प्रथम विश्व युद्ध आरम्भ होते ही भारत के विभिन्न प्रान्तों से कैदी अण्डमान भेजे गये। भाई परमानन्द भी इसी जेल में थे। बारी ने नए आये राजबन्दियों को सावरकर के विरुद्ध भड़काना शुरु कर दिया और दूसरी तरफ अधिकारियों के पास शिकायतें भी भेजता रहता था- ‘सावरकर ही तमाम झगड़ों की जड़ है। यह अंग्रेजों की हार की अफवाह फैलाता है। सिखों में इसके प्रति श्रद्धा है। इसका राजबन्दियों पर बड़ा प्रभाव है। यह महासाहसी किस्म का व्यक्ति है।’ इसके साथ ही वह सावरकर से कहता- ‘ये पंजाबी सिख बंदी बहुत स्वार्थी व खतरनाक है। तुम जैसे शिक्षित व विद्वान व्यक्ति को तो इनसे तनिक भी सम्पर्क नहीं रखना चाहिए।
सावरकर ने अत्यन्त शान्त भाव में कहा-
“ये सिख भले ही अंग्रेजी न जानते हों, परन्तु इन्होंने अपनी मातृभूमि, अपने राष्ट्र की स्वाधीनता के लिए जो त्याग किया है, कष्ट सहे हैं, वे मेरी दृष्टि से कर्त्तव्य पालन का ऊँचा आदर्श हैं। सुशिक्षित वही है जो दूसरों के दुःखों से द्रवित हो उठता है, दूसरों के सुखी जीवन के लिए स्वयं कष्ट उठाता है, अपने कष्ट तुच्छ समझता है। अपने राष्ट्र के लिए कथित सुशिक्षितों ने एक सहस्त्रांश (हजारवाँ भाग) भी त्याग नहीं किया है, परन्तु सरल स्वभाव के सिख किसानों ने राष्ट्र की स्वाधीनता के लिए सर्वस्व ही समर्पित किया है। इनसे सम्पर्क रखने में तो मैं गर्व का ही अनुभव करता हूँ।’’
एक दिन सिख राजनैतिक बंदी भानसिंह का टंडेल तथा पेटी अफसर से किसी बात पर झगड़ा हो गया। उसे बारी ने अपने दस-बारह लोगों से लाठियों-डंडों से पिटवाया। पूरी जेल उसकी करुणाजनक चीखों से गूँज उठी- “मारा ! भाइयो, मेरे को मार रहे हैं.........मारा.......।’’ भानसिंह की चीखें सुनकर उसी वार्ड के बंदी क्रोध में भर उठे और आग बबूला होकर हाथ में जो आया उसे लेकर ऊपर की ओर दौड़ पड़े। बंदियों को अपनी ओर आता देखकर बारी के होश उड़ गये तथा पिछवाड़े के जीने (सीढ़ी) से भाग खड़ा हुआ। राजबंदियों ने इस घटना के विरोध में उच्च अधिकारियों को आवेदन-पत्र भेजे। बारी घबराया और शाम को सावरकर से मिलने आया तो सावरकर ने उसे फटकारते हुए कहा- “तुम्हारे अत्याचार सीमा पार कर चुके हैं। तुम्हें इसका परिणाम भयंकर रूप में भुगतना पड़ेगा।“
वह बोला- “भानसिंह ने मुझे दाँतों से काट लिया, तब मजबूरी में पिटाई करनी पड़ी।’‘ सावरकर ने कहा- “यदि यह सत्य है तो भी नियमानुसार सजा दी जानी चाहिए थी। लाठी डंडों से इतना पिटवाना कि मुँह से खून जाने लगा, असहनीय है। तमाम राजबंदी अब अत्याचारों का डटकर विरोध करने का निर्णय कर चुके हैं।’‘ हड़ताल हुई तो नये बंदी आगे आये। सावरकर पत्र आदि लिखने के लाभ से हड़ताल से अलग रहे तो बारी ने उन बंदियों को भड़काना शुरु कर दिया तो उनमें से कुछ ने पूछा- “क्यों साहब, जब सावरकर डरपोक हैं तो आप उनसे रात दिन घबराते क्यों हैं ?’‘
बारी लगभग पच्चीस साल से पोर्ट ब्लेयर (अण्डमान) में था। वह अवकाश लेकर आयरलैण्ड जाने लगा, तो किसी ने कहा कि वह कलकत्ता से होकर न जाए, क्योंकि वहीं उसकी जान को खतरा हो सकता है। यह सुनकर वह शाम को सावरकर के पास आया और बोला- “मि. सावरकर, सुना है कि तुम्हारे कुछ साथी मेरे हिन्दुस्तान में पैर रखते ही मुझ पर बम फैंकने की योजना बना रहे हैं ?’‘ सावरकर यह सुनकर व्यंग्य में बोले- “क्रांतिकारी इतने मूर्ख नहीं है कि वे किसी कौवे या गीध की हत्या के लिए ‘बम’ का उपयोग करें। यदि उन्हें बम फैंकना ही होगा तो किसी शेर पर फेंकेंगे।’ आप जैसे साधारण व्यक्ति पर कोई बम क्यों फेंकेगा?’‘ यह सुनकर उसका सारा गर्व चूर हो गया। (क्रमशः) - राजेश कुमार ’रत्नेश’
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