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वीर सावरकर के शौर्यपूर्ण कारनामे -13

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veer sawarkarवीर सावरकर के शौर्यपूर्ण कारनामे -13

एक दिन बारी ने राजबन्दियों को धमकाया, गालियाँ दी और उन्हें राजबन्दी न मानकर साधारण चोर-डाकू के समान ही अपराधी बन्दी कहा । उसके जाने के बाद सावरकर जानते हुए भी कि राजबन्दियों के साथ बातचीत करने से उसे सजा मिलेगी, उन राजबन्दियों से मिले और उन्हें प्रेरित किया- “आप धीरज न छोड़ें, धैर्य बनाये रखें। आज हम बेवश हैं । आज अपना इस स्थिति में भले ही अपमान होगा, मगर ऐसा भी एक दिन आएगा कि इसी अण्डमान के कारागृह में आज के राजबन्दियों की मूर्तियाँ स्थापित होंगी और इसे हिन्दुस्थान के राजनैतिक बन्दियों, राष्ट्रभक्तों की तपस्या स्थली के रूप में तीर्थस्थल का महत्त्व मिलेगा । हजारों लोग यहाँ तीर्थयात्रा करने आया करेंगे ।’’

राजनैतिक बन्दियों को सावरकर मौका मिलते ही युगपुरुषों, वीर वीरांगनाओं, राष्ट्रवीरों, महापुरुषों आदि के कृतित्व और व्यक्तित्व सुनाते थे । यूरोप का आधुनिक इतिहास, नेपोलियन, मैजिनी, गैरी बाल्डी तथा उस समय के रूस के आन्दोलन का इतिहास सुनाते थे । एक दिन बारी ने सावरकर को गोखले के निधन का समाचार सुनाया, तो इस दुखद समाचार को सुनकर वे अवाक् रह गये । बारी बोला कि- “गोखले तो आपके विरोधी थे ।’’ सावरकर ने कहा- “ जी नहीं, मै तो उन्हीं के महाविद्यालय में था। मतभेद भले ही हों, पर विरोध नहीं था । हमारे हिन्दुस्थान की इस पीढी के वे उत्कट देशभक्त तथा समाजसेवी थे। .....कुछ मामलों में, हो सकता है कि उन्हें मेरा मार्ग नापसन्द हो। परन्तु इन मतभेदों के कारण उनकी राष्ट्रभक्ति व विद्वत्ता को कैसे नकारा जा सकता है? .....इंग्लैंड में उनके कुछ विरोधी भाषणों से क्षुब्ध होकर अभिनव भारत के कुछ सदस्य उन पर आक्रमण की बात कह बैठे । मैने बैठक में इस विचार का घोर विरोध कर कहा- मत भिन्नता के लिए अपने ही स्वजन पर आक्रमण करना घोर पापकृत्य है । गोखले जी मेरे इस कथन से खूब परिचित थे । मैं तो यह मानता आया हूँ कि प्रत्येक हिन्दू गोखले जैसा राष्ट्रभक्त तथा देशसेवक बने ।’’

संकीर्ण मानसिकता के शिकार, झूठे अहिंसावादी तत्कालीन या वर्तमान नेताओं में क्या वीर सावरकर जैसी हृदय की विशालता कभी रही? यदि राष्ट्र के नेता नोट-वोट के लिए तुष्टिकरण जैसी भयंकर नीति को छोड़कर उस महामनस्वी सावरकर की विचारधारा को अपनाते तो यह राष्ट्र खंड-खंड में न बंटता, हिन्दू -मुस्लिम के झगड़े नहीं होते, बलिदानी वीर अपमानित न होते और विदेशी सभ्यता व विचारधारा के पोषक यहाँ सत्तासीन न होते। यदि गांधी ने अहिंसा की सच्ची परिभाषा समझी होती तो उनके या उन चेलों द्वारा भगत, सावरकर, सुभाष, ढींगरा, उधमसिंह जैसे बलिदानियों का अपमान न होता। भारत की वर्तमान पीढी के सामने सच्चे बलिदानियों का इतिहास होता। आजादी की कीमत समझी जाती और देश वर्तमान बर्बादियों से बच जाता।

जेल के अमानवीय दुर्व्यवहार व यातनाओं से छुटकारा पाने के लिए राजनैतिक बंदी समय-समय पर हड़ताल करते रहते थे । बारी अकसर उच्च अधिकारियों के कान भरता रहता था कि हड़ताल के लिए सावरकर ही बदियों को भड़काता है । सावरकर ने एक दिन अधिकारी को स्पष्ट बता दिया कि यदि बन्दियों को दी जाने वाली सुविधाएँ मिलती रहती, उन्हें अमानवीय यातनाएँ नहीं दी जाती तो जेल का अनुशासन बना रहता । हड़ताल व संघर्ष की नौबत ही न आती ।

जब गृहमंत्री सर क्रडाक अण्डमान में सावरकर से मिले और कहा-“भारत में सक्रिय क्रांतिकारी आज भी खून बहाने की घोषणाएँ कर रहे हैं । वे चाहे भारत में हों, चाहें अमरीका में, तुम्हारे लोग तुम्हारा नाम लेकर काम कर रहे हैं, रक्तिम आन्दोलन कर रहे हैं । .....उनके नाम खून-खराबे का मार्ग छोड़ने का आदेश देने वाला पत्र लिखो।’’ सावरकर ने कहा कि “मैं इतनी दूर यहॉ बैठा-बैठा उनका नेतृत्व कैसे कर सकता हूँ ? ऐसा कोई पत्र आपके या सरकार के माध्यम से नहीं भेजा जा सकता ?’’ मुख्य आयुक्त बोले कि परन्तु तुम राजनैतिक बंदियों ने खूनी तथा अत्याचारी षड़्यन्त्र रचे थे। यदि आज रशियनों का राज यहाँ होता, तो तुम जैसों को वे या तो साईबेरिया भेज देते या गोलियों से उड़वा देते। यह तो तुम अपना सौभाग्य ही समझो कि हम तुम्हारे सेथ उतनी क्रूरता का व्यवहार नहीं करते ।•(क्रमश: ....)


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