारा दर्शित आदर्शों एवं जीवन मूल्यों का भारतीय समाज में बहुत ऊँचा स्थान है। आज राम के सच्चे आदर्शों एवं मान्यताओं की संसार को महती आवश्यकता है। तभी मानव समाज में सुख-शान्ति तथा प्रसन्नता आ सकती है। यदि हम सबक लेना चाहें तो रामायण की प्रत्येक घटना से बहुत कुछ सीखा जा सकता है। अच्छे विचार और अच्छी संगति न मिलने के कारण आज का मनुष्य दुःख, चिन्ता और अशान्ति से घिरा है।

लक्ष्मण का राम के साथ वन-गमन करना, भरत का राज्य को ठुकराना, पादुका रखकर शासन-व्यवस्था चलाना, परस्पर भाइयों की प्रीति का श्रेष्ठ उदाहरण है। आज भाई-भाई एक दूसरे के रक्त के प्यासे हो रहे हैं। परिवार परस्पर की कलह के कारण टूट रहे हैं। सर्वत्र स्वार्थ, अहंकार और अकेले भोगने की भावना उद्दाम हो रही है। रामायण हमें शिक्षा देती है कि नश्‍वर सुख-भोग और धन-धाम-धरा के लिए परस्पर लड़ो नहीं। पद-सम्मान और कुसी के पीछे अपने धर्म, कर्त्तव्य, न्याय और सत्य के मार्ग को मत छोड़ो। परस्पर प्रेम, त्याग व सहयोग से उन्नति करो।

चित्रकूट प्रवास-काल में शूर्पणखा द्वारा श्रीराम को अपनी ओर आकर्षित करके विवाह का प्रस्ताव रखनेपर राम द्वारा दृढ़ता से मना कर देना प्रेरणा देता है कि यदि जीवन को सुखी और शान्तिमय बनाना है तो एक पत्नीव्रत का आचरण करना चाहिए। आज के सभ्य समाज में भोग-विलास और परस्त्रीभोग का रोग तेजी से फैल रहा है। आए दिन अखबारों में घटनाएँ आती है, परस्त्री भोग के कारण उसे जीवन से हाथ धोना पड़ा। न बुझने वाली भोग और कामवासना की आग से न जाने कितने परिवार और व्यक्ति जल चुके हैं। राम हमें सन्देश देते हैं कि एक पत्नीव्रती बनकर कामवासना को धीरे-धीरे संयमित करने में ही मानव का कल्याण निहित है।

स्वर्णमृग को देखकर सीता का उसे पाने की इच्छा करना तथा राम द्वारा मायावी मृग को पाने के लिए पीछे दौड़ना और सीता का हरण हो जाने की घटना आज के जीवन प्रसंगों को बहुत कुछ प्रेरणा दे सकती है। आज का मनुष्य धन की मृगतृष्णा के पीछे पागलों की तरह दौड़ा जा रहा है। जो प्राप्त है उससे सन्तुष्ट नहीं हो पा रहा है। विज्ञान की चमकीली, भड़कीली, दिखावटी, बनावटी चीजों के पीछे दिन-रात अधर्म-असत्य, छल-प्रपंच का सहारा लेकर दौड़ा जा रहा है। इससे हानि यह हुई है कि आत्मारूपी सीता छिन गई है। भौतिकवादी व्यक्ति सिर्फ शरीर के लिए जीने लगा है। इसी मृगतृष्णा में जीवन का अन्त कर लेता है। रामायण कहती है दुनिया में आँखें खोलकर चलो। सभी चमकने वाली चीजें सोना नहीं होती हैं। चमक-दमक में व्यक्ति हमेशा धोखा खाता है। इसी धोखे में सीता का रावण द्वारा हरण होता हैतथा बाद में राम-रावण का निर्णायक युद्ध होता है।

रामायण की शिक्षा रही है जो पर-नारी पर दृष्टि रखता है, उसका रावण की तरह विनाश हो जाता है। जो मनुष्य अपनी इन्द्रियों को अपने वश में नहीं रखता और यदि इन्द्रियाँ मालिक बन गई तो वह ‘दशहरा’ दस इन्द्रियों द्वारा हरा जाने वाला रावण बनकर विनाश को प्राप्त होता है। आज समाज में गली-गली, नगर-नगर, घर-घर रावण बढ़ और पल रहे हैं। हमारे मनों में भी रावण बस रहा है। हमारे चेहरों पर अतृप्ति, वासना और कामुकता का डेरा है। रोज न जाने कितनी सीताओं का भगाना, उठाना, चुराना और बलात्कार हो रहे हैं? क्या हमने यही रामायण और राम से सीखा है? यदि सीखना है तो रामायण और रामलीला से सीखो चरित्र निर्माण, विचारों की उच्चता, भावों की शुद्धता, पवित्रता तथा जीवन को धर्म-मर्यादा एवं उच्चादर्श की ओर ले चलना।

आज के मानव समाज में रावण वृत्ति बड़ी तेजी से फैल रही है। मानव दानव बनकर मांस, मदिरा, परस्त्री गमन, छल-प्रपंच, अधर्म आदि बुराइयों को जीवन का अंग बनाता जा रहा है। किन्तु भूल रहा है कि गलत आचरण और मान्यताओं का अन्त रावण की तरह होता है। अन्याय, अधर्म, असल, राक्षस भाव आदि पहले तो रावण की तरह फलते-फूलते हैं। किन्तु अन्त में समूल नष्ट हो जाते हैं। रावण के चरित्र पतन से आज के मानव को शिक्षा लेनी चाहिए। हमारा खान-पान, आचरण, जीविका और वैचारिक चिन्तन शुद्ध-पवित्र और धर्मानुसार होना चाहिए।

राम और रामायण का अमर जीवन सन्देश आज के भूले-भटके राक्षस वृत्ति में फंसे मानव-समाज को यही है कि अपने जीवन को पवित्र और सुन्दर बनाओ। खान-पान, रहन-सहन में सादगी, सरलता और सात्विकता लाओ। परमात्मा की सत्ता पर विश्‍वास करके, उसके बताये वेद मार्ग पर चलकर मानव जीवन को सफल बनाओ।

सीता का राम के साथ वन जाना संसार के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ देता है। वनवास राम को मिला था, सीता को नहीं। नारी की परीक्षा सम्पत्ति में नहीं विपत्ति में होती है। भोग-विलास और शृंगार में फंसी नारी को सीता का चरित्र युग-युग तक प्रकाश और जीवन दे सकता है। आज नारी अपने मूल धर्म और स्वरूप से हट रही है। इसी कारण दुःख व वेदना देने वाली अनेक समस्याएं हमारे सामने आ रही हैं। - डॉ. महेश विद्यालंकार

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